Home Blog Page 318

सामने खड़ा है मीडिया का आपातकाल- सतीश के सिंह

मीडिया खबर मीडिया कॉन्क्लेव में ‘राजनीतिक दलों की पत्रकारिता : वॉररूम, सोशल मीडिया और प्राइम टाइम की बहसें’ पर परिचर्चा

टीवी पत्रकारिता प्रायोजित जर्नलिज्म के दौर से गुजर रही है। हम राजनीतिक दलों के ‘टूल’ बनते जा रहे हैं। पत्रकारिता पर आर्थिक दबाव पत्रकारिता के लिए एक बड़ा संकट बन कर सामने खड़ा है। दरअसल, पूरा परिदृश्य ‘मीडिया के आपातकाल’ की ओर अग्रसर हो रहा है। ये बातें वरिष्ठ पत्रकार और लाइव इंडिया चैनल के संपादक सतीश के सिंह ने 27 जून को पुरोधा पत्रकार एस पी सिंह की स्मृति में दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित सातवें मीडिया खबर मीडिया कॉन्क्लेव में ‘राजनीतिक दलों की पत्रकारिता : वॉररूम, सोशल मीडिया और प्राइम टाइम की बहसें’ शीर्षक परिचर्चा में भाग लेते हुए कही।

इस अवसर पर अपने विचार रखते हुए वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने कहा कि पत्रकारिता के स्वरूप में बदलाव का सिलसिला अनवरत जारी रहा है और हर दौर की अपनी चुनौतियां होती हैं। उन्होंने पत्रकारिता पर किसी संकट की अवधारणा को खारिज करते हुए कहा कि मुख्य धारा की पत्रकारिता हमेशा कॉरपोरेट से प्रभावित रही है और पत्रकारिता में इमरजेंसी जैसी कोई बात नहीं है। आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता आशुतोष ने पत्रकारिता पर राजनीतिक दबाव की बात को रेखांकित करते हुए कहा कि पत्रकारिता में बुनियादी तौर पर बदलाव तथा बाजार और पत्रकारिता में संतुलन की जरूरत है। इंडिया न्यूज के संपादक दीपक चौरसिया ने राजनीतिक दलों के मीडिया प्रबंधन में आए बदलाव को समझाते हुए कहा कि आज कोई भी नेता बिना अपनी पार्टी के मीडिया कॉडिनेटर की सहमति के किसी चैनल के कार्यक्रम में हिस्सा लेने को तैयार नहीं होता और राजनीतिक दल अपनी सहूलियत से मीडिया से बातें करना चाहते हैं।

पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर मंडराते संकट की चर्चा करते हुए वरिष्ठ पत्रकार शैलेश कुमार ने कहा कि अगर मीडिया खुद को बड़े बदलाव ने नहीं गुजारता है तो न्यू मीडिया इसे खत्म कर देगा। हिन्दुस्तानी चैनलों के मुकाबले पाकिस्तानी चैनलों को ज्यादा पेशेवर करार देते हुए और अंग्रेजी चैनलों को हिन्दी चैनलों की नकल करने वाला बताते हुए उन्होंने अनर्गल कार्यक्रमों के पीछे पत्रकारों और संपादकों की अकर्मण्यता को जिम्मेदार ठहराया। न्यूज चैनलों पर किसी सियासी दबाव होने की बात को खारिज करते हुए आज तक चैनल की तेज-तर्रार एंकर अंजना ओम कश्यप ने कहा कि हम राजनीतिक दलों से सवाल करने और उनकी नींद हराम करने की स्थिति में हैं और हम ऐसा कर रहे हैं, इसलिए यह कहना उचित नहीं होगा कि हम रेंग रहे हैं। मीडिया में महिलाओं के प्रति परंपरागत सोच को कठघरे में खड़ा करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें राजनीतिक पत्रकारिता करने के लिए लड़ना पड़ा। कार्यक्रम में अपने विचार रखते हुए राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के नेता डॉ. अरुण कुमार ने कहा कि पत्रकारिता में आई गिरावट को राजनीति, न्यायपालिका और शिक्षा में आई गिरावट से अलग करके नहीं देखा जा सकता। कमजोर होते मूल्यों के इस दौर में पीढियां कुंठित और दिशाहीन पैदा हो रही हैं।

कार्यक्रम के अंतिम चरण में प्रश्नोत्तर सत्र का आयोजन हुआ, जिसमें वक्ताओं ने कार्यक्रम में उपस्थित लोगों के सवालों के जवाब दिए। कार्यक्रम का संचालन पत्रकार निमिष कुमार ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन मीडिया खबर के संपादक पुष्कर पुष्प ने किया।

एसपी और एमजे अपने समय में पत्रकारिता की सबसे यशस्वी और उत्पाती जोड़ी !

