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बिग बॉस के प्रतिभागियों के नाम हुए लीक,पढ़िये

गौहर खान

बिग बॉस 8 पर हावी एयरलाइंस
बिग बॉस 8 पर हावी एयरलाइंस
बिग बॉस कलर्स चैनल का अभी तक का सबसे प्रसिद्ध रियलिटी शो है. पिछले 10 सालों में इसने खूब लोकप्रियता बटोरी है. अभी तक इसके 9 सीजन हो चुके हैं और नवें सीजन के विनर प्रिंस नरूला रहे थे. दसवें सीजन की तैयारियाँ अपने आखिरी दौर में पहुँच चुकी हैं. इस बार बिग बॉस 10 में सेलेब्रिटी चेहरों के साथ कुछ नए चेहरे भी होंगे यानी कि आम लोगों को भी इस बार बिग बॉस के घर में आने का मौका मिलेगा. सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि सलमान खान बिग बॉस के प्रोमो भी शूट कर चुके हैं. फिल्म ट्यूबलाईट की शूटिंग के दौरान ही प्रोमो शूट कर लिए गए हैं. बिग बॉस-10 की अक्टूबर माह में शुरू होने की सम्भावना है.

बिग बॉस के अभी तक के विनर्स के नाम क्रमशः राहुल रॉय, आशुतोष राणा, विन्दु दारा सिंह, श्वेता तिवारी, जूही परमार, उर्वशी ढोलकिया, गौहर खान, गौतम गुलाटी और प्रिंस नरूला हैं. सीजन 10 के लिए ऑडिशन भी चल रहे हैं.

नए चेहरों के लिए पहले राउंड के लिए ऑडिशन विडियो के माध्यम से लिए गए. पुरे भारतवर्ष से लोगों ने अपने विडियो कलर्स टीवी की वेबसाइट पर अपलोड किये. चुने हुए लोगों को फ़ोन भी आ गए और दुसरे राउंड के ऑडिशन भी चुपचाप हो गए. दिल्ली में 16 और 17 अगस्त को के आर मंगलम वर्ल्ड स्कूल में दुसरे राउंड के ऑडिशन की प्रक्रिया भी पूरी हो गयी. इसी प्रकार, सभी राज्यों में ऑडिशन की प्रक्रिया हो चुकी है या चल रही है.

सूत्रों के अनुसार कुछ चेहरों के नाम लीक होकर सामने आये हैं. जिनको आप बिग बॉस-10 में देख सकते हैं. इनमें से कुछ नाम हैं :




1. कबीर बेदी : कबीर बेदी छोटे और बड़े परदे पर काम कर चुके हैं और साथ ही साथ थिएटर के मंझे हुए कलाकार हैं. बॉलीवुड में कबीर का नाम बहुत पुराना है. कबीर प्रसिद्ध एक्टर और डायरेक्टर हैं. फिल्म शाहजहाँ में इनका रोल काफी शानदार है. इसके साथ ही, कबीर हॉलीवुड में भी काम कर चुके हैं.कबीर ने चार शादियाँ की है और इनके तीन बच्चे हुए. कबीर बेदी के बारे में जानने के लिए : https://en.wikipedia.org/wiki/Kabir_Bedi

2. शाइनी आहूजा : शाइनी का जन्म 15 मई, 1973 में देहरादून, उत्तराखंड में हुआ था. यह बड़े परदे पर कई हिट फिल्मों में काम चुके हैं. जिनमें से प्रमुख हैं– गैंगस्टर, लाइफ इन ए मेट्रो, भूल भुलैया आदि. शाइनी को डेब्यू फिल्म ‘हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी’ के लिए filmfare award भी मिल चुका है.2009 में इन पर अपनी मैड के साथ बलात्कार का आरोप लगा था जिस वजह से इनका नाम काफी चर्चा में रहा था. शाइनी आहूजा के बारे में जानने के लिए : https://en.wikipedia.org/wiki/Shiney_Ahuja

