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मैगी के सच से सचमुच डर गए क्या?

गिरिजा नंद झा

maggi-noodlesअचानक से हो क्या गया है कि सेहत को ले कर इतने फिक्रमंद हो गए हैं हम? हर फिक्र को धुएं में उड़ाने वाले हैं हम? और नहीं तो क्या? क्या हम यह नहीं जानते कि बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू और दारु जानलेवा है? जानते हैं। अच्छी तरह से जानते हैं। यह भी कि इन चीजों के सेवन से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी होती है। कैंसर यानी सीधी मौत। कोई इलाज नहीं। शारीरिक यातना ऐसी कि लोग मौत की दुआ करते हैं लेकिन, मौत तय वक़्त पर ही आती है। इस मामले में कोई रियायत किसी को नहीं मिलती। हर कोई एक जैसा दुःख भोग कर मरता है। और सबसे कमाल की बात यह है कि इन चीजों के सेवन करने वालों को इस पर लिखी चेतावनी भी खुली आंखों से साफ-साफ दिखाई भी देती है। लोगों को सजग भी किया जा रहा है और सतर्क भी। टीवी से ले कर अख़बारों के जरिए। ऐसे उत्पादों पर भी साफ-साफ चेतावनी भी लिखी होती है। अब तो बड़े आकार में इन उत्पादों से होने वाले नुकसान का फोटो भी होता है। हम चेतावनी की परवाह नहीं करते।

फिर, ऐसा क्या हो गया है कि हम इस जानकारी मात्र से हम एकदम से बौखला गए हैं कि मैगी ‘जहर’ है। जहर भी ऐसा जो धीरे-धीरे शरीर की सारी गतिविधियों को शिथिल बना देता है। दिमाग से ले कर किडनी तक पर इसके गंभीर असर की बातें हो रही है। सच जान कर, हम सचमुच हैरान हैं। हैरान होने से ज़्यादा इस बात से डरे हुए हैं कि बिना बताए हमारी जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया गया। चिंता की बात तो है। हमारी जिंदगी को खतरे में डाल दिया गया है। बरसों से बच्चे, बड़े, बूढ़े और जवान इसका सेवन कर रहे हैं और वह भी स्वाद ले ले कर। स्वाद भी इतना लाजवाब कि अगर मात्रा कम पड़ जाता था तो बच्चों जैसी हरकतें करने लगते थे। जितना स्वाद ले चुके हैं, उसका कुछ ना कुछ तो असर हम पर हुआ ही होगा। भगवान जानें, अब क्या होगा हमारा? मगर, अब कर क्या सकते हैं? जो नुकसान होना था, वह तो हो चुका।

यह बात तो अब छोटे बच्चे भी समझने लगे हैं। जिन घरों में सुबह से ही बच्चे इस बात की रट लगाए रहते थे कि मुझे मैगी खाना है, तो खाना है, वही बच्चे अब इसका नाम तक जुबान पर नहीं लाते। कमाल है, हमारे बच्चे हम से कहीं ज़्यादा समझदार हैं। या फिर यूं कहें कि हमारे बच्चे स्वास्थ्य को ले कर हमसे ज़्यादा सजग और सतर्क हैं। मगर, हम कब समझदार होंगे? अब जब सच जान गए हैं तो एक फैसला हम सभी लें, अपनी सेहत को ले कर। बचे उन चीजों के इस्तेमाल से जो हमारे तन, मन और धन तीनों पर डाका डाल रहे हैं। भोज्य पदार्थ हों या फिर पेय पदार्थ-जो भी हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाता है-उसका इस्तेमाल बंद करें।

इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैगी पर कितने दिनों की पाबंदी लगी है। पाबंदी लंबी नहीं है। महीने भर की बात है। नेस्ले ने अपने मैगी के सारे पैकेट मंगा लिए हैं और पैकेट मंगाने के बाद भी साफ कर दिया है कि उसमें ऐसा कुछ भी नहीं है, जैसा बताया गया है। हम झूठे, हमारे परीक्षण झूठे। सच्चे सिर्फ मैगी बना कर हमारी जान लेने वाले हैं। मगर, इस झूठ और फरेब के बीच की छीना-झपटी में, हम अपने सेहत को ले कर सजग रहें-यह ज़्यादा जरूरी है। बाजार में जो चीजें उपलब्ध है, जरूरी नहीं कि उन सबका हम इस्तेमाल करें ही। समान बेचने वालों को अपना समान बेचना है, वह तभी बिकेगा जब वह अपने समान को बेहतर बताएगा। फैसला हमें करना है-कि हम अपने सेहत का ख्याल रखें या फिर स्वाद पर ध्यान दें। और यह सभी बातें तम्बाकू उत्पादों से ले कर दारू तक पर लागू होता है। मजऱ्ी आपकी कि आप अपने लिए क्या चाहते हैं? सेहतमंद जिंदगी या फिर यातनापूर्ण मौत…

