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झारखंड-बिहार में चुनाव नजदीक होंगे तब मोदी जी रिबन काटेंगे

कुमुद सिंह

लोकतंत्र में शिलान्‍यास और उदघाटन की भी सियासी तारीख होती है। बिहार में कई परियोजनाएं कई माह से उदघाटन की बाट जोह रहे हैं। छपरा रेल चक्‍का कारखाना, हरनौत रेल डिब्‍बा कारखाना, बाढ थर्मल आदि..। ये सभी सच कहा जायेगा तो लोकसभा चुनाव से पहले ही तैयार हो चुके थे, लेकिन मनमोहन सिंह समय नहीं निकाल पाये बिहार के इन परियोजना के लिए, क्‍योंकि कांग्रेस को इससे कोई लाभ नहीं हो रहा था चुनाव में। नरेंद्र मोदी भी पिछले चार माह में अन्‍य राज्‍यों पर ही ध्‍यान टिकाये रखे। अब सुनने में आ रहा है कि झारखंड और बिहार में चुनाव नजदीक आ गये हैं, ऐसे में उम्‍मीद की जा सकती है कि कई माह से कटने के इंतजार में ताना गया रीबन के लिए कोई सियासी तारीख तय हो जाये।

(स्रोत-एफबी)

पटना के एक शो रूम में कल 75 बुलेट की मांग थी, दुकानदार 25 ही बेच पाया

कुमुद सिंह

बुलेट, भारतीय बाजार में अंबेसडर और राजदूत के बाद तीसरा सबसे लोकप्रिय ब्रांड रहा है। पिछले 50 वर्षों में अंबेसडर और राजदूत ने तो अपने ग्राहक नहीं बचा पाये, लेकिन बुलेट का जलवा बरकरार है। पटना के एक शो रूम में कल 75 बुलेट की मांग थी, दुकानदार 25 ही बेच पाया, बेचारे के पास माल की दिक्‍कत थी, कंपनी माल नहीं पहुंचा पायी।

(स्रोत-एफबी)

उर्मिलेश,आनंद प्रधान और ऐसे दूसरे पत्रकार खुद को सीधे-सीधे राजनीतिक कार्यकर्ता ही क्यों नहीं कहते?

राजीव रंजन झा

एक विद्वान पत्रकार हैं उर्मिलेश। उनकी ‘समाजवादी’ निष्ठाएँ जगजाहिर हैं, वे खुद साफ-साफ बताते हैं। खुद बोलते हैं कि मैं निष्पक्ष पत्रकार नहीं, ‘पक्षधर’ पत्रकार हूँ।

बीएचयू के समय से अपने साथ दो दशक से ज्यादा के संबंधों वाले पत्रकार हैं आनंद प्रधान। सीपीआई-माले के कार्यकर्ता हैं, यह किसी से छिपी बात नहीं है। जब मौका मिलता है तो वे अपनी पार्टी के लिए प्रचार भी करते हैं।

ऐसे ही कई मित्र हैं, जो पत्रकारिता में आ कर भी संघ-भाजपा के कार्यकर्ता ही बने हुए हैं।

मेरा प्रश्न है कि ऐसे मित्र खुद को सीधे-सीधे राजनीतिक कार्यकर्ता ही क्यों नहीं कहते? पत्रकार कहलाना जरूरी है क्या?

समाजवादी पृष्ठभूमि के एक वरिष्ठ पत्रकार हैं, जो मोदी के अंध-विरोधी तो नहीं हैं, लेकिन अक्सर मोदी की आलोचना ही करते हैं। महाराष्ट्र और हरियाणा की बात छिड़ी तो बोले, एक बात तो अच्छी है कि अरसे बात मुख्यमंत्री पद की दावेदारी में जाति-वाति की बात नहीं हो रही।

(स्रोत-एफबी)

आपमें तो टाटा स्काई का संस्कार ही नहीं है

टाटा स्काई का रिमोट
टाटा स्काई का रिमोट

टाटा स्काई का रिमोट
टाटा स्काई का रिमोट
अपनी तो दीवाली, होली, ईद, क्रिसमस सबके सब टीवी के साथ ही बीततीं है..बैचलर्स किचन में एकमुश्त खाने-पीने की चीजें बना-जुटा लो..सुबह उठते ही माँ-भाभी और दीदी लोग को फ़ोन कर दो ताकि दिनभर फोन करके अकच न करें- हम यहाँ लौंगलता चाभ रहे हैं औ वहां दिल्ली में अकेला बैठा बुतरू बूट(चना) फुलाकर खा रहा होगा..8 बजे ही इतनी चीजों के नाम गिना दो कि सब कॉम्प्लेक्स में आ जायें..उसके बाद देखो जमकर टीवी..इससे अच्छा मुझे कोई त्यौहार मनाना ही नहीं आता..