3. सना सईद : सना भारत में 22 सितम्बर, 1988 में मुंबई में जन्मी मॉडल और एक्टर हैं और इन्होनें बॉलीवुड में भी काम किया है. सना की पहली फिल्म बतौर बाल-कलाकार ‘कुछ कुछ होता है’ थी. इसके बाद सना ने ‘हर दिल जो प्यार करेगा’ और ‘बादल’ फिल्में भी की थीं. इसके साथ ही, सना ने छोटे परदे पर बाबुल का आँगन छूटे न, लो हो गयी पूजा इस घर की में भी काम किया है. व्यस्क होने के बाद सना करण जौहर की फ़िल्म “स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर” में बतौर सहायक अभिनेत्री के रूप में नज़र आईं. सना के बारे में जानने के लिए : https://en.wikipedia.org/wiki/Sana_Saeed

4. राज महाजन : 21 अक्टूबर, 1977 को दिल्ली में जन्में राज महाजन संगीतकार, गीतकार, कवि, एक्टर, गायक और टीवी होस्ट हैं और प्रसिद्ध रिकॉर्ड लेबल मोक्ष म्युज़िक कंपनी और बिनाकाट्यून्स के संस्थापक भी हैं. छोटे परदे पर इनका टॉक-शो ‘म्युज़िक मस्ती विद राज महाजन’ आया करता था. लाभ जंजुआ का अपनी मौत से पहले राज के साथ इंटरव्यू काफी चर्चा बटोरचुका है. पिछले तीन सालों में बतौर संगीतकार 100 से भी ज्यादा गाने निकाल चुके हैं. राज शादीशुदा हैं और अपनी पत्नी से अलगाव के कारण अपने परिवार से अलग रहते हैं. राज के बारे में जानने के लिए : https://en.wikipedia.org/wiki/Raj_Mahajan

5. राहुल राज सिंह : प्रोडूसर और एक्टरराहुलका जन्म जमशेदपुर में हुआ था. इनका नाम टीवी एक्ट्रेस प्रत्युषा बनर्जी की मौत के बाद चर्चा में आया. इनका सम्बन्ध प्रत्युषा की मौत के साथ जोड़ा गया था. गौरतलब है कि प्रत्युषा कलर्स टीवी के प्रसिद्ध नाटक ‘बालिका-वधु’ में काम कर चुकी थी. राहुल के बारे में विकिपीडिया पर ज्यादा कुछ नहीं है. पर गूगल पर इनके बारे में आप ढूंढ सकते हैं.

6. सुनील ग्रोवर : कपिल शर्मा के शो से मशहूर हुए सुनील ग्रोवर का जन्म मुंबई में हुआ. अपने करियर की शुरुआत इन्होनें जसपाल भट्टी के साथ की थी. सुनील सब टीवी के भारत के पहले मूक टीवी-प्रोग्राम ‘गुटर-गूं’ में काम कर चुके हैं. इसके अलावा सुनील बॉलीवुड की कई फिल्मों में काम कर चुके हैं. जिनमें से कुछ हैं– प्यार तो होना ही था, द लीजेंड ऑफ़ भगत सिंह, इन्सान, गजिनी, मुंबई कटिंग, जिला गाज़ियाबाद, हेरोपंती, गब्बर इज बैक आदि. सुनील ग्रोवर के बारे में जानने के लिए : https://en.wikipedia.org/wiki/Sunil_Grover

7. नक्षत्र बागवे : 11 दिसम्बर, 1990 को जन्मे नक्षत्र एक्टर, डायरेक्टर, फिल्मकार और गे-राईट एक्टिविस्ट हैं. समलैंगिक मुद्दे पर फिल्में बनाकर चर्चा में रह चुके नक्षत्र फिल्म ‘हार्ट्स’ में बतौर लीड एक्टर काम कर चुके हैं. नक्षत्र के बारे में जानने के लिए : https://en.wikipedia.org/wiki/Nakshatra_Bagwe