दीपक चौरसिया के खिलाफ सम्मन

गोधन सिंह नेगी

दीपक चौरसिया एवं अन्य के खिलाफ पटना शहर न्यायालय द्वारा जारी किया गया सम्मन

दीपक चौरसिया,एडिटर-इन-चीफ,इंडिया न्यूज़
दीपक चौरसिया,एडिटर-इन-चीफ,इंडिया न्यूज़
धार्मिक भावनाओं को आहत किये जाने के कारण दीपक चौरसिया (एडिटर-इन-चीफ, इंडिया न्यूज टीवी चैनल) और अन्य लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज हुई है. आरोप लगाने वाले दिलीप कुमार का मानना है कि आशाराम पर आरोप लगने के बाद इंडिया न्यूज़ के दीपक चौरसिया ने आशाराम को बदनाम करने के लिए जानबूझकर अभियान शुरू किया था | झूठे एवं मनगढ़ंत न्यूज़ एवं “ गैंग ऑफ़ आसाराम “ इत्यादि, कार्यक्रमों को इस कुप्रचार अभियान का आधार बनाया गया जबकि पुलिस द्वारा अभी तक इस प्रकार के कोइ भी आरोप संत श्री आशाराम जी बापू पर नहीं लगाये गए थे |यह एक जानबूझकर दुर्भावना पूर्ण आशय से दीपक चौरसिया एवं अन्य द्वारा स्वार्थपूर्ण एवं कुटिल अपराधिक उद्देश्य से संत श्री आशाराम जी बापू की भारत के सामान्य जनता के सामने छवि को ख़राब करने एवं करोड़ों शिष्यों की धार्मिक भावनाओं को आहत एवं उन्हें अपमानित करने का प्रयास किया है | इसी कारण पटना के रहने वाले दिलीप कुमार ने जिनकी धार्मिक भावना को ठेस पहुंची थी, उन्होंने पटना सिटी के कोर्ट में दीपक चौरसिया एवं अन्य आरोपी जिनमे इंडिया न्यूज़ चैनल के मालिक एवं निर्देशक भी सम्मलित है, उनके खिलाफ 19मई 2014 को शिकायत दर्ज कराई |

पटना सिटी कोर्ट के न्यायालय ने सारी शिकायत को सुनकर एवं इसकी गंभीरता को देखते हुए 15 अगस्त 2015 को सभी आरोपीगण जिनमे दीपक चौरसिया इंडिया न्यूज़ चैनल के मालिक एवं निर्देशक भी सम्मलित है, उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत धरा 298 एवं 508 के तहत सम्मन जारी किया है |

(गोधन सिंह नेगी की ईमेल से आयी सूचना)

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राज्य सभा टीवी में पिछले दरवाज़े से खुल गयी इंट्री!

राज्यसभा टीवी में इंटरव्यू के नाम पर नौटंकी
राज्यसभा टीवी में इंटरव्यू के नाम पर नौटंकी
राज्यसभा टीवी में इंटरव्यू के नाम पर नौटंकी
राज्यसभा टीवी में इंटरव्यू के नाम पर नौटंकी

राज्य सभा टीवी ने जनवरी माह में पत्रकारों की भर्ती के लिए जो मैराथन इंटरव्यू आयोजित किये थे उनके परिणाम तो अभी तक घोषित नहीं किये हैं, लेकिन पिछले दरवाज़े से अपने लोगों के लिए रास्ता ज़रूर खोल दिया है. खबर है कि इन दिनों राज्य सभा टीवी में कईं लोगों को चुपके से अपॉइंटमेंट लेटर थमाए जा रहे हैं. ये पूरी प्रक्रिया इतने गुप-चुप तरीके से अंजाम दी जा रही है कि किसी को भी इसकी भनक तक नहीं है. जिन लोगों को लेटर दिए जा रहे हैं वो या तो राज्य सभा टीवी के कर्ताधर्ताओं के नज़दीकी हैं, या फिर कुछ नेताओं और आईएएस लॉबी के ऊंची पहुँच वाले रिश्तेदार.

