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'समाचार प्लस' के स्टिंग ऑपरेशन का असर, चित्रकूट के ‘घूसखोर थानेदार’ पर FIR दर्ज

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के सर्वाधिक लोकप्रिय न्यूज़ चैनल ‘समाचार प्लस’ ने किया है एक बड़ा स्टिंग ऑपरेशन। चित्रकूट ज़िले के राजापुर थाने के थानेदार विवेक उपाध्याय का स्टिंग ऑपरेशन। इसमें बालू के ठेकेदार बने अंडर कवर एजेंट ने थानेदार साहब से अवैध बालू से भरे 500 ट्रकों को चित्रकूट क्षेत्र से बेरोकटोक आने-जाने देने के लिए गुज़ारिश की थी। इसके ऐवज़ में थानेदार विवेक उपाध्याय ने 50 हज़ार रूपए की घूस मांगी थी और वो ऐसा करते हुए ‘समाचार प्लस’ के खुफिया कैमरे पर रंगेहाथों पकड़ लिए गए। हरे-हरे नोटों के चक्कर में जीभ लपलपाते थानेदार विवेक उपाध्याय ने तो यहां तक कह डाला था कि “भले ही बुंदेलखंड में आतंक का दूसरा नाम बन चुका खूंखार डाकू बलखड़िया बच कर निकल जाए मगर मेरी नज़रों से बालू से लदा कोई भी वाहन नहीं चूकता। चूंकि आजकल महंगाई बहुत ज्यादा है और वक्त भी सही नहीं चल रहा है इसीलिए तुमसे 50 हज़ार रूपए ले रहा हूं वरना इस काम के 80 हज़ार रूपए होते हैं। तुमको 30 हज़ार का डिस्काउंट दे रहा हूं। 50 हज़ार दो और धड़ल्ले से अपना काम करो। कोई तुमको रोकेगा नहीं। मेरी ऊपर तक सैटिंग है।’’ इसके अलावा घूसखोर थानेदार ने कई और भी खुलासे किए।

न्यूज़ चैनलों के संपादकों के लिए आज अमावस की रात !

न्यूज़ चैनलों के संपादक आज करेंगे रतजगा !

टीआरपी की रेस में पिछड़ गया आजतक

न्यूज़ चैनलों के संपादकों के लिए आज काली रात है. एक ऐसी काली अँधेरी रात जिसकी कोई सुबह नहीं होती. न्यूज़ चैनलों का शायद ही कोई संपादक आज सो पायेगा. आजतक से लेकर इंडिया टीवी तक में कुहराम मचा हुआ है.

अरे …रे – रे . आप जैसा सोंच रहे हैं, वैसा कुछ नहीं है. न न्यूज़ चैनलों के सामने कोई आपातकाल की स्थिति उत्पन्न हुई है और न कोई संपादक तिहाड़ जाने वाला है और न कोई फर्जी स्टिंग हुआ है. सब कुशल मंगल है.

आप सोंच रहे होंगे कि जब सब कुशल मंगल ही है तो फिर बात क्या है जो मीडिया खबर वाले ऐसी गोल – मोल बातें कर रहस्य बढ़ा रहे हैं.

उगाही मामले के कारण ज़ी न्यूज़ की साख घटी – सर्वे

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a-zee-survey-credit 6 महीने पहले तक ज़ी न्यूज़ को बेहद संतुलित चैनल माना जाता था. ज़ी न्यूज़ की अपनी विशिष्ट पहचान थी. उसकी ख़बरों का कलेवर दूसरे चैनलों से जुदा था. संतुलित ख़बरें हुआ करती थी और भूत – प्रेत और पाखंड दूसरे चैनलों की अपेक्षा काफी कम था.

निर्मल बाबा का पाखंड जब विज्ञापन की शक्ल में 39 चैनलों पर प्रसारित हो रहा था, तब भी उसकी परछाई से ज़ी न्यूज़ (राष्ट्रीय चैनल) अलग था. स्थापित चैनलों में ज़ी न्यूज़ और एनडीटीवी इंडिया ही दो ऐसे चैनल थे जिसपर निर्मल बाबा का विज्ञापन नहीं चलता था. यही वजह थी कि ज़ी न्यूज़ की दर्शकों के बीच जबरदस्त साख थी.

पुण्य प्रसून बाजपेयी और अलका सक्सेना जैसे साखदार पत्रकार भी चैनल के साथ जुड़े हुए थे जो इसकी साख को और चमकीला बनाते थे. लेकिन साख की शानदार इमारत अचानक ताश के पत्ते की तरह तब ढह गयी जब सतीश के सिंह की जगह पर उमा खुराना फर्जी स्टिंग वाले संपादक सुधीर चौधरी का आगमन हुआ.

