Home Blog Page 270

अजीत अंजुम ने भी स्वीकारा शहाबुद्दीन की महानता!

अजीत अंजुम, प्रबंध संपादक, न्यूज़24

अजीत अंजुम,प्रबंध संपादक,इंडिया टीवी-

shahabuddin-freeमुझे शहाबुद्दीन की महानता और महत्ता का इल्म नहीं था . अब हो गया है . मैं सार्वजनिक रूप से उनकी अहमियत और हैसियत को स्वीकार करता हूँ ..सलाम करता हूँ …आपकी हाँ में हाँ मिलाकर खुद को आपकी भीड़ में शामिल करता हूँ …शाहबुद्दीन एक महात्मा हैं, जिनपर दर्जनों मुकदमें ठोक दिए गए …सिवान के तीन भाइयों को हवा ने मारा और इस महान नेता को नामजद कर दिया गया …तीन बेटों की मौत पर उस पिता का मानसिक संतुलन बिगड़ गया और वो रहनुमा सरीखे शहाबुद्दीन पर इल्ज़ाम लगा बैठे ..उन्हें इलाज की ज़रूरत है ताकि वो संतुलित होकर एक रहनुमा की रहनुमाई कबूल करें और अपने बेटों के क़त्ल को ऊपर वाले की कारस्तानी मानकर अपना रुदन बंद करें …जेल से रंगदारी और सुपारी के झूठे इल्जाम लगाने वाले लोग आत्मग्लानि के साथ प्रायश्चित करें कि उन्होंने सिवान के महान को बदनाम करने की साजिश रची ,जिसकी वजह से उन्हें 11 साल सलाखों के पीछे काटना पड़ा ….शहाबुद्दीन को बेगुनाह साबित करने के लिए जो गवाह सबकुछ देखकर भी मुकर गए ,उन्हें आत्मज्ञान हुआ कि जो उन्होंने देखा/समझा था ,वो उनकी दृष्टि का दोष था , मृगतृष्णा थी . तभी तो गवाह बनने के अपने गुनाह से प्रायश्चित करने के लिए या तो वो अदालत पहुंचने से पहले गुम हो गए या फिर अपनी भूल को सुधार कर अदालत में आखिरी सच बता दिया कि कैसे शहाबुद्दीन जैसे जनसेवक को फंसा दिया गया.. वो तमाम लोग ,जो उनके खिलाफ लिखते बोलते रहे हैं , भूल सुधार करें …जयकारा जगाएं कि साहब बाहर आए हैं क्योंकि वो देश / काल और परिस्थिति की ज़रूरत हैं ..देखिए न , हजारों लोग जिसके स्वागत में उमड़े हों , सैकड़ों गाड़ियों का काफिला जिसके पीछे हो , इतने तोरण द्वार सजे हों , जिनकी गाड़ियों का सनसनाता क़ाफ़िला देखकर टोल नाकों के गेट अपने आप खुल गए हों …फेसबुक पर इतने पैरोकार हों , उन्हें आप गैंगस्टर और अपराधी कैसे कह सकते हैं …नीतीश सरकार को ये जांच करानी चाहिए कि एक जनसेवक पर 39 मुक़दमें कैसे लाद दिए गए …उन तमाम पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए ,जिनकी जांच की वजह से कई मामलों में उन्हें निचली अदालतों से सजा हुई . उन पुलिस वालों और सरकारी वकीलों का गांधी मैदान में अभिनन्दन होना चाहिए , जिनकी वजह से एक बेकसूर रिहा होकर सैकड़ों गाड़ियों के काफिले के साथ सिवान लौटा है …सिवान के इस रॉक स्टार को कोई गैंगस्टर कैसे कह सकता है

और हाँ , मैं अब से साहेब शहाबुद्दीन से लेकर ऐसे हर उस शख्स की बंदगी करना चाहता हूँ , जिन्हें कानून ने बहुत सताया फिर भी वो बरी होकर बाहर निकले …चाहे तो माननीय सूरजभान हों या रामा सिंह . सुनील पांडेय हों या मुन्ना शुक्ला और तो और आदरणीय अतीक अहमद और मुख़्तार अंसारी से लेकर बृजेश सिंह तक मेरा सलाम पहुंचे . हम जैसे कूढ़मगज और कमजर्फ लोगों ने इन्हें अब तक गलत समझा…जनता तो अपने जनसेवक को पहचानती ही है,तभी तो जेल से रिहा होने के बाद इतने तोरण द्वार सजते हैं , उनके इंतजार में भीड़ की शक्ल में हज़ारों लोग जमा होते हैं .उनकी एक झलक पाने को कोई पेड़ पर चढ़ जाता है तो कोई सेल्फी विथ शहाबुद्दीन के लिए भीड़ में सुराख़ करते हुए उन तक पहुँच जाता है ..कोई उनसे लिपट कर अपने मोबाइल के लैंस की जद में उन्हें खींचकर ले आता है…तो जयकारा लगाकर ही ख़ुश हो लेता है …सेल्फ़ी लेकर ख़ुद को धन्य समझने वाली जनता की नब्ज़ को हम नहीं समझ पाए तो क़सूर हमारा ही है न ?

