ब्रेकिंग न्यूज़ ,ब्रेकिंग न्यूज़
चला दो एक और टिकर
अरे रेप हुआ है,रेप
खेल लो आधे घंटे मेरी अस्मत का खेल
मेरे नोचे जाने का विजुअल भी है
‘बाईट’ भी है
ले लो ‘फोनो ‘कानून ‘के दलालों से
लगा दो मुझपर बदचलनी का आरोप
की बहुत छोटे थे मेरे कपड़े
ब्रेकिंग न्यूज़ ,ब्रेकिंग न्यूज़
चला दो एक और टिकर
अरे रेप हुआ है,रेप
खेल लो आधे घंटे मेरी अस्मत का खेल
मेरे नोचे जाने का विजुअल भी है
‘बाईट’ भी है
ले लो ‘फोनो ‘कानून ‘के दलालों से
लगा दो मुझपर बदचलनी का आरोप
की बहुत छोटे थे मेरे कपड़े
न्यूज़ चैनलों की बदमाशी देखिये यदि सरकार जनता की किसी मांग पर ध्यान न दे तो कहते है कि सरकार अड़ी हुई है और जनता कि अनदेखी कर रही है यदि ध्यान देती है तो एंकर चिल्लाना शुरू कर देते है कि सरकार झुक गयी है I
अभी अभी ए बी पी चैनेल पर एंकर चिल्ला रहा है कि सोनिया गाँधी ने गृह मंत्री और प्रधान मंत्री से बात कि है कानूनों में बदलाव कि घोषणा आज किसी भी समय हो सकती है और फांसी की सजा का प्रावधान किया जा सकता है I
इसमें झुकने की बात कह कर सरकार के अहम को चोट पहुंचा कर बनते काम को बिगाड़ने का काम ये चैनल ही करते है इनके रिपोर्टर इतने सर्वशक्तिमान होते है जो पलक झपकते ही यह बता देते है की सरकार या फलां नेता क्या सोच रहा है और क्या करने वाला है अर्थात ये रिपोर्टर नहीं भगवन हो गए. (सुरेश शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार)
कहते हैं चोर चोरी से जाए हेरा – फेरी से न जाए. ऐसा ही कुछ हाल जी न्यूज का हो गया है. जी न्यूज की साख तो कोयले की कालिख से काली हो ही चुकी है. सो अब वह बेशर्म हो चला है. शर्म – हया छोड़ मीडिया को खुलेआम मंडी बनाकर बेचने की कोशिश करता दिखने लगा है.
अपने संपादकों को सौ करोड़ मांगने नवीन जिंदल के दरवाजे भेजा. लेकिन वहां पैसा तो नहीं मिला , उलटे स्टिंग की सीडी मुफ्त में मिल गयी जिसकी बड़ी कीमत जी न्यूज को चुकानी पड़ी और उगाही वाले दोनों संपादक तिहाड़ जेल पहुँच गए.
अब जी ग्रुप के मालिक और संपादक कोर्ट – कचहरी और पुलिस के चक्कर काट रहे हैं और साख बचाने की अंतिम कोशिश के तहत मान – हानि का दावा करते फिर रहे हैं.
जाहिर है कि ये सब करने में जी न्यूज़ का काफी पैसा खर्च हो रहा है. उधर सौ करोड़ नहीं मिले, इधर ये खर्चा. अब इसी खर्चे की भरपाई के लिए जी न्यूज ने सरोकार के साथ धन कमाने की युक्ति निकाली है.
बलात्कार का रियल्टी शो / महिला अपराध पर न्यूज़ चैनल अपने अंदर भी झांके / आजतक, जी न्यूज़, एबीपी न्यूज़ महिला अपराध पर खुद भी एक बार आइना देख लें.
बलात्कार, बलात्कार और बलात्कार. पिछले छः दिनों से समाचार चैनलों पर बलात्कार शब्द का न जाने कितनी बार इस्तेमाल हुआ. जिस शब्द को बोलने में जबान लड़खड़ाती थी आज वह शब्द पानी की तरह बह रहा है. समाचार चैनलों की कृपा से बच्चे – बच्चे की जुबान पर शब्द बैठ गया और अब इसे बोलते हुए पहले जैसी जबान लड़खड़ाती नहीं.
एक नज़र में समाचार चैनलों के सरोकार पर न्योछावर होने का जी करता है. उनकी क्रांतिकारिता को सलाम ठोकने का दिल करता है. दुष्कर्म के खिलाफ उनकी मुहिम काबिलेतारीफ है. लेकिन क्या वाकई में महिला अपराध को लेकर समाचार चैनल इतने संवेदनशील हैं और जड़ से इसे खत्म करने के लिए गंभीर भी?