8. अरमान जैन : अरमान जैन बॉलीवुड की मशहूर कपूर फॅमिली से हैं और रीमा कपूर के बेटे हैं. छोटे परदे के सीरियल ‘लेकर हम दीवाना दिल’ में काम कर चुके हैं. राज कपूर के पौत्र अरमान के बारे में जानने के लिए : http://www.bollywoodbindass.com/armaan-jain/

9. गुरमीत राम रहीम : डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक और उपदेशक बाबा गुरमीत राम रहीम काफी विवादों में रहे हैं. फिल्मों और गानों में भी अपना हाथ आजमा चुके हैं. अभी 6 म्युज़िक एल्बम निकाल चुके हैं जिनमे से प्रमुख है ‘नेटवर्क तेरे लव का’ और ‘हाईवे लव चार्जर’. इसके अलावा ‘द मैसेंजर’ और ‘मैसेंजर 2’ फिल्में बना चुके हैं जिसमें एक्टिंग से लेकर डायरेक्शन, प्रोडक्शन, कोरियोग्राफी, संगीत के सारे काम खुद ही किए. बाबा गुरमीत राम रहीम के बारे में जानने के लिए : https://en.wikipedia.org/wiki/Gurmeet_Ram_Rahim_Singh

10. राधे माँ : अपने आपको भगवान बताने वाली राधे माँ उर्फ़ सुखविंदर कौर पंजाब से है और अच्छे-खासे विवादों में रह चुकी हैं. गरीबी के दिनों में पंजाब में अपनी जीविका चलाने के लिए दूसरों के कपड़े सिलने वाली सुखविंदर बाद में राधे माँ के रूप में प्रसिद्धि पाकर काफी जायदाद की मालकिन बन गयी. राधे माँ के बारे में अधिक जानने के लिए : https://en.wikipedia.org/wiki/Radhe_Maa

(अज्ञात कुमार)

याद आये एसपी के कथित “शिष्य” – एस.एन.विनोद

SP SINGH, JOURNALIST
SP SINGH, JOURNALIST

सुविधानुसार एस पी को उद्धृत करना इन दिनों एक फैशन सा बन गया है।कथित बलात्कारी, दिल्ली के बर्खास्त मंत्री सुदीप कुमार के बचाव में आयेआशुतोष कुमार ने भी एस पी को उद्धृत किया।उनके कथित शिष्यों की चर्चा की।हो-हल्ला शुरु होगया….,एस पी के नाम के साथ उनके कथित शिष्यों को ले कर भी।

अनायास मुझे भी एसपी और उनके “शिष्य” याद आ गये।वे दिन आँखों केसामने प्रकट हो गये जब एस पी नभाटा से पृथक हो दिल्ली स्थित INS भवन में “टेलीग्राफ” के ब्यूरो से जुड़े थे।वे दिन थे जब एस पी INS भवन के ‘गेट’ पर खड़े रहते थे और उनके द्वारा तैयार अनेक पत्रकार/शिष्य कतरा कर निकल जाया करते थे।एक दिन जब मैं उनके साथ चाय के लिए ‘कॉन्स्टिट्यूशन क्लब’जा रहा था, तब INS के गेट पर खड़े हो एस पी ने दुःखी मन से कुछ”शिष्यों” को इंगित करअपनी पीड़ा व्यक्त कीथी।

और, जब एसपी इंडिया टु डे/आजतक से जुड़ गए तब पुनः वे “शिष्य” उनके इर्द-गिर्द मधुमक्खियों की तरह मंडराने लगे।सरल/उदार हृदय एस पी भी सबभूल “शिष्यों” को गले लगाते रहे।

आज जब उनके “शिष्यों” की चर्चा हो रही हैतो कथित शिष्यों की याद आना अस्वाभाविक तो नहीं ही!