एम जे अकबर

दिलीप मंडल,पूर्व प्रबंध संपादक,इंडिया टुडे

एस पी सिंह
एस पी सिंह

पत्रकारिता की दुनिया में जब मैं क़दम रख रहा था तब हमारे सामने दो सुपरस्टार एंग्री यंगमैन संपादक थे। एसपी और एमजे। एसपी यानी रविवार के संपादक सुरेंद्र प्रताप सिंह और संडे और फिर द टेलीग्राफ़ के संपादक एमजे अकबर। उस दौर में राजेंद्र माथुर, राहुल बारपुते और प्रभाष जोशी वगैरह भी थे पर ये तीनों सम्मानित थे, लेकिन मिज़ाज से यंग नहीं थे। एंग्री तो बिल्कुल नहीं थे। ये तीनों भले लोग थे।

एसपी और एमजे अपने समय में पत्रकारिता की सबसे यशस्वी और सबसे उत्पाती जोड़ी थी। एक समय तो यह भी कहा जाता था कि मंत्री और मुख्यमंत्री लोग मनाते थे कि ये लोग उनकी कवर स्टोरी न छापें क्योंकि कवर स्टोरी छपी नहीं कि कुर्सी गई, टाइप माहौल बन गया था।

अलग-अलग समय में मुझे एसपी और एमजे दोनों के साथ काम करने का मौक़ा मिला था। 1993 में मैं पहली बार इंडिया टुडे में एसपी की वजह से ही आया। इंडिया टुडे में मैं एसपी के कॉलम का पेज देखता था तो इसके लगभग बीस साल और सात-आठ नौकरियों के बाद एमजे और अरुण पुरी ने मुझे इंडिया टुडे का एक्ज़िक्यूटिव एडिटर बनाया। इस बीच अकबर जब संभवत: 2002 में स्टार न्यूज़ के लिए ‘अकबर का दरबार’ कार्यक्रम करते थे तब मैं वहां सीनियर प्रोड्यूसर के पद पर था। होने को तो मैं प्रभाष जोशी के जनसत्ता में भी था। लेकिन प्रभाष जी आदरणीय थे, जबकि एसपी और एमजे अपेक्षाकृत दोस्ताना। इसलिए इन दोनों से पत्रकारिता का हुनर सिखने का मौक़ा ज्यादा मिला।

एम जे अकबर
एम जे अकबर

एसपी के बारे में मैं पहले भी लिखता रहा हूँ। इसलिए आज एमजे की बात। बीजेपी ने उन्हें झारखंड से राज्यसभा में लाने का फ़ैसला किया है। यह तो एमजे की राजनीति है। और इस राजनीति से मेरा विरोध उतना ही पुराना है जितना मेरा लिखना-पढना।

मेरा परिचय पत्रकार एमजे से है। मेरी नज़र में भारतीय पत्रकारिता में लिखने का जो कौशल एमजे के पास है, उसकी ज्यादातर लोग कामना ही कर सकते हैं। इसके पीछे कितना गहन अध्ययन होता है, उसका कुछ अंदाज़ा मुझे हैं। यह एमजे का फ़ैसला है कि वे अपने इस ज्ञान का इस्तेमाल पहले कांग्रेस और अब बीजेपी के लिये करना चाहते हैं।

एमजे मैगज़ीन पत्रकारिता, बल्कि व्यापक अर्थों में कहें तो नैरेटिव जर्नलिज़्म के बेताज बादशाह रहे हैं और मुझे इस क्षेत्र में उनके आस पास का कोई दिखता नहीं है। संडे, टेलीग्राफ़ और एशियन एज, ये तीन चीज़ें तो एमजे ने शून्य से पैदा कीं। हालाँकि एमजे ने पत्रकारिता और राजनीति का अजीब सा कॉकटेल बना रखा है, जहाँ कब कौन किस पर हावी होता है, यह कहना आसान नही होता।

एमजे का राजनीति में होना भारतीय पत्रकारिता का बड़ा नुक़सान है। खासकर ऐसे समय में जब कि पत्रकारिता विश्वास का सबसे बड़ा संकट झेल रही है, पत्रकार जब समाज में सम्मानित नहीं रहे और जब फिल्मों में पत्रकार जोकर या विलेन की शक्ल में ही नज़र आता है।
पत्रकारिता में आपकी कमी खलेगी एमजे। (@fb)

लंदन में जारी हुई ‘इश्क़ कोई न्यूज़ नहीं’

लंदन में जारी हुई 'इश्क़ कोई न्यूज़ नहीं’ की प्रोमो पुस्तिका
लंदन में जारी हुई 'इश्क़ कोई न्यूज़ नहीं’ की प्रोमो पुस्तिका
लंदन में जारी हुई ‘इश्क़ कोई न्यूज़ नहीं’ की प्रोमो पुस्तिका

लंदन : ‘लप्रेक : फेसबुक फिक्शन श्रृंखला की दूसरी किताब ‘इश्क़ कोई न्यूज़ नहीं को पाठकों के बीच लाने की तैयारियाँ जब ज़ोरों पर हैं, इसी बीच इसका प्रोमो लंदन में आयोजित एक कार्यशाला के उपरान्त अनौपचारिक रूप से लांच किया गया।