ज़ी –जिंदल उगाही मामले में जी न्यूज़ के साथ –साथ बाकी चैनलों की भी इज्जत उतर गयी. इसलिए अभी सरोकार की दरकार भी थी. दिल्ली दुष्कर्म मामले ने ये मौका भी दे दिया और लगभग सारे चैनल सरोकार का लबादा ओढ़ कर सरोकारी चैनल की भूमिका में आ चुके हैं. लेकिन धीरे – धीरे ये सारा सरोकार रियल्टी शो में तब्दील होता जा रहा है.
इंडिया टुडे की मुहिम रंग लायी, रेप हो गया : इंडिया टुडे जिसे आजकल अश्लील टुडे भी कहने लगे हैं , उसकी सेक्स को लेकर मुहिम सफल रही. दिल्ली में बलात्कार हो गया. हर साल की तरह इंडिया टुडे का सेक्स सर्वे वाला अंक कुछ दिन पहले ही आया था.
खास बात ये रही कि पिछले कई सालों के सेक्स सर्वे के चुनिंदा अंकों को भी इसमें शामिल किया गया था. यह इंडिया टुडे की तरफ से पाठकों को दिया जाने वाला एक्स्ट्रा बोनस है ताकि पुराने सर्वे का भी पाठक आनंद उठा सके.
ख़ैर ताजा अंक की बात करते हैं. इंडिया टुडे के सेक्स सर्वे वाले ताजा अंक में आवरण कथा पर एक स्त्री के शरीर के नीचे हिस्से की नग्न तस्वीर छपी है. इंडिया टुडे की इस तस्वीर पर हंगामा भी हुआ और आलोचना भी.
लेकिन इंडिया टुडे के संपादक को संभवतः यह लगता है कि ऐसी तस्वीर को देखकर जो लोग आलोचना कर रह हैं वे संकीर्ण मानसिकता के हैं और वे औरत की देह के ऊपर नहीं उठ पाए हैं. उनकी नज़र में संभवतः सेक्स को लेकर जागरूकता फ़ैलाने का काम कर रहे हैं. सेक्स शिक्षा दे रहे हैं.
लेकिन सवाल है कि आवरण कथा पर स्त्री की नग्न तस्वीर प्रकाशित कर के ही क्या सेक्स के प्रति सामाजिक जागरूकता फैलाई जा सकती है. यह स्त्री को भोग की तरह पेश करने की सफल कोशिश है.
यह सेक्स के प्रति सामाजिक जागरूकता फ़ैलाने से ज्यादा सेक्स को लेकर गाँव – कस्बों , ट्रक ड्राइवरों और बस ड्राइवरों को उकसाना है कि सेक्स करो, सहमति से या असहमति से या फिर बलात्कार.
मान लेते हैं कि इंडिया टुडे अच्छी नीयत से ही सेक्स सर्वे और नग्न तस्वीरों को छाप रहा होगा. लेकिन सवाल उठता है कि आपके पाठक उसे किस तरह से ले रहे हैं? उनपर क्या प्रभाव पड़ रहा है?
दूसरी बात यदि इंडिया टुडे (हिंदी) के पाठक के संदर्भ में सोंचा जाए कि उसका पाठक वर्ग कौन है? कौन से लोग उसे पढते हैं ? तो भी चीजें स्पष्ट होगी.
इंडिया टुडे (हिंदी) का बहुत बड़ा पाठक वर्ग है. शहर से लेकर गाँव तक में उसकी पकड है. इंडिया टुडे को हिंदी को देश – समाज में रुचि रखने वाले शख्स से लेकर बहुत सारे ट्रक ड्राइवर, ऑटो ड्राइवर और अपेक्षाकृत कम पढ़े – लिखे लोग भी पढते हैं. उनपर इंडिया टुडे के सेक्स सर्वे और उभार की सनक का क्या असर होता होगा? ये जानने की इंडिया टुडे के संपादक ने कभी जहमत उठाई.
उदाहरण के तौर पर एक ट्रक ड्राइवर जिसने अपनी ट्रक में इंडिया टुडे की कॉपी रखी हुई थी वह शराब के नशे में अपने साथी ट्रक ड्राइवरों को इंडिया टुडे का सेक्स सर्वे वाला अंक दिखाकर कह रहा था कि इसे देखकर यार मूड बन जाता है. कुछ – कुछ होता है. और क्या होता है, दिल्ली बलात्कार आपके सामने है.
बलात्कार एक घिनौना अपराध है तो इसकी पृष्ठभूमि बनाने वाले भी इसके लिए जिम्मेदार हैं. इंडिया टुडे और दूसरी पत्रिकाएं भी ऐसे सेक्स सर्वे और नग्न स्त्री देह को आवरण पर छापकर ऐसी ही पृष्ठभूमि तैयार कर रही है. यदि ये काम सरस सलिल करे तो उसके लिए शब्द बर्बाद करना व्यर्थ है.लेकिन इंडिया टुडे सरस सलिल नहीं और उसे अपनी जिम्मेदार निभानी चाहिए. सेक्स को लेकर जागरूकता फैलाना और सेक्स को टूल बनाकर पत्रिका का सर्कुलेशन बढ़ाने के अंतर को हिन्दुस्तान पहचानता है.