सुधीर चौधरी का आगमन लाइव इंडिया चैनल से हुआ. लेकिन संपादकीय जिम्मेवारी सँभालते हुए उन्हें कुछ ही दिन हुए थे कि उद्योगपति नवीन जिंदल ने सुधीर चौधरी और ज़ी न्यूज़ पर उगाही का आरोप लगाया. इस आरोप को पुख्ता करने के लिए जिंदल की तरफ से स्टिंग की सीडी को भी पेश किया गया जिसमें साफ़ – साफ़ तौर पर सुधीर चौधरी और समीर आहुलवालिया खबरों को लेकर बातचीत करते हुए नज़र आये. इससे ज़ी न्यूज़ की साख पर बट्टा लग गया और रही – सही कसर दोनों संपादकों के जेल जाने के बाद पूरी हो गयी.

हालत बदतर होते चले गए और मालिकान की भी गिरफ्तारी की नौबत आ गयी. हालाँकि वे गिरफ्तार नहीं हुए. लेकिन साख पर धब्बा जरूर लगा गया. इसी सिलसिले में मीडिया खबर डॉट कॉम ने एक ऑनलाइन सर्वे किया तो 58.3% लोगों ने माना कि ज़ी न्यूज की ख़बरों पर अब उन्हें विश्वास नहीं रहा. लेकिन 41.7% लोगों का विश्वास अब भी ज़ी न्यूज़ पर बरकरार है.

सर्वे के सवाल के रूप में पूछा गया था कि, ‘उगाही मामले में जी न्यूज के दोनों संपादकों के जेल जाने के बाद चैनल की साख मिट्टी में मिल गयी. क्या अब भी आपको जी न्यूज की खबरें विश्वसनीय लगती है?’

यह सर्वे 15 दिसंबर से 8 जनवरी के बीच किया गया. सर्वे में कुल 554 लोगों ने हिस्सा लिया. सर्वे में किसी पक्षपात से बचने के लिए ऐसी व्यवस्था की गयी थी कि एक बार वोट डालने के बाद 24 घंटे तक उसी आईपी एड्रेस से दुबारा वोट नहीं डाला जा सके.

सुधीर चौधरी का राष्ट्र के नाम संदेश

जी न्यूज के दागी संपादक सुधीर चौधरी ने पिछले दिनों जी न्यूज़ पर अपना संदेश ऐसे दिया जैसे कि राष्ट्र के नाम संबोधन दे रहे हैं.

गाल बजाने की कला सुधीर चौधरी से सीखनी चाहिए. प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तो राष्ट्र के नाम संदेश देते रहते हैं.

अब ब्लैकमेलिंग के आरोपी संपादक भी नैतिकता पर राष्ट्र के नाम संदेश टाइप से भाषण देने लगे हैं. घोर कलयुग.

ज़ी न्यूज़ के स्क्रीन पर बेशर्मी का आलम कायम है. उमा खुराना फर्जी स्टिंग, ब्लैकमेलिंग का आरोप और अब जेल यात्रा के बाद अंग्रेजी और हिंदी में नैतिक भाषण. चुल्लू भर ….

समाचार चैनलों में क्या सिर्फ टीआरपी के हिसाब से इज़्ज़त आंकी जायेगी?

कमाल है हमारे पिछड़े आदिवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ में एक नही लगभग दर्ज़न भर अबोध बालिकाओ से यौन दुराचार हुआ और उनमे से चार के साथ बलात्कार भी. मगर इस पर कहीं कोई बहस नहीं ?

सारी की सारी बेटियां आदिवासी परिवार की थी,जिन्हे बड़े – बड़े सपने देखने के लिये सरकारी हॉस्टल भेजा गया था. सपने तो पूरे हुये नहीं. हाँ इज़्ज़त जरुर तार – तार हो गई. हैरानी तो इस बात की है कि इस मामले में राष्ट्रीय मीडिया ने जो सचिन, सलमान, शाहरूख की खांसी-सर्दी तक पर घंटो बहस करता है. खामोश नज़र आ रहा है.

दिल्ली की बहन की इज़्ज़त लूटने पर जो तेवर दिखाये थे वे यहाँ नज़र नही आ रहे है. समझ में नही आ रहा है कि क्या मेरे प्रदेश की आदिवासी बालाओ की इज़्ज़त महानगरो की बालाओं से कम है?

क्यों नही हो रही इस पर बहस? सभी क्यों खामोश है? क्या सिर्फ टीआरपी के हिसाब से खबर और इज़्ज़त आंकी जायेगी? छत्तीसगढ की अपनी उन 11 आदिवासी बहनो-बेटियो से मैं क्षमाप्रार्थी हूं टीआरपी के खिलाडियों के रवेये के लिये.

( Anil Pusadkar के फेसबुक वॉल से )

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