उर्मिलेश,आनंद प्रधान और ऐसे दूसरे पत्रकार खुद को सीधे-सीधे राजनीतिक कार्यकर्ता ही क्यों नहीं कहते?

राजीव रंजन झा

एक विद्वान पत्रकार हैं उर्मिलेश। उनकी ‘समाजवादी’ निष्ठाएँ जगजाहिर हैं, वे खुद साफ-साफ बताते हैं। खुद बोलते हैं कि मैं निष्पक्ष पत्रकार नहीं, ‘पक्षधर’ पत्रकार हूँ।

बीएचयू के समय से अपने साथ दो दशक से ज्यादा के संबंधों वाले पत्रकार हैं आनंद प्रधान। सीपीआई-माले के कार्यकर्ता हैं, यह किसी से छिपी बात नहीं है। जब मौका मिलता है तो वे अपनी पार्टी के लिए प्रचार भी करते हैं।

ऐसे ही कई मित्र हैं, जो पत्रकारिता में आ कर भी संघ-भाजपा के कार्यकर्ता ही बने हुए हैं।

मेरा प्रश्न है कि ऐसे मित्र खुद को सीधे-सीधे राजनीतिक कार्यकर्ता ही क्यों नहीं कहते? पत्रकार कहलाना जरूरी है क्या?

समाजवादी पृष्ठभूमि के एक वरिष्ठ पत्रकार हैं, जो मोदी के अंध-विरोधी तो नहीं हैं, लेकिन अक्सर मोदी की आलोचना ही करते हैं। महाराष्ट्र और हरियाणा की बात छिड़ी तो बोले, एक बात तो अच्छी है कि अरसे बात मुख्यमंत्री पद की दावेदारी में जाति-वाति की बात नहीं हो रही।

(स्रोत-एफबी)

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