किशोर अजवानी क आते ही IBN7 में काफी कुछ बदल रहा है. पहले लोग बदले और प्रोग्रामिंग में बदलाव किया जा रहा है. इसी कड़ी में एक नया कार्यक्रम ‘सौ बात की एक बात’ नाम से शुरू किया है जिसे किशोर अजवानी ही पेश करेंगे.सप्ताह में पांच दिन इसका प्रसारण होगा.
शहाबुद्दीन की रिहाई पर चैनलों ने जिस तरह से कवरेज की, मानो कोई खलनायक नहीं नायक आ रहा हो. लेकिन इस तथाकथित महाकवरेज में अंग्रेजी अखबार टेलीग्राफ् को जो दिखा वो किसी समाचार चैनल को नही दिखा. दरअसल उस भीड़ में पत्रकार राजदेव रंजन का हत्यारा मुहम्मद कैफ भी था जिसकी तलाश सीवान पुलिस कर रही है. शार्प शूटर मुहम्मद कैफ भागलपुर जेल से रिहाई के वक्त शहाबुद्दीन के बिल्कुल पास खड़ा था लेकिन न वो पुलिस को नज़र आया और न चैनल के संपादकों व उनके रिपोर्टरों को.वे बस रायता फ़ैलाने में रह गए और टेलीग्राफ में खबर प्रकाशित होकर आ गयी. टेलीग्राफ की रिपोर्ट –
ज़ी बिज़नेस के प्रमुख समीर आहुलवालिया का ग्रुप से नाता आखिरकार टूट ही गया. उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है जिसे स्वीकार भी कर लिया गया. कहा जा रहा है कि ऐसा उन्होंने दवाब में किया है.
समीर आहुलवालिया पिछले 19 साल से ज़ी मीडिया ग्रुप से जुड़े हुए थे.वैसे तो ज़ी में उनका कार्यकाल अच्छा रहा,मगर वे तब चर्चा में आए जब ज़ी न्यूज़ के प्रमुख सुधीर चौधरी के साथ ज़ी जिंदल उगाही मामले में उनका भी नाम आया. जिंदल से सौ करोड़ मांगने के आरोप में वे सुधीर चौधरी के साथ कुछ दिनों के लिए तिहाड़ भी गए.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता पर ज़ोरदार हमला किया है और उन्हें दलाल की संज्ञा दे डाली. दरअसल शेखर गुप्ता ने एक ट्वीट किया था जिसमें निशाने पर दिल्ली सरकार थी. शेखर गुप्ता ने ट्वीट करते हुए लिखा-
1st malaria deaths in 5 yrs, 1st Chikungunya death now. While Delhi govt safely out conquering Punjab, Goa & Gujarat https://t.co/xJ9hIHp0Hq
इसी ट्वीट पर अरविंद केजरीवाल ने जवाबी हमला करते हुए लिखा – “राजनीति करनी है, खुल कर सामने आओ। पहले कांग्रिस की दलाली करते थे, अब मोदी की? ऐसे लोगों ने पत्रकारिता को गंदा किया”
राजनीति करनी है, खुल कर सामने आओ। पहले कांग्रिस की दलाली करते थे, अब मोदी की? ऐसे लोगों ने पत्रकारिता को गंदा किया https://t.co/N5Bj2Xf5hB
किसी के त्योहार के रोज़ ख़लल पैदा करने वाले सच्चे भारतीय नहीं हो सकते। ईद पर पशु-हिंसा का मुद्दा भाजपा नेता और कार्यकर्ता-भक्त उठा रहे हैं। उन्हें इस ओछे आचरण पर शर्म आनी चाहिए। घृणा और सांप्रदायिकता के पुजारी, मानव हिंसा (‘वध’!) के गुनहगार पशु-हिंसा की बात कर रहे हैं। उन समुदायों के लोग भी, जहाँ मौक़े-बेमौक़े बलि दी जाती है और जिनके समाज में मुसलमानों से कहीं ज़्यादा मांसाहारी मौजूद हैं।
दरअसल यह हिंसा या मांसाहार का नहीं, मुसलिम समुदाय के प्रति पाली और पनपाई जा रही हिक़ारत का इज़हार है। इसीलिए मैंने इसे शर्मनाक कहा।
कतिपय जैन समाजियों की आकस्मिक सक्रियता भी हैरान करती है। उनकी शाकाहारी जीवन-शैली का मैं मुरीद हूँ। मैं ख़ुद (प्याज़-लहसुन त्यागी होने के कारण) लगभग किसी जैन सरीखा ही शाकाहारी हूँ। पर उससे क्या। क्या हम अपनी विचार-पद्धति, जीवन-शैली, खान-पान, पहनावा दूसरे समाज पर ज़बरन थोपे सकते हैं? त्योहार के दिन किसी समाजी को ज़लील कर पर-पीड़ा का सुख लेना किस तरह सहनीय है? मेरे मित्र Deep Sankhla ने अच्छी मिसाल दी है: इसलाम में ब्याज हराम है। क्या कभी किसी मुसलमान ने ब्याज-बट्टे का रोज़गार करने वाले जैन या वणिक समुदाय के सदस्यों पर उँगली उठाई है?
धार्मिक आस्थाएँ तर्कों के पार होती हैं। हर धर्म में कुरीतियाँ मौजूद हैं। मगर दूसरों पर झाड़ू लहराने से बेहतर होता है अपने घर में झाड़ू बुहारना! अपनी हक़ीक़त से (जान-बूझकर) बेख़बर रह दूसरे के घरों की ओर ताकना और झाँकना शरीफ़ों का काम नहीं हो सकता।