(वरिष्ठ पत्रकार एस.एन.विनोद के फेसबुक वॉल से)




एसपी ने कहा था कि आशुतोष अपना नाम भी ठीक से नहीं ले पाते

रामलीला मैदान में अन्ना आंदोलन को कवर करते आशुतोष

आशुतोष के प्रति एसपी के विचार

मेरे पिताजी उन दिनों कोलकाता के नर्सिंग होम में जीवन मृत्यु के युद्ध में थे।मैं व मेरे बड़े भाई एसपी सिंह दोनों ही नर्सिंग होम के बाहर आपस में कुछ सलाह मशविरा कर रहे थे।दिल्ली से शायद मृत्युंजय कुमार जी या संजय पुगलिया जी का फोन आया था।एसपी सिंह जी ने फोन पर बात होने के बाद कहा कि मुझे दिल्ली लौटना होगा व जल्द लौट आऊंगा।तब तक तुम संभाल लोगे न ? मैं बोला की आप निश्चिन्त रहे लेकिन बात क्या है ? उन्होंने फिर बताया आशुतोष-कांशीराम एपिसोड।मेरे मुंह से निकला ठीक हुआ।उन्होंने कहा तुम इतना सैडिस्ट व नेगेटिव सोच क्यों रखते हो ?

खैर, वह दिल्ली लौट गए, वहाँ जो कुछ हुआ वह सभी को पता है।यहाँ पिताजी का निधन हो गया, भागे हुए कोलकाता लौटे।उसी साल 1996 में एक दिन कहे की आशुतोष के बारे में तुम्हारा ओपिनियन सही था।वजह भी सभी को पता है।हाँ, एक बात और कहे थे की आशुतोष ‘स’-‘श’-‘ष’ का उच्चारण नहीं कर पाता है, अपना नाम ठीक से नहीं बोल पाता है।

(वरिष्ठ पत्रकार सत्येन्द्र प्रताप सिंह के वॉल से)

देशप्रेमी ख़बरों के बीच भोंपू बना मीडिया – पुण्य प्रसून बाजपेयी

पुण्य प्रसून बाजपेयी

दिल्ली की मीडिया पर पुण्य प्रसून बाजपेयी का हल्लाबोल

तो ये सच शुरू होता है दिल्ली के एक सितारा होटल में चाय पीते दो पत्रकार और ठीक सामने के टेबल पर बैठे चंद अनजान से चेहरों की नजरों के टकराने से । नजरें टकराती है और अनजान सा शख्स मुस्कुरा कर संकेत देता है कि वह पत्रकारों को पहचान रहा है । पत्रकार कोई रुचि नहीं दिखाते । अपनी अपनी बातो में मशगूल दोनों के ही टेबल पर चाय की चुस्कियो के साथ चर्चा के केन्द्र में राजनीति ही थी । तो किसी एक टेबल पर चर्चा की जरा सी खामोशी दूसरे टेबल के चंद शब्द को एक दूसरे के कानो में घोलती ही होगी । यह एहसास दोनों टेबलों पर बैठे लोगों को हो चुका था। राजनीति से प्रिय विषय इस दौर में कुछ हो नहीं सकता । खास कर राजनीतिक अर्थशास्त्र । और इस पॉलिटिकल इक्नामी को लेकर अगर कही बहस मुहासिब हो रही है तो फिर लंबा वक्त भी नहीं लगता कि संवाद नजरों के टकराने भर का ना रहे। हुआ भी यही। पत्रकारों की टेबल के सामने जो चर्चा कर रहे लोग बैठे थे । उनमे से एक ने चाहे-अनचाहे टेबल छोड़ कर जाते दोनों पत्रकारों में से एक पत्रकार को जानते–पहचानते हुये कहा , हुजूर कभी जरुरत हो तो बताइयेगा । हम भी खबर रखते हैं। ये कहते हुये उसने अपना कार्ड निकाला । और थमा दिया । पत्रकार ने खुद का परिचय देते हुये कहा मैं …….. । एवरीबडी नोज यू सर । और आप…. जी भारत सरकार का कारिन्दा । नाम । जी कार्ड । और पत्रकार महोदय अपने अंदाज में कार्ड अपनी पेंट की जेब में डाल कर होटल से निकल गये । बात आई गई हो गई । पत्रकारिता के लिये नया कुछ भी नहीं था । कमोवेश हर सार्वजनिक जगहो पर अक्सर कुछ लोग उससे टकराते जो अपना कार्ड ये कहकर देते कि उनके पास बड़ी खबर है ।

