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न्यूज़ एक्स की रिपोर्टर रीद्धिमा बुरी तरह घायल

न्यूज़ एक्स की रिपोर्टर रिद्धिमा तोमर पुलिस की क्रूरता की शिकार बनी

NewsX reporter Ridhima Tomar got badly injured while reporting from India Gate, where thousands have gathered to protest against government’s inaction towards Delhi gang rape accused.

न्यूज़ एक्स की रिपोर्टर रिद्धिमा तोमर पुलिस की क्रूरता की शिकार बनी

NewsX reporter injured ridhima tomar Breaking News : आम लोगों के साथ – साथ अब पत्रकार भी दिल्ली की नकारा पुलिस की क्रूरता और बर्बरता का शिकार बनने लग गए हैं. कुछ देर पहले हुए पुलिस द्वारा किये गए लाठी चार्ज और आंसू गैस छोड़ने से एक महिला पत्रकार बुरी तरीके से घायल हो गयी.

न्यूज़ एक्स की रिपोर्टर रिद्धिमा तोमर (Ridhima Tomar) के पैर में आंसू गैस का गोला आकर लगा जिससे वे बुरी तरह घायल हो गयी.

जींस को फाडकर उनके पैर में गोला धंस गया, जिससे उन्हें चोट लगी है और गिरते – पड़ते ही उन्हें पुलिस की बर्बरता की कहानी पीटूसी की शक्ल में सुनाई. यह चोट उन्हें तब लगी जब वे लाइव कर रही थी. बाद में उन्हें लोग उठाकर ले गए.

रिद्धिमा को इस कदर चोट लगी हुई थी कि वे स्क्रीन पर ही फफक –फफक कर रो पड़ी और दिल्ली की बर्बर पुलिस तमाशा देखती रही.

आईबीएन-7 के रिपोर्टर की साहित्यिक छौंक सुनकर निराला ने भी सिर पीट लिया होगा

आईबीएन-7 के इंडिया गेट पर खड़े रिपोर्टर ने अपनी रिपोर्ट में साहित्यिक छौंक देते हुए कहा “कि जैसा कि महादेवी वर्मा ने लिखा था कि दुख ही जीवन की कथा रही, क्या कहूँ आज जो नहीं कही!”

निराला ने अपना सिर पीट लिया होगा!

सुबह से देख रही हूँ कुछ चैनलों के रिपोर्टर बाक़ायदा हांफ-हांफ कर बोलते हुए बात में गंभीरता पैदा करने की क़ोशिश कर रहे हैं।

समझ नहीं आती कि एक गंभीर मसले को ये लोग इस तरह से पेश क्यों करना चाहते हैं?

संयत और सटीक बोलेंगे तब भी लोग उनके चैनल के सामने बैठे रहेंगे, देखेंगे, सक्रिय भी होंगे।

(दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य में संलग्न सुधा सिंह के फेसबुक वॉल से साभार)

आजतक की महिला एंकरों और महिला आयोग की बेशर्म हँसी में क्या अंतर है?

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चेहरा व्यक्तित्व का आईना होता है. आपके काम का अक्श आपके चेहरे पर दिखता है. एक टेलीविजन पत्रकार के लिए भाव – भंगिमा का अपनी रिपोर्ट से मैच करना बेहद जरूरी है. तभी वह जेनुइन लगता है. फर्ज कीजिये शम्स ताहिर खान सीधे खबर पढ़े . उनका खबरों का कहने का उनका शायराना अंदाज़ उनसे छीन लिया जाए तो शम्स – शम्स नहीं रहेंगे. इसी तरह से एबीपी न्यूज़ के उमेश कुमावत जो एक जेनुइन रिपोर्टर लगते हैं उसमें उनके चेहरे के भाव – भंगिमा का बड़ा रोल है. ठीक इसी तरह रवीश और पुण्य प्रसून बाजपेयी को भी उदाहरण के तौर पर ले सकते हैं. लेकिन इनके चेहरे पर ये भाव बनावटी नहीं हैं, बल्कि वर्षों ख़बरों की ताप में तपकर आयी है. ये खबरों के साथ जुडकर ख़बरें करते हैं और वह उनके चेहरे से और उनके हाव भाव से दिखता है. इसलिए इनके आते ही स्क्रीन बदलना नामुमकिन हो जाता है. रवीश जैसे रिपोर्टर – एंकर की खासियत है कि वे कैमरे से हटने के बाद भी खबरों से जुड़े रहते हैं. ये नहीं कि एक तरफ संवेदनशील खबर की और दूसरे ही पल हँसी ठठा में लग गए. तभी इनकी अलग पहचान है.