दूसरी तरफ सैकड़ों पत्रकार जो जनवरी माह में इंटरव्यू में शामिल हुए थे वो अभी तक परिणाम की राह देख रहे हैं. गौरतलब है कि जनवरी माह में पत्रकारों की भर्ती के लिए कईं दिनों तक इंटरव्यू के नाम पर औपचारिकता निभाई गयी थी. राज्य सभा टीवी ने प्रोड्यूसर से एडिटर, रिपोर्टर से सीनियर एंकर और तकनीकी विभाग के लिए भी वाक इन इंटरव्यू का आयोजन किया था. ये इंटरव्यू कईं दिनों तक चले थे जिनमें हज़ारों की संख्या में बेरोज़गार पत्रकारों ने भाग लिया था. जिसमें बड़ी संख्या में महिला पत्रकार भी शामिल थी. लेकिन पूरी प्रक्रिया उस समय विवादों के घेरे में आ गयी थी जब पत्रकारों ने इंटरव्यू में भारी अनियमितता और गड़बड़ी की आशंका जताते हुए आयोजकों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था. इसके बाद मामले को शांत करने के लिए अगले चरण के इंटरव्यू सिस्टेमेटिक तरीके से संसद भवन में आयोजित किये गए थे.

बावजूद इसके पांच महीने बीत जाने के बाद भी राज्यसभा टीवी ने इंटरव्यू के परिणाम सार्वजनिक नहीं किये हैं। ना ही इस बारे में कोई सूचना राज्यसभा टीवी की वेब साइट पर दी गई. संसद का ये चैनल अपनी लांचिंग के समय से ही वित्तीय अनियमितताओं और नियुक्ति में भ्रष्टाचार को लेकर विवादों में रहा है. पिछले दिनों कैग ने भी राज्य सभा टीवी में हुई पत्रकारों की नियुक्तियों में भारी भ्रष्टाचार और करोड़ों की वित्तीय अनिमियताओं का खुलासा किया था, बावजूद इसके जनता के पैसों से चलने वाले संसद के इस चैनल में पिछले दरवाज़े से नियुक्ति पत्र थमाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है. जबकि इंटरव्यू में शामिल हज़ारों बेरोज़गार पत्रकार अभी तक परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे हैं.

आरोप हैं कि चैनल में चयन की पूरी प्रक्रिया में कभी भी कोई पारदर्शिता नहीं बरती गयी. चैनल में भर्ती और चयन की कमान अभी भी उन्हीं लोगों के हाथों में है जिनपर भारी भ्रष्टाचार और अनियमितता के आरोप लगे हैं. आरोप हैं कि इस सरकारी चैनल में पत्रकारों के चयन के लिए कभी भी कोई निष्पक्ष समिति गठित नहीं की गयी और सुविधानुसार कुछ ख़ास लोगों को लाकर उन्हें ऊँचे पद और वेतन पर प्रमोट कर दिया गया. जिसके चलते पत्रकारों में नाराज़गी बढ़ रही है और पत्रकारों का एक प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर इस मामले में हस्तक्षेप की मांग करने जा रहा है.

प्रदेश के पत्रकारों की ठेकेदारी कर रही यूनियन के पास है कितने पत्रकार ?

नवजीत सिंह

उरई जालौन.जहाँ शासन कमजोर होता है वहा पर कोई भी उसकी छाती पर चढ़ बैठता है , पत्रकारों के स्वयंभू नेताओ के मामले में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है।

श्रमजीवी पत्रकार संघ में राष्टीय अध्यक्ष से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक का कार्यकाल आजीवन है इस कारण लगभग सभी पत्रकार इस यूनियन का साथ छोड़ चुके है.

कांग्रेस के ज़माने में इस यूनियन को लखनऊ के चाइना मार्किट में दफ्तर उपहार में मिल गया था जिसकी कीमत अब करोडो में है , यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष की रोजी रोटी इसके ही किराये से चलती है ।

क्योकि उनके पास बरसो से कोई अखबार और नौकरी नहीं है फिर सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से इनको लाखो रुपये की व्यवस्था हर साल क्यों करती है सोचना चाहिए कि क्या इस पत्रकार विहीन यूनियन से पत्रकारों को साधने में उन्हें 1 % भी सफलता मिल पा रही है ?

सहारा के पत्रकार के खाते से गायब हुए रूपये

पत्रकार के खाते से गायब हुए रुपये

एटीएम में फर्जीवाड़ा कर रूपये निकालने का मामला थम नहीं रहा. अब इसकी चपेट में पत्रकार भी आने लगे हैं. हाल ही में राष्ट्रीय सहारा अखबार में काम करने वाले पत्रकार आलोक कुमार निगम के खाते से साढ़े चार हजार रूपये ऐसे ही गायब हो गए. नोयडा सेक्टर 11 के आईसीआईसीआई बैंक के एटीएम में उन्होंने अपने बैलेंस की जानकारी हासिल की और निकल गए.ठीक उसके बाद ही उनके एकाउंट से साढ़े चार हजार रुपये गायब हो गए. पूरी खबर नीचे पढ़ें –

पत्रकार के खाते से गायब हुए रुपये
पत्रकार के खाते से गायब हुए रुपये

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