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संपादकों-पत्रकारों से प्रधानमंत्री मोदी का दिवाली मिलन

दिवाली मिलन के बहाने पत्रकारों से मिले पीएम नरेंद्र मोदी
पत्रकारों से रूबरू होंगे पीएम नरेंद्र मोदी

दिवाली मिलन के बहाने पत्रकारों से मिले पीएम नरेंद्र मोदी
पत्रकारों से रूबरू होंगे पीएम नरेंद्र मोदी
लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत हासिल कर सरकार बनाने के बाद से नरेंद्र मोदी ने मेनस्ट्रीम मीडिया से जैसे मुंह ही मोड़ लिया था. इसे लेकर प्रिंट और इलेक्ट्रौनिक मीडिया के संपादकों में नाराजगी थी. पत्रकारों की एक संस्था ने बाकायदा इसपर खत लिखकर चिंता प्रकट की थी. लेकिन आज दिवाली मिलन के बहाने चाय पार्टी में पत्रकारों और संपादकों को बुलाकर मोदी ने प्रेस को संतुष्ट करने की कोशिश की. दिल्ली में बीजेपी दफ्तर में पत्रकारों के लिए दिवाली मिलन समारोह का आयोजन किया गया. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे. कार्यक्रम में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज व प्रकाश जावड़ेकर के अलावा कुछ बीजेपी नेताओं ने भी हिस्सा लिया. प्रधानमंत्री ने मीडियाकर्मियों को दिवाली की बधाई देते हुए कहा कि मीडिया से उनका पुराना रिश्ता रहा है. कभी दिवाली मिलन समारोह में वे पत्रकारों के लिए कुर्सियां लगाया करते थे और न आज मिलन समारोह में हिस्सा ले रहे हैं.

आजतक की नंबर एक पर वापसी

टीआरपी के मैदान में घमासान
टीआरपी के मैदान में घमासान

आजतक को नंबर एक की कुर्सी से बहुत समय तक दूर रखना मुश्किल है. ये बात एक बार फिर से साबित हो गयी. आपको याद होगा पिछले हफ्ते (41वें हफ्ते में) इंडिया टीवी ने आजतक को पछाड़कर नंबर एक की कुर्सी पर अपना कब्ज़ा जमाया था. लेकिन एक ही हफ्ते वह पहले पायदान पर रह पाया. आजतक की फिर से नंबर एक पर वापसी हो गयी है और दोनों चैनलों के बीच ठीक-ठाक फासला भी है.

42वें हफ्ते में सभी चैनलों की स्थिति:

आजतक 16.6

इंडिया टीवी 15.6

एबीपी न्यूज़ 15.4

ज़ी न्यूज़ 10.5

इंडिया न्यूज़ 9.9

न्यूज़ नेशन 7.9

न्यूज़24 7.5

IBN7 6.5

तेज 5.1

एनडीटीवी इंडिया 4.9

दिल्ली से बिहार के लिए खुलने वाली ट्रेनों में चल रही बेतहाशा भीड़ की खबर पर सेंसरशिप

डॉ.मुसाफिर बैठा

लो! मात्र जुम्मा जुम्मा आठ दिन आये हुए हुए हैं इस अच्छे दिन के, पर भोगो प्रेस सेंसरशिप :

बड़ी खबर है कि दिल्ली से बिहार के लिए खुलने वाली ट्रेनों में चल रही बेतहाशा भीड़ की खबर को कवर करने गये न्यूज चैनलों के रिपोर्टरों को रेलवे प्लेटफौर्म पर जाने से रोका गया है। यानी यह एक तरह से प्रेस की स्वतंत्रता एवं अधिकार पर पहरा लगाना है।

परदेस कमाने गये लोग अपने घर, बिहार आकर छठ मनाते हैं। अभी दिल्ली से पटना को आने वाली ट्रेनों में जबर्दस्त भीड़ चल रही है। इस मौके को सँभालने की गरज से स्पेशल ट्रेनें चलाने के बावजूद रेलवे व्यवस्था चरमरा गयी है।

