Nimish Kumar – Spl media room @bjp HQ in Delhi..on #2StatesVerdict day..
कांग्रेस में भी भाजपा की तरह कोई मार्गदर्शक मंडल बने
कांग्रेस में भी भाजपा की तरह कोई मार्गदर्शक मंडल बने। सोनिया-राहुल-प्रियंका भाजपा सरीखे कांग्रेसी मार्गदर्शक मंडल के लिए सबसे मुफीद हैं। कांग्रेस में जनाधार वाले काबिल नेताओं की कमी नहीं, लेकिन अभी उनकी आधी से ज्यादा ऊर्जा राहुल गांधी के प्रति निष्ठा जताने और उनके बेढब बयानों को भी सही करार देने में खप जाती है। इससे परिवार का तो हित सध सकता है, पार्टी का नहीं। नरेंद्र मोदी के गुजरात से निकलकर राष्ट्रीय पटल पर छा जाने के बाद कांग्र्रेस को दीवार पर लिखी यह इबारत अच्छे-से पढ़ लेनी चाहिए कि अब देश की जनता उसके ही साथ खड़ी होगी, जो कुछ कर दिखाने में समर्थ होगा और अपने कामों से भरोसा पैदा करेगा।
राजीव सचान @ एफबी
450 का स्लीपर टिकट 1600 में ख़रीदे,आ गए अच्छे दिन!
निखिल आनंद गिरी
‘प्रीमियम तत्काल’ उर्फ ‘सरकारी दलाली टिकट’. कमाल है कि चुनाव में ये मुद्दा क्यों नहीं बना. टिकटों की दलाली रोकने के लिए खुद दलाल बन जाओ. रेलवे का ये आइडिया इतना जबरजस्त है कि मुसाफिरों के ‘अच्छे दिन’ लाने वालों को उसी ट्रेन के आगे पटरी पर बांध देने का मन करता है जिसके लिए 450 का स्लीपर टिकट 1600 में ख़रीदे हैं. सीनियर सिटिजन के लिए भी दलाली में कोई दया नहीं..बाह रे दलाल-धर्म, न लाज-न सरम..(फेसबुक ट्रैवल्स)
(स्रोत-एफबी)
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक सांस्कृतिक संगठन -एक गुदगुदा देने वाला मजेदार चुटकुला
अरविंद शेष
एक गुदगुदा देने वाला मजेदार चुटकुला-
“राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक सांस्कृतिक संगठन है और राजनीति में इसका कोई हस्तक्षेप नहीं है…!”
यह चुटकुला नया नहीं है, लेकिन वाजपेयी-आडवाणी से चलते हुए यह मोदी-शाह-खट्टर-बत्रा वगैरह के अलावा सरकारी संस्थानों तक के शीर्ष पदों के सर्वेसर्वा बनाए जाने के बावजूद जब वे “साधु-भाव” से बोलते हैं कि “आरएसएस एक सांस्कृतिक संगठन है और इसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है” तो और ज्यादा मजा आने लगता है..! दरअसल, वे जानते हैं कि ये वही महान हिंदू समाज है, जिसे राजनीति को संस्कृति से अलग बता कर गधा बनाया जा सकता है! इनके हिसाब से संस्कृति माने खाली गाना-बजाना-नाचना, व्रत-त्योहार, पूजा-पाठ, सांस्कृतिक वर्चस्व के लिए किसी भी तरह का “यज्ञ” (2002 टाइप!), बियाह-शादी आदि है..!
राज-काज की राजनीति तो छोड़िए, वे हर वक्त इस पर परदा डालने की जुगत में रहते हैं कि जाति-व्यवस्था के सबसे मुख्य और सड़ांध के साथ-साथ (इनकी) संस्कृति के ही नाम से जो-जो होता है, वह कैसे राजनीति है..! और संस्कृति के दायरे में राजनीतिक गतिविधियां आती हैं या नहीं…! हालांकि वे अपने स्तर पर इसे खूब निभाते है! वे आपको बेवकूफ बनाने के लिए हर बार कहेंगे कि “आरएसएस एक सांस्कृतिक संगठन है और राजनीति से इसका कोई लेना-देना नहीं है”, लेकिन उनकी अपनी राजनीतिक शाखा भाजपा की जिंदगी “आरएसएस निर्देशित” ही होनी चाहिए और अब सरकारी संस्थानों से लेकर मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री पद भी चाहिए…!
…यह ध्यान रखिए… कि यह उनकी संस्कृति की सियासत है, सांस्कृतिक रूदाली नहीं…! सांस्कृतिक ठगी की राजनीति ही उनके लिए “संस्कृति” है..! इसलिए यह एक मजेदार चुटकुला नहीं, पाखंड और धूर्तता की राजनीति है… ख़ालिस राजनीति…!!!
राज ठाकरे की पार्टी जल्दी ही महाराष्ट्र में सिर्फ मानसिक अवस्था होने वाली है
आलोक पुराणिक
1- महाराष्ट्र में सरकार बनाने का क्लेम राज ठाकरे ने यह कहते हुए किया-सिंगल की लार्जेस्ट पार्टी। सिंगल तो गणित की टर्म है, लार्ज, लार्जेस्ट तो मानसिक अवस्था है। खैर, राज ठाकरे की पार्टी जल्दी ही महाराष्ट्र में सिर्फ मानसिक अवस्था होने वाली है।
2- काला धन कब आ रहा है-भाजपा नेता इस सवाल का जवाब कुछ वैसा देंगे, जैसा कांग्रेसी यह पूछने पर देंगे कि राहुल बतौर नेता बिहेव करना कब शुरु करेंगे
(स्रोत-एफबी)