लेकिन आजतक की टीआरपी कठपुतलियाँ इससे कोसों दूर है. तस्वीर दर्शा रही है कि गमगीन माहौल में ये कैसे हंसी – ठठा कर रही हैं. दिल्ली में सामूहिक दुष्कर्म मामले पर एक कवरेज के बाद जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के कैंटीन में हंसी – ठठा और तस्वीर खिंचवा रही हैं. महिला होने के बावजूद उनके लिए पीड़िता का दर्द सिर्फ एक खबर है. चेहरा चमकाने कर सुर्खियाँ बटोरने का बस एक तरीका.

national women commision team alka lambaइससे संबंधित खबर मीडिया खबर पर लगायी गयी. आलोचना भी हुई कि क्या एंकरों का हंसना भी गुनाह है? यदि वे गंभीर खबर करने गयी हैं तो क्या हंसना – मुस्कुराना छोड़ कर हमेशा गंभीरता का लबादा ओढ़े घूमते रहे. ऐसा हम बिलकुल नहीं चाहते और न कह रहे हैं. लेकिन मामले की गंभीरता भी तो कोई चीज होती है. ऐसा नहीं है तो आजतक और तमाम न्यूज़ चैनलों ने गुवाहटी छेड़छाड़ मामले में महिला आयोग कि सदस्यों द्वारा तस्वीर खिंचवाने पर क्यों हंगामा किया था. टीआरपी की इन्हीं कठपुतलियों ने महिला आयोग के सदस्यों को बेशर्म करार दिया था. फिर अपने मामले में दोहरा मापदंड क्यों? आज तक की महिला एंकरों और महिला आयोग की बेशर्म हँसी में क्या अंतर है? आजतक से पूछता है मीडिया खबर.

मीडिया खबर पर इसी मुद्दे पर अभिषेक नाम के पाठक टिप्पणी करते हुए लिखते हैं :

फिर ये न्यूज चैनल गुवाहाटी गयी महिला आयोग की सदस्यों के हंसते हुए फोटो खिंचवाने पर क्यों रो रहे थे..? ये न्यूज चैनल गुवाहाटी गयी महिला आयोग की सदस्यों के हंसते हुए फोटो खिंचवाने पर क्यों रो रहे थे..? सबको याद होगा कि जब जुलाई में महिला आयोग की टीम गुवाहाटी में छेड़छाड़ की शिकार लड़की के पास जांच के लिये गयी थी तो उन्होंने एयरपोर्ट पर स्वागत के समय पारंपरिक टोपी पहन कर फोटो खिंचवा लिया था। उस मौके पर इन्हीं ऐंकरों ने ऐसा विधवा विलाप किया था मानों आसमान सर पर उतर आया हो.. अब अपने चेहरों को देख कर ये क्या कहेंगी..?

देखिए आजतक की न्यूज़ मॉडलों को सरोकार के कारोबार में जेएनयू कैंटीन में ठठा लगाते

आज तक की टीआरपी कठपुतलियों की एक अनदेखी तस्वीर

aajtak-female-anchor-joyमीडिया खबर डॉट कॉम पर जब कहा गया कि समाचार चैनल बलात्कार का रियल्टी शो बनाने पर आमदा हैं तो कुछ लोगों को ये गैरवाजिब लगा. तर्क ये कि न्यूज़ चैनल बढ़िया काम कर रहे हैं और उनकी तारीफ़ होनी चाहिए. लेकिन मीडिया खबर आलोचना करने के लिए आलोचना कर रहा हैं जो तर्कसंगत नहीं है. इसलिए इस बार हम प्रमाण के साथ आये हैं. प्रमाण पत्रकारों की संजीदगी और गैर संजीदगी की.

तस्वीरें झूठ नहीं बोलती. यहाँ जो तस्वीर लगी है कि उसमें नज़र आ रही महिलायें आजतक की वही जाबांज एंकर और रिपोर्टर हैं जो सड़कों पर उतरकर भीड़ के बीच से ‘पूछता है आजतक’ कर रही हैं. वहां से पीटूसी देती या एंकरिंग करती हुई ये महिला पत्रकार सामूहिक दुष्कर्म के मामले को लेकर कितनी संवेदनशील दिखती हैं. लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं है. उनकी संवेदनशीलता की सारी पोल पट्टी ये तस्वीर खोल रही है जो मीडिया खबर के एक पाठक ने भेजी है.

सोशल मीडिया पर मीडिया खबर

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