लेकिन पहली बार भारत सरकार का कोई नौकरशाह अगर कार्ड देकर कहे…खबर हम भी रखते हैं तो मामला गंभीर तो है। और फिर यार उसके बाद मुलाकातों को सिलसिला । जिसके बाद भी नौकरशाह ने जब खबर बतायी तो पहला सवाल मेरे जहन में यही कौंधा …छापेगा कौन । और उसी के बाद से खबर मेरे पास है लेकिन इस दौर में कोई खबरनवीस या कोई मीडिया संस्थान इतनी हिम्मत दिखा नहीं पाया कि उसमें हिम्मत है ।

अरे याद जल्दबाजी में बता नहीं पाया ये मेरे साथी हैं। हम दोनों साथ ही स्कूल-कालेज में थे । लेकिन बाद में रास्ते जुदा हो गये । लेकिन सोच जुदा हो नहीं पायी । आज ही लंदन से लौटे हैं। मैंने तुमसे मिलने का जिक्र किया तो ये साथ ही आ गये । वैसे मैंने इन्हे पूरी कहानी तुम्हारे पास आते वक्त रास्ते में ही बातो बातो ही बता दी।

तो आज शनिवार का दिन था । और मुझे फुरसत थी । पिछली मुलाकत में बात खबर की निकली थी और मेरी रुचि थी कि आखिर ऐसी कौन सी खबर है जिसे दिल्ली का स्वतंत्र मीडिया छापने से कतरा रहा है या फिर स्वतंत्रता की परिभाषा मौजूदा दौर में बदल गई है । इसलिये आज की मुलाकात हमने दिल्ली के बंगाली मार्केट में तय की थी । लेकिन जब मित्र ने अपने दोस्त के बारे में बताया तो मुझे भी समझ नहीं आया कि कितनी बातचीत खुले तौर पर होने चाहिये । लेकिन खबर जानने की ललक में मैंने मित्र के बचपन के साथी की तरफ कम रुचि दिखाते हुये सवाल किया कि . यार तुम दस्तावेज लाये हो तो दिखाओ । मैं भी तो देखूं-समझूं की क्या वाकई मीडिया की उड़ान परकटे राजनेताओं को साधने की ही हो चली है या जो उड़ान भर रहे हैं, उनके पर भी कतरे जा सकते है । देखो यार किसी के पर कतरने की सवाल नहीं है । और मैं तुम्हें इसीलिये दस्तावेज देने से कतराता हूं कि तुम समूचे वातावरण का आकलन किये बगैर ही ब्लैक एंड वाइट में ही सबकुछ देखना दिखाना चाहते हो । तो क्या करें । पत्रकारिता छोड दें । छोड़ने की जरुरत नहीं है । समझने की जरुरत है । और यही बात मैं भी रास्ते में कर रहा था। क्यों तुम बताओ तुम्हारा क्या मानना है । अच्छा तुम्हारे दोस्त कुछ बोले उससे पहले मैं ही जरा एक सवाल कर लेता हूं । …यार ये बताओ कि तुम्हारा ठिकाना लंदन में है । लेकिन मिजाज तुम्हारे भी राजनीति और पत्रकारिता में रुचि रखने वाले हैं । तो अगर ये स्टोरी बीबीसी को मिल जाये तो वह क्या करता । कुछ क्षणों के लिये सन्नाटा हो गया फिर अचानक मेरा दोस्त ही बोल पडा । यार ये आईडिया तो मेरे दिमाग में तो या ही नहीं । जब दिल्ली में कोई अखबार छापने को तैयार नहीं है । तो किसी विदेशी मीडिया से संपर्क तो साधा ही जा सकता है । मुझे झटका लगा । मैं गुस्से में बोल पड़ा । यार मै सोच रहा हूं कि तुम मुझे खबर बताओगे । दस्तावेज दोगे । तो मैं न्यूज चैनल में खबर दिखाने का प्रयास करुंगा। और तुम अब विदेशी मीडिया का जिक्र करने लगे । देखो यार न्यूज चैनलों की क्या हैसियत है, ये हम इससे पहले भी बात कर चुके हैं। और मैं इन बातों को दोहराना नहीं चाहता लेकिन दो सच बार बार कहता हूं । देश की सुबह अखबारों से ही होती है। और न्यूज चैनलों का खबरो को दिखा कर रायता फैलाना किसी इंटरटेन्मेंट से कम नहीं होता । जिसपर कितना भरोसा कौन करे ये भी सवाल है । तो मैं स्टोरी किल तो नहीं करना चाहता। और तुम जो लगातार न्यूज चैनलों को जिक्र कर रहे हो तो तुम ही बताओ कौन सी स्टोरी उसने ब्रेक की है। और अखबारों की हर खबर के ब्रेक होने के बाद कौन सी स्टोरी न्यूज चैनल वालों ने नहीं दिखायी।