लेकिन रात साढ़े नौ बजे जब 8 साल से साथ दे रहे रिमोट ने अचानक जवाब दे दिया, म्यूट के अलावा कोई दूसरा बटन काम ही नहीं करने लगा तो समझ गया- लग गयी मेरी ऐन मौके पर बत्ती..टाटा स्काई को फ़ोन किया.

एक्टिव जावेद के नाम पर जितने पैसे कटे, उतने में गुलजार की cd आ जाती..खैर, कई राउंड में इंग्लिश-हिंदी-हिंगलिश-पिन्ग्लिश मिक्स जुबान से गुजरते हुये, ठीक-ठाक बैलेंस कटाते हुये जब बात मुद्दे तक पहुंची तो तै हुआ कि कल कभी भी आपको नया रिमोट मिल जायेगा..
बातचीत में मैंने कह दिया- आप जिस अंदाज़ में बात कर रहे हो, आपमें कहीं से टाटा स्काई का संस्कार नहीं है..नहीं तो लद्दाख की लड़की का अगर टाटा स्काई में फोन लग जाता है तो उसकी छतरी भी लग जायेगी का वादा होता है.

बात बन्दे को लग गयी..अभी तक संस्कार का मसला सिर्फ परवरिश और माँ-बाप से जोड़कर देखा जाता रहा है, कंपनी से नहीं..सो जब कहा- 12 बजे तक भेज सकते हैं तो ठीक है नहीं तो फिर आप नहीं अबकी बार मैं लाइफ झींगा-ला-ला करूँगा.
आज सुबह जो सबसे पहली फोन कॉल आई वो है- सर, मैं आपके दरवाजे के आगे खड़ा हूँ, टाटा स्काई से बोल रहा हूँ, आपको रिमोट डिलीवर करनी है, दरवाजा खोलिये..

8 साल का सफ़ेद रिमोट जिसने दिल्ली के कितने ठिकाने देखे, जिस पर कितनी बार मसाले,नमक के स्वाद और रंग चढ़े, अब आर्काइव मटेरियल हो गया और ये ब्लैक वर्तमान..

(स्रोत-एफबी)

पत्रकार उस बिहारी नेता को खोजने में लगे हैं जो गाहे-बगाहे बड़े मोदी का रुममेट रहा हो

सुशांत झा

1.जबसे हरियाणा के मुख्यमंत्री-to be के तौर पर खट्टर साब का नाम आया है, बहुत सारे पत्रकार उस बिहारी नेता को खोजने में लगे हैं जो गाहे-बगाहे बड़े मोदी का रुममेट रहा हो। सुना है छोटे मोदी परेशान हैं।

2. इधर रविशंकर प्रसाद ने गुप्त रूप से दावा किया है वो कुछ दिनों के लिए बड़े मोदी के रुममेट रहे हैं।

3. बिहार के भूमिहारों का कहना है कि वो किसी CPI-ML के नेता को सीएम स्वीकार कर लेंगे लेकिन सुशील मोदी को नहीं।

4. ब्राह्मणों का अलग दर्द है। सुशील मोदी बिहार में ब्राह्मण नेतृत्व उभरने नहीं देते। ऐसे में ब्राह्मणों की राय भी भूमिहारों के साथ होती जा रही है।

5.अब चूंकि भूमिहार, मोदी का विरोध कर रहे हैं-ऐसे में कुछ राजपूत सुशील मोदी के साथ आ गए हैं। वैसे भी राजपूतों का पूरा वोट बीजेपी को मिलता नहीं है।

6. कथित अगड़ी जाति की आमतौर पर पूरे समाज में स्वीकार्यता कम है। और कोई वैसा विराट कद का है भी नहीं। सुशील मोदी को इसी लाभ मिलता रहा है-क्योंकि तमाम पिछड़े नेता भी उनके सामने कद में कमजोर है।

7. सुशील मोदी के पास सिर्फ कद है और संगठन में पुराने लोग। लेकिन जब चुनावी जीत बड़े मोदी के नाम पर हो सकती है-जिसका नीतीश कुमार से झगड़ा हुआ था-और सुशील मोदी चुप्पी साध गए थे-ऐसे में उनके साथ कोई राजनीतिक अनहोनी हो जाए तो क्या आश्चर्य?

(स्रोत-एफबी)

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