आरक्षित बौगी में भी लोग भेड़ बकरियों की तरह ठुंस कर आ रहे हैं। आरक्षित टिकट रहते भी जहाँ तहां यहाँ तक कि toilet में भी खड़े होकर लोग सफ़र करने को मजबूर हैं। कुछ टिकट कटाए लोग ट्रेन के अन्दर घुस तक नहीं पा रहे।

धर्म की सरकार होने के बाद भी धर्मांध यात्री परेशान हैं! सरकार का रेल प्रशासन तो फेल हो ही रहा है, आस्तिकों को अपने विकट हालात में छोड़ उनके 33 करोड़ सर्वशक्तिमान देवी देवता भी ‘फेक’ साबित हो रहे हैं! उनके किसी काम के साबित नहीं हो रहे! छट्ठी मैया को तो कम से कम इस घड़ी में भक्तों की मदद को आना चाहिए!

स्रोत@एफबी

जाओ फराह खान, तुम्हें माफ़ किया ‘तीस मार खां’ बनाने के लिए

दीपक दुआ,फिल्म समीक्षक

जाओ फराह खान, तुम्हें माफ़ किया ‘तीस मार खां’ बनाने के लिए… ‘हैप्पी न्यू इयर’ बना कर तुम ने उस पाप से मुक्ति पा ही ली… तुमने एक बार फिर साबित कर दिया कि अपने यहां मसाला फिल्मों की परंपरा में मनमोहन देसाई की असल वारिस तुम ही हो… तुम्हारी फ़िल्में (तीस मार खां के अलावा) मनोरंजन देती हैं, सुकून देती हैं, दिमाग को भले ही खटकें, दिलों को अच्छी लगती हैं… और बड़ी बात यह कि जेबों पर डाके नहीं डालतीं, पैसे वसूल कराती हैं…

तो दोस्तों, खालिस बॉलीवुड स्टाइल का एंटरटेनमेंट चाहिए तो ‘हैप्पी न्यू इयर’ को दोस्तों के साथ, परिवार के साथ एन्जॉय कीजिए… रिव्यू सुनना चाहें तो एफ. एम. रेनबो पर शनिवार 25 अक्टूबर को सुबह 11.30 से 11.55 के बीच मिलते हैं…

स्रोत@एफबी

400 की ट्रेन टिकट 2000 रुपये में बेचे और फिर पैसेंजर टॉयलेट में सफर करे

निखिल आनंद गिरी

(रेलवे हाय-हाय-2!!)
सिस्टम सिर्फ नॉर्मल दिनों में आराम से चलने वाले नियम-कानून को नहीं कहते. अच्छा सिस्टम एमरजेंसी के वक्त किए गये इंतज़ामों में दिखना चाहिए. जो सिस्टम प्रीमियम तत्काल के नाम पर 400 की टिकट 2000 रुपये में बेचे और फिर पैसेंजर या तो चढ़ ही नहीं पाए या टॉयलेट में ही पेशाब-पखाना रोककर 24 घंटे का सफर करवाये, उस सिस्टम पर पेशाब करने का मन करता है..ऐसा नहीं कि छठ पहली बार आया है या दिल्ली-मुंबई के स्टेशनों पर ये हाल पहली बार हुआ है, मगर हर साल हालत सिर्फ बदतर ही हुई है. जनरल डब्बों का हाल तो सदियों से ऐसा ही रहा है. उसमें भी औरतें, बच्चे, सीनियर सिटीज़न जाते ही हैं मगर कौन सी मीडिया या सरकार कुछ उखाड़ पाई है. दरअसल, जनरल से बात जब स्लीपर या एसी बोगी तक जाती है, हमारा ख़ून ज़्यादा अपनेपन से खौलता है. फर्क इतना है कि रेलवे का तब भी नहीं खौलता. क्या गलत है. बात करते हैं..
(फेसबुक ट्रैवल्स)

@एफबी

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