दीपिका पादुकोणमुंबई। फिल्म ‘हैप्पी न्यू ईयर’ के प्रोमोशन में व्यस्त दीपिका पादुकोण हाल ही में एक न्यूज चैनल पर फिल्म के बारे में बातचीत करते हुए रो पड़ीं. शो के दौरान बोमन काफी भावुक हो गए। उन्होंने कहा, ‘हम अलग हो रहे हैं, समय-समय पर आंखे भर आ रही हैं। लोग सिस्कियां लेने के लिए कोनों में छुप रहे हैं। ‘
तभी दीपिका की आंखे भर आईं। फराह ने बोमन को कहा कि वो उन्हें क्यों रुला रहे हैं लेकिन बोमन ने आगे कहा, ‘ये 200 दिनों तक साथ रहने और अलग नहीं होने की चाहत रखने की पवित्रता है।’
बोमन ने कहा कि, ‘आज हम शाहरुख के साथ मैं हूं न देख रहे थे और फिल्म के हर पल को याद कर रहे थे। आज से 25 साल बाद हम दुनिया के किसी होटल के कमरे में बैठे होंगे, हैप्पी न्यू ईयर देख रहे होंगे और ऐसा ही महसूस कर रहे होंगे।’
इसके बाद दीपिका और फराह और ज्यादा भावुक हो गईं। शाहरुख ने ट्वीट करके दोनों को ‘लवेबल इमोश्नल फूल’ बताया।
नरेंद्र मोदी जी, बिहार विधानसभा के चुनाव के लिए जब आप वोट मांगने जाएं तो जरा इन लोगों के सवालों के जवाब के साथ जाएं । और हां, बुलेट ट्रेन का ख्वाब दिखाने के बजाय पहले लोगों की बुनियादी जरूरतें पूरी करें !!!
Sushant Jha
Priyabhanshu ने ठीक ही लिखा है कि Narendra Modi जी को अब बिहार या पूरव की ओर जानेवाले लोगों की सुविधा के लिए रेलवे में कुछ ठोस सुधार करना ही होगा। देख रहा हूं कि गरीब तो गरीब-खाते-पीते लोग भी ट्रेन में यात्रा नहीं कर पा रहे। पिछले दस सालों में हालत और खराब हुई है।दिल्ली से लेकर कलकत्ता तक की जो अधिकांश दरिद्र पट्टी है और जहां से सबसे ज्यादा पलायन हुआ है, वहां ऐसा होना स्वभाविक है। जरूरत है कि दिल्ली से कलकत्ता तक डेडिकेटेड फ्रेड कॉरीडोर को पहले लागू किया जाए-बुलेट ट्रेन बाद में चलाइयेगा। इस रूट पर नई ट्रेनों को चलाने के लिए जगह नहीं है। कहीं ऐसा न हो कि ट्रेन सुधार के लिए कोई अन्ना हजारे टाइप का व्यक्ति आन्दोलन करने आ जाए। हम सबको मिलकर इस पर दवाब बनाने की जरूरत है।
गरीब तो गरीब-खाते-पीते लोग भी ट्रेन में यात्रा नहीं कर पा रहे – बिहार्र जाने वाली ट्रेन का बुरा हाल
रवीश कुमार ..जितना शोषण वामपंथी नेताओ ने मजदूरों और कर्मचारियों का किया है उतना शोषण किसी ने नही किया होगा …
प्राइम टाईम में सावजी भाई और रवीश कुमार
मित्रो, सूरत की कम्पनी हरेकृष्ण डायमंड के चेयरमैन सावजीभाई का इंटरव्यू देख रहा था … घोर वामपंथी चैनल एनडीटीवी पर .. इंटरव्यू लेने वाले थे रवीश कुमार … एक दो सवालों के बाद रवीश कुमार के अंदर का छुपा वामपंथीपना जाग उठा .और उन्होंने सावजी भाई ढोलकिया से पूछा “क्या आपने काल मार्क्स को पढ़ा है ? क्योकि मुझे लगता है आपने जरुर उन्हें पढ़ा होगा तभी आप मजदूरों के प्रति इतने संवेदनशील है.
ये सवाल सुनकर मै चौक उठा ..क्योकि एक राष्ट्रीय चैनल पर एक मशहूर एंकर और पत्रकार इतना बचकाना और घटिया सवाल क्यों पूछ रहा है … खैर … पक्के गुजराती जिन्हें गुजरात में सवाया गुजराती कहते है सावजी भाई ने जोरदार तमाचा रवीश कुमार के गाल पर मारा … खैर असली तमाचा तो नही मारा लेकिन चोट असली तमाचा ये ज्यादा लगी होगी क्योकि रवीश कुमार का शक्ल भी बता रहा था कि जोरदार तमाचा लगा है ..