यार सवाल ये नहीं है कि मौजूदा दौर में वही मीडिया खुद में कैसे सिमट गया ।या फिर सत्ता से दो दो हाथ करने से कतराने लगा है । जो मीडिया खबरों को लेकर अपनी बैचेनी छुपा नहीं पाता था । खबर मिलते ही दो लकीर पत्रकारों में दिखायी देती थी । एक जो खबर दिखाने पर आमादा तो दूसरी खबर के जरिये सौदेबाजी पर आमादा । लेकिन मौजूदा दौर में ना खबर दिखाने कि कुलबुलाहट है और ना ही सौदेबाजी पर अंगुली उठाने की हिम्मत । और इसकी वजह । वजह तो कई हो सकती हैं , लेकिन समझना ये भी होगा कि मौजूदा वक्त में सारी समझ आर्थिक मुनाफे पर जा टिकी है । ये तो पहले भी था । न । पहले मुनाफे का मतलब खबरों के जरीये सत्ता बदलना भी होता था । और मुनाफा देश के लिये होता था। गोयनका ने यूं ही एक्सप्रेस को इंदिरा की सत्ता से टकराने के लिये नहीं झोंक दिया । तो तुम्हारा मानना है कि अब राजनीतिक सत्ता के बदलने से मोहभंग हो गया है या फिर मुनाफे का मतलब खबरो को बेच कर सत्ता के अनुकूल हो जाना है । नहीं यार सरलता से समझो तो अब खबरों से सरकार नहीं गिरती । ये इसलिये सच है क्योंकि सरकारों को गिरा कर जो दूसरा सत्ता में आयेगा वह कहीं ज्यादा लूट मचायेगा। तो खबरो की साख की हथेली तो हमेशा खाली ही रहेगी। इस हकीकत को इस रुप में भी देख सकते हो कि मौजूदा वक्त में ज्यादातर पत्रकार राजनीति से नहीं कारपोरेट से जुडते है । कारपोरेट के इशारो पर राजनेता होते है । संसद कुछ इस तरह से चलती है जैसे कोई टीवी कार्यक्रम। अंतर सिर्फ इतना है कि टीवी पर खबरों के प्रयोजकों के बारे में बताया जाता है । लेकिन संसद के स्पोंर्सस सामने आ नहीं पाते। याद करो सवाल दलित उत्पीडन का हो या किसानो का । संसद के किस सदन में कोरम पूरा हुआ। 10 फीसदी से ज्यादा सांसद सदन में बैठे नजर नहीं आये । लेकिन जीएसटी हो या आर्थिक मुद्दे से जुडा कोई विधेयक । समूचे सांसद मौजूद रहते है । व्हिप जारी किया जाता है । यानी देश के घाव जब सत्ताधारियो ही नहीं बल्कि हर राजनेता को सियासी गुदगुदी देने लगे तो फिर अगला सवाल ये भी होगा कि राजनेताओ के तौर तरीको में कोई अंतर नहीं है । और तुम जिस खबर को जानने के लिये बेताब हो तो ये भी समझ लो उसके कटघरे में ऐसा कोई राजनीतिक दल नहीं जिसका नेता कटघरे में ना खडा हो । तो फिर तो खबर छापने में कोई परेशानी तो किसी को होनी नहीं चाहिये । और इससे बेहतर क्या हो सकता है कि हर राजनीतिक दल के नेताओ का नाम है । तो किसी को कोई परेशानी नहीं होगी । अरे यार ये तो हम कहते है कि राजनीतिक सत्ता एक हमाम है । लेकिन सत्ता में रहने वाला हमेशा खुद को विपक्ष से अलग और बेहतर दिखाता है । मानता है । बताता है । और चुनावी जीत यानी जनादेश का हवाला देकर ये कहने से नहीं चूकता कि सत्ता चलाने का पांच बरस का लाइसेंस तो जनता ने दिया है । फिर पांच साल के बीच में आपने हिम्मत कैसे हुई । और हो सकता है कटघरे में खडा कोई सत्ताधरी आपको चेता सकता है कि, पत्रकारिता छोड आप चुनाव लडकर देख लों । ये क्या बात हुई । यार जब जिक्र हो चला है तो समझो इसे देश में राजनीतिक सत्ता की दिशा – दशा है क्या । और क्यो मौजूदा वक्त में खबरे नहीं तारिफे रेगती है । और तारिफो को पॉजेटिव खबर माना जाता है । क्रिटिकल को देशद्रोही .। यानी खबरो को देशप्रेमी बनाया जा रहा है । क्यों मीडिया प्रचार के भोंपू में तब्दील हो रहा है । क्योंकि प्रचार ही देश का सबसे मजबूत स्तम्भ हो चला है । और अखबार/पत्रकार भी प्रचारक की भूमिका में खुद को खड़ा करने की बेचैनी पाले हुये हैं।