एसओएएस, लंदन विश्वविद्यालय, लंदन में 27-28 मई, 2015 को ‘हिंग्लिश’ को लेकर हुई दो दिवसीय कार्यशाला के समापन-सत्र के बाद ‘लप्रेक’ श्रृंखला की इस दूसरी कड़ी की प्रोमो पुस्तिका जारी तो की ही गई, साथ ही, इस कार्यक्रम में लप्रेककार विनीत कुमार ने दुनिया के अलग-अलग शैक्षणिक संस्थानों से आए लोगों के बीच लप्रेक लिखे जाने के पीछे की पूरी प्रक्रिया की विस्तार से चर्चा करते हुए अपनी पुस्तक की थीम को भी सामने रखा।

लंदन में जारी हुई 'इश्क़ कोई न्यूज़ नहीं’ की प्रोमो पुस्तिका
लंदन में जारी हुई ‘इश्क़ कोई न्यूज़ नहीं’ की प्रोमो पुस्तिका

यह सच है कि जो न्यूज़ चैनल और मीडिया दुनिया-भर की ख़बरों को अपनी ज़रूरत और मिज़ाज के हिसाब से पेश करता है, उसके माध्यम से ऐसी कई कहानियाँ, इमोशनल मोमेंट्स न्यूज़रूम की चौखट नहीं लाँघ पाते जो खुद मीडिया कर्मियों के बीच के होते हैं। इश्क़ और इमोशन के नाम पर मीडिया भले ही लव, सेक्स, धोखा से लेकर ऑनर किलिंग तक के मामले को लगातार प्रसारित करता रहे, लेकिन क्या सचमुच वह इश्क़ के इलाके में घुसने और रचनात्मक हस्तक्षेप का माद्दा रखता है। इसी प्ररिप्रेक्ष्य के अन्तर्गत प्रोमो में शामिल कुल पाँच कहानियों में से तीन कहानियों का पाठ करते हुए लेखक ने लप्रेक लिखे जाने की इस पूरी प्रक्रिया की चर्चा की।

ट्रैफिक जाम, मेट्रो की खचाखच भीड़, डीटीसी बसों के इंतज़ार के बीच लिखी जानेवाली इन फेसबुक कहानियों के बारे में प्रो.फेरचेस्का ओरसिनी (हिन्दी एवं दक्षिण एशियाई साहित्य, एसओएएस, लंदन विश्वविद्यालय, लंदन) ने कहा कि इस तरह के लेखन से हिन्दी एक नए पाठक वर्ग के बीच पहुँच सकेगी और जो कहानियाँ अब तक सोशल मीडिया के भरोसे रह गई थीं, उनके हिन्दी पाठकों के बीच किताब की शक्ल में आने से विचार-विमर्श में नया आयाम जुड़ सकेगा।

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में अध्यापन कर रहे ऐश्वर्ज पंडित ने कहा कि ये कहानियाँ बताती हैं कि हिन्दी में अलग तरह की सामग्री आने की गुंजाइश बनी हुई है और यह अच्छा ही है कि इस तरह से अलग-अलग रूपों में हिन्दी का विस्तार हो।

नेताओं और अधिकारियों का भोंपू बन गया है ज़ी टीवी देहरादून

वेद उनियाल

नेताओं अधिकारियों के बयानों को दिखाने के लिए भोंपू बना है देहरादून जी टीवी। जब भी जी टीवी खोलो, कोई नेता या अधिकारी बयान देता हुआ दिखता है। उत्तराखंड समस्याओं से जूझ रहा है। गांव से लोगों का पलायन हो रहा है। आपदा के सवाल जस के तस है।

मगर जी टीवी देहरादून में नेताओं के बयानों तक सीमित है। पत्रकारिता का यह भद्दा स्वरूप है। उत्तराखंड में पत्रकारिता के नाम पर मजाक है ये। नेताओं और अधिकारियों के लिए सुविधा का माध्यम बना है जी टीवी। हम टीवी के दर्शकों को पहाड़ों की , राजधानी की खबरें चाहिए। न कि केवल नेताओं की बयानवाजी। ई टीवी कैसा भी है पर राज्य के कुछ सवाल उठाता है। जी टीवी तो एकदम नेताओं का भौंपू बना है।

@fb

Formula Student India – Haldiya Institute of Technology

haldiya

TEAM ASPHALT is the formula student team of Haldia Institute of Technology,haldia,West Bengal. It is one of the 41 teams qualified for FORMULA STIDENT INDIA (FSI) competition 2015-16 all over India. This competition is going to be held in January 2016 in which 51 teams will participate all over India among which 10 spots are reserved for last year top ten teams,so only 41 spots are open for which teams qualify on the basis of an online test.

TEAM ASPHALT is a group of 30 hard working members belonging to different departments. It is one of the few teams which has qualified for this competition twice that also in consecutive years. This team has also participated in FORMULA STUDENT INDIA (FSI) competition in year 2014-15 and they stood 23rd all over India.

This team is very much passionate about building cars and racing as they say, “WE BUILD & WE RACE”.
For further details or to be the associate partner of the team please contact the undersigned:
SHUBHANKAR SHUBHAM (Marketing Head)-09614975810
SHARMISHTHA SINGH-08906052862

सोशल मीडिया पर मीडिया खबर

665,311FansLike
4,058FollowersFollow
3,000SubscribersSubscribe

नयी ख़बरें