अपने तीन बेटों के क़त्ल के बाद से मातम मना रहे चंदा बाबू को सिवान के चौक चौराहों पर छाती पीटकर क़बूल करना चाहिए कि उन्होंने साज़िशन शहाबुद्दीन सरीखे जनसेवक पर ग़लत इल्ज़ाम लगाया.उन्हें बदनाम किया …और अगर चंदा बाबू ऐसा न करें तो शहाबुद्दीन को मानहानि का मुक़दमा ठोक देना चाहिए …शहाबुद्दीन की बदनामी के लिए मीडिया के तमाम साथियों को क्या करना चाहिए …ये भी तय होना चाहिए. @fb

पीएम जहां देखते हैं टीवी वाले भी वहीं देखते हैं

नतमस्तक पत्रकारिता का श्रेष्ठ नमूना नरेंद्र मोदी का हालिया इंटरव्यू

जगदीश्वर चतुर्वेदी

मैं टीवी चैनल वालों की पीएमबुद्धि पर फिदा हूँ,वे जानते हैं पीएम को कौन सी खबर अच्छी लगती है और कौन सी बुरी लगती है।जेएनयू में वाम की विजय वाली खबर जितनी देर से दिखाई जाए उतना ही टीवी वालों का भला है, बेहतर हो पीएम के सोने के बाद और सुबह उठने के पहले दिखाकर खत्म कर दी जाए।

बेचारे पीएम की आँखों के दीवाने ! पीएम जहां देखते हैं टीवी वाले भी वहीं देखते हैं!!

काश ,हम सबके पास पीएम की आंखों को देखने की कला होती,हुनर होता,फिर सोचो फेसबुक टीवी टीवी होता!!

@fb

कन्हैया कुमार अबकी कोई प्रेस कांफ्रेस नहीं करेंगे

कन्हैया ने रिपोर्टर से पूछा कि क्या आप ज़ी न्यूज़ से हैं
कन्हैया ने रिपोर्टर से पूछा कि क्या आप ज़ी न्यूज़ से हैं

संजय तिवारी –




shahabuddin-recordआज उस हत्याकांड का विवरण पढ़ रहा था कि चंदा बाबू के दो बेटों को कैसे तेजाब से नहलाकर मारा गया था। फिर तीसरी संतान जो इस तेजाबी मौत का गवाह था उसे भी रास्ते से हटा दिया गया। बूढ़े मां बाप क्यों जिन्दा हैं उन्हें भी पता नहीं।

इस बीच काफी समय बीत चुका है। बदले समय में सर्वहारा की आवाज उठानेवाले शहाबुद्दीन की पालकी उठा रहे हैं। चंद्रशेखर प्रसाद सीपीआई या सीपीएम वाले होते तो हो सकता है किसी के प्राइमटाइम पर उनका भी जिक्र आता लेकिन वे ठहरे एमएल वाले इसलिए फासिस्टो को बैकफुट पर रखने के लिए जरूरी है कि चंद्रशेखर परसाद को फिर फिर मार दिया जाए।

कन्हैया कुमार अबकी कोई प्रेस कांफ्रेस नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें भी उसी तरह से लालू परसाद का आशिर्वाद प्राप्त है जैसे शहाबुद्दीन को। दोनों गुरुभाई हैं। इसलिए आड़े वक्त में एक दूसरे के साथ खड़ा रहा जाए। और ये जो चंदा बाबू हैं उनकी उमर का तकाजा है कि वे भी मर ही जाएं ताकि बार बार बयान देकर लोगों का समय बर्बाद न करें।
सीवान में सेकुलर समाज को नया सिपाही मिल गया है।

(पत्रकार संजय तिवारी के वॉल से)