सावजी भाई ने जबाब दिया ” ये मार्क्स कौन है ? माफ़ कीजियेगा कभी नाम सुना ही नही क्योकि मैंने सिर्फ चौथी क्लास तक की पढाई सरकारी प्राथमिक शाळा में की है .. फिर जिन्दगी के जद्दोजहद में जुट गया .हाँ मै रोज जिन्दगी और गरीबी की किताब पढ़ता हूँ”
फिर तुरंत ही रवीश कुमार धन्यवाद बोलकर भाग लिए ….
मित्रो, सच्चाई ये है कि ये वामपंथी ही गरीबो और मजदूरों के असली दुश्मन है … उन्हें भड़काकर हडताल करवाकर अपनी नेतागिरी चलाते हैं .. यूनियनबाजी करते है .. और खुद शानोशौकत की जिन्दगी जीते है …
मै जब मेरठ युनिवर्सिटी में एमबीए की पढाई करता था तब अपने एक मित्र जो एसएफआई से जुड़े हुए थे उनके साथ दिल्ली में मार्क्सवादी नेता हरकिशन सिंह सुरजीत से मिलने गया था .. मैंने अपनी आँखों से देखा की हरकिशन सिंह सुरजीत मर्सीडीज कार में चलते थे … मैंने सोचा की एक तरफ तो ये पूंजीवाद का विरोध करते है और पूंजीवादी देशो का खिलाफत करते है दूसरी तरफ पूंजीवादी देशो के प्रोडक्ट इस्तेमाल करते है … उस दिन से ही मुझे वामपंथियों से नफरत हो गयी … हलांकि मै चे ग्वेरा से बहुत प्रभावित रहा हूँ और उन्हें हीरो मानता हूँ …
इन वामपंथियो ने अहमदाबाद, कानपुर और मुंबई की मिलो में मजदूरों को मालिको के खिलाफ भड़काकर उन्हें बर्बाद कर दिया क्योकि मालिको ने तो दूसरा धंधा शुरू कर दिया लेकिन मिले बंद होने से लाखो मजदूर और उनके परिवार सडक पर आ गये.
सावजी काका द्वारा कारोबार के ऐवज में बम्पर बोनस बोनस
संजय तिवारी
सावजी काका सत्तर के दशक में सूरत आये थे. खाली हाथ. काम की तलाश में. उधार लेकर हीरा कारोबार शुरू किया और आज ४५ साल के कारोबारी संघर्ष के बाद ६००० करोड़ के श्रीकृष्णा एक्सपोर्ट्स के मालिक हैं.
कारोबार का यह कोई इतना बड़ा कारु का खजाना नहीं है कि उनका विशेष तौर पर जिक्र किया जाए लेकिन कल से वे इसलिए चर्चा में हैं कि उन्होंने अपने यहां काम करनेवाले १२०० कर्मचारियों को ५० करोड़ खर्च करके कार, घर और ज्वैलरी का दीपावली तोहफा दिया है.
कारोबार के ऐवज में बोनस की रकम भी इतनी बड़ी नहीं है कि सावजी काका को सिरमाथे पर बिठा लिया जाए. लेकिन सावजी काका की तारीफ होनी चाहिए. जमकर होनी चाहिए. क्योंकि पूंजीवादी शोषण के ऐसे दौर में जब कर्मचारियों का शोषण लाभांश बढ़ाने का सबसे बड़ा हथियार हो गया हो तब सावजी काका या नारायणमूर्ति जैसे लोग समझाते हैं दौलत अपनों के बीच बांटने से भी बढ़ती है.
वे अपने कारीगरों को औसत एक लाख से ऊपर महीने का मेहनताना देते हैं. वे मानते हैं कि हमारा पूरा कारोबार उन्हीं कारीगरों की बदौलत चलता है जिन्हें वे बोनस बांटकर नाम कमा रहे हैं. सूरत वाले सावजी काका की यही समझ शायद उन्हें यहां तक लाई है. कर्मचारियों का पेट काटकर, हक छीनकर अमीर होनेवाले कारोबारियों के लिए सावजी काका इस दीवाली पर सबसे बढ़िया तोहफा है.