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बोरसी की आग सी हैं लघु पत्रिकाएं

– लघु पत्रिकाओं की प्रासंगिकता बनी रहेगी

– सामंती व साम्राज्यवादी ताकतों के चक्रव्यूह को तोड़ती हैं लघु पत्रिकाएं

रविवार को पटना जिला प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा केदार भवन में हिन्दी साहित्य की पाँच लघु पत्रिकाओं यथा – शीतल वाणी, दोआबा, एक और अन्तरीप, साँवली और देशज के ताज़े अंकों पर विमर्श का आयोजन किया गया। इस विमर्श में लघु पत्रिका अभिधा, अक्षर पर्व, कृतिओर एवं माटी के ताज़े अंकों की भी चर्चा हुई।

लोक चेतना के जागरण में इन पत्रिकाओं के योगदान को रेखांकित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डा. रानी श्रीवास्तव ने की। मुख्य वक्ता युवाकवि शहंशाह आलम ने कहा कि लघु पत्रिका का कैनवस बहुत बड़ा है आजादी के दिनों में पत्रिकाएं अलख जगाने का काम करती थीं।

फिर सामंती और साम्राज्यवादी ताकतों के विरूद्ध मसाल लेकर खड़ी रही हैं। उन्होंने कहा कि ‘वागर्थ’ का अस्सी दशक के बाद के कवियों पर केन्द्रित अंक आया है। अंक पठनीय है परन्तु 80 के दशक के बाद के अनेक कवियों को अनदेखा किया गया है… ऐसे कार्य जानबूझ कर और चालाकी से किये जा रहे हैं.. खासकर बिहार के युवा कवियों को नजरअंदाज कर। ऐसे कृत्यों की निंदा की जानी चाहिए।

वक्ताओं में रमेश ऋतंभर, पूनम सिंह, अरुण शीतांश, विभूति कुमार एवं राजकिशोर राजन आदि ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन अरविन्द श्रीवास्तव ने किया। उन्होंने जल्द ही पाँच कवयित्रियों की समकालीन कविता पर पटना में विमर्श कये जाने की भी सूचना दी।

– अरविन्द श्रीवास्तव (मधेपुरा) बिहार प्रलेस मीडिया प्रभारी सह प्रवक्ता

सर कटा सकते हैं लेकिन सर उठा सकते नहीं !

पाकिस्तानी हमारे देशभक्त सैनिकों के सर काट कर ले गए। हम हाथ मल रहे हैं। शूरवीरों की माताएं मातम मना रही हैं। विधवाएं विलाप कर रही हैं। परिवार के बाकी लोग बिलख रहे हैं। और परिजन प्यासे – भूखे बैठे हैं। कह रहे हैं कि बेटों की जिंदगी तो वापस नहीं ला सकते, मगर पाकिस्तानियों से उनके सर तो कम से कम वापस ले आइए। सारा देश सन्न है। मगर राजनीति मजे ले रही है। सिर्फ बातें हो रही है। मथुरा के सांसद शहीद के गांव जाकर परिजनों का अनशन जबरदस्ती तुड़वा रहे हैं। सरकार मौत के मुआवजे के रूप में पंद्रह – पंद्रह लाख के चेक भेज रही है। बिहार के एक मंत्री कह रहे हैं कि नरेंद्र मोदी देश के पीएम होते तो करारा जवाब देते। और जवाब में कांग्रेस के मनीष तिवारी पाकिस्तान पर तो कुछ नहीं बोलते, पर बहुत बेशर्मी से मोदी तो हिटलर कह देते हैं। यह अलग बात है कि मोदी हिटलर है या नहीं। मगर, इतना जरूर है कि सैनिकों के सर कलम किए जाने की घटना के मामले में प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह फिर एक बार नपुंसक सरकार के मुखिया साबित हो रहे हैं। और, मनीष तिवारी शायद यह भूल रहे हैं वे उसी नपुंसक सरकार में दोयम दर्जे के मंत्री है।

बाल – बाल बचे दीपक चौरसिया !

deepak-d-p-yadavटेलीविजन पत्रकार दीपक चौरसिया बाल – बाल बच गए. नहीं तो आज वे इंडिया न्यूज़ ज्वाइन नहीं कर पाते. एक वायदा उनकी राह का रोड़ा बन जाता और डीपी यादव नाम के दल – बदलू नेता उनके पीछे पड़ जाते.