नतमस्तक पत्रकारिता का श्रेष्ठ नमूना नरेंद्र मोदी का हालिया इंटरव्यू

नतमस्तक पत्रकारिता का श्रेष्ठ नमूना नरेंद्र मोदी का हालिया इंटरव्यू

ओम थानवी

नतमस्तक पत्रकारिता का श्रेष्ठ नमूना नरेंद्र मोदी का हालिया इंटरव्यू
नतमस्तक पत्रकारिता का श्रेष्ठ नमूना नरेंद्र मोदी का हालिया इंटरव्यू

अम्बानी के नेटवर्क 18 चैनल समूह के लिए हुआ प्रधानमंत्री मोदी का सवा घंटे लम्बा इंटरव्यू पिछले एक हफ़्ते से हर रोज़ दिखाया जा रहा है। इसे नतमस्तक पत्रकारिता का श्रेष्ठ नमूना कहा जा सकता है। कसर अर्णब गोस्वामी ने भी न छोड़ी थी, पर राहुल जोशी तो जैसे बिछ-से गए। तीखा या जवाबी सवाल छोड़ दीजिए – हर सवाल मानो ‘पीएम’ को अपना वक्तव्य पेश करने के लिए संकेत भर देता था। अर्थव्यवस्था, भ्रष्टाचार, काला धन, न्यायपालिका, मीडिया – मोदी निर्बाध अपने वक्तव्य/संदेश परोसते रहे। काले धन पर सवाल करते वक़्त भाई ने विदेशों से धन लाने की बात को सकारात्मक अंदाज़ में भी न छुआ।




मैंने राहुल जोशी को टीवी पर कभी नहीं देखा। इंटरव्यू में भी ख़ुद बताते हैं कि यह उनका पहला इंटरव्यू है। पर इंटरव्यू में ही हम यह जानते हैं कि मोदीजी से उनका पुराना राब्ता है, जब वे कहते हैं मैं आपसे पिछले वर्षों में कई बार आपसे मिला हूँ, आप मुख्यमंत्री थे तब भी और प्रधानमंत्री बनने के बाद भी। यह राब्ता उस मुद्रा में भी झलकता है जब प्रधानमंत्री सारे इंटरव्यू दोनों पाँव ज़मीन पर धरे बात कर रहे हैं, राहुल टाँग पर टाँग रख कर। वे अम्बानी चैनल समूह के सबसे बड़े सम्पादक कब और कैसे बने पता नहीं, पर उनकी योग्यता का सार इंटरव्यू के अंत में प्रधानमंत्री द्वारा प्रदत्त प्रमाण-पत्र (आप तो आर्थिक विषयों के पत्रकार हैं, राजनीति पर अच्छी बात कर लेते हैं) को रोज़ प्रसारित किए जाने में निहित है! मज़ा यह है कि यह अनौपचारिक हिस्सा प्रधानमंत्री और भाजपा ने इंटरव्यू को अपने यूट्यूब प्रचार-इस्तेमाल में हटा दिया है!

(वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी के एफबी वॉल से)

जेएनयू ने अबकी सांप्रदायिक और फ़ासिस्ट मीडिया को हराया है

पंकज श्रीवास्तव

वाम छात्र संगठनों की जेएनयू में जीत कोई अनोखी बात नहीं है, लेकिन इस बार उन्होंने सिर्फ विरोधियों को नहीं हराया, उस युद्धोन्मादी, सांप्रदायिक और फ़ासिस्ट मीडिया को भी हराया है जो फर्ज़ी वीडियो का बम बनाकर राजसत्ता की तोपों में डाल रहा था।

उन्होंने जेएनयू को ‘देशद्रोही’ बताने के लिए अहर्निश अभियान चलाया, पूरे देश में जेएनयू के प्रति घृणा पैदा करने की कोशिश की, लेकिन जेएनयू के छात्रों ने बता दिया कि देश किसी न्यूज़रूम के हाहाकारी, आग लगाऊ दानव का बँधुआ नहीं है, वे ख़ुद देश हैं- वी द पीपुल।

बधाई कॉमरेडों !

देश के विराट शोक को शक्ति में बदलने के लिए।

तुम असल देशभक्त हो जो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक की तक़लीफ़ों से विचलित होकर लुटियन दिल्ली में तूफ़ान मचा देते हो।

देश की वास्तविक एकता का रास्ता यही है कि छहों दिशाओं में पसरे दु:खों के बीच पुल बाँधे जायें..बधाई !

@fb

सोशल मीडिया पर मीडिया खबर

665,311FansLike
4,058FollowersFollow
3,000SubscribersSubscribe

नयी ख़बरें