(जारी….)

(लेखक के ब्लॉग से साभार)

तरुण वत्स ने दिया यूनीवार्ता से इस्तीफा

युवा पत्रकार तरुण वत्स ने राष्ट्रीय न्यूज एजेंसी यूनीवार्ता से इस्तीफा दे दिया है और वह नोटिस पीरियड सर्व कर रहे हैं। इस बीच खबरे हैं कि वह बहुत जल्द किसी राष्ट्रीय दैनिक अख़बार से अपनी नयी पारी की शुरुआत करेंगे। तरुण को हाल ही में डॉ. एस राधाकृष्णन स्मृति मीडिया सम्मान से नवाजा गया था।




तरुण यूनीवार्ता में उप संपादक के पद पर अपनी सेवायें दे रहे थे और फिलहाल खेल डेस्क पर कार्यरत थे। उन्होंने करीब ढाई साल पहले यूनीवार्ता में ज्वाइन किया था। हिंदी जर्नलिज्म में जामिया मिल्लिया इस्लामिया से पोस्ट ग्रेजुएट तरुण ने ग्रेजुएशन के दौरान से ही कई बड़े संस्थानों के साथ बतौर फ्रीलांस काम किया है जिसमें नई दुनिया, नेशनल दुनिया तथा आईएनएस मीडिया ग्रुप शामिल है।

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