दरअसल मामला बतकही का है और ये बतकही जनवरी, 06, 2012 को हुई. उस वक्त एबीपी न्यूज़ स्टार न्यूज़ ही हुआ करता था. स्टार न्यूज़ पर बाहुबली नेता डी पी यादव थे और उनसे दीपक चौरसिया सवाल – जवाब कर रहे थे.

सवाल – जवाब के दौरान दीपक चौरसिया एक – एक कर डी पी यादव का कच्चा – चिठ्ठा खोल रहे थे और डी पी यादव अपने बचाव में तर्क दे रहे थे.

दीपक चौरसिया बोल रहे हैं, पुण्य प्रसून और राणा यशवंत शरमा रहे हैं

मशहूर टेलीविजन पत्रकार दीपक चौरसिया की एक खासियत है कि वे चुप नहीं रहते. अच्छा – बुरा जो भी कर रहे हैं उसपर खुलकर अपनी बात रखते हैं.

एबीपी न्यूज़ से वे इंडिया न्यूज़ जा रहे हैं , ये बात कहने में वे हिचके नहीं. कई वेबसाइटों से बात करने के बाद वे न्यूज़ लौंड्री के साथ हुए इंटरव्यू में भी इस मुद्दे पर बोले और अपना पक्ष सामने रखा.

इसी इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि आपातकाल वाले पुण्य प्रसून बाजपेयी और महुआ न्यूज़ वाले राणा यशवंत जैसे दिग्गज भी इंडिया न्यूज़ ज्वाइन कर रहे हैं.

लेकिन एक तरफ जब दीपक उनका नाम लेकर एक तरह से इंडिया न्यूज़ में उनकी नियुक्ति की खबर को पुष्ट कर रहे हैं तो दूसरी तरफ दोनों चुप्पी साधे हुए हैं.

राणा यशवंत तो पूर्व में इसे गॉसिप तक करार चुके हैं. दूसरी तरफ पुण्य प्रसून बाजपेयी चुप्पी साधे हुए हैं. ना हाँ बोलते हैं और ना.

लेकिन अब जब वे इंडिया न्यूज़ जा ही रहे हैं तो फिर बोलने में शरमा क्यों रहे हैं? वहां जाकर स्क्रीन पर तो बोलेंगे ही कि पुण्य प्रसून बाजपेयी, इंडिया न्यूज़. तो फिर स्वीकार करने में हर्ज क्या? यदि नहीं जा रहे तो फिर दीपक चौरसिया झूठे कहलाएँगे.

कुंभ मेले की कवरेज के बहाने पाखंड लाइव

mahakumbh coverage

मीडिया मामलों के विशेषज्ञ विनीत कुमार की कुंभ मेले से संबंधित तीन टिप्पणियाँ : प्लीज, दीपक चौरसिया,पुण्य प्रसून वाजपेयी और राणा यशवंत जैसे मीडियाकर्मियों के सरोकार पर सवाल मत उठाइए. आप इससे ज्यादा सरोकार क्या चाहते हैं कि जहां बाकी मीडियाकर्मी या तो प्रयाग जाकर या फिर डेस्क पर पैकेज बनाकर मकर सक्रांति में अपने पाप धो रहे हैं, ये सारे चेहरे जेसिका लाल हत्यारे के चैनल पर लगे कलंक धोने जा रहे हैं. मीडियाकर्मी हमेशा दूसरों के सरोकार की चिंता करता है.

कुंभ मेले की कवरेज के बहाने न्यूज चैनलों की धर्म,पाखंड और अंधविश्वास के प्रति आस्था अपने चरम पर है. जो मीडियाकर्मी कवरेज के बहाने प्रयाग में डुबकी लगाने से रह गए हैं, नोएडा फिल्म सिटी की डेस्क पर बैठकर जितने पाप धो सकते हैं, पैकेज बना-बनाकर धो रहे हैं. लग रहा है, अगर ये धर्म बचेगा नहीं तो वो जीकर क्या करेंगे ? वो इस देश में विवेक को, संवेदना को, बराबरी औऱ अस्मिता को ध्वस्त होते हुए आराम से देख सकते हैं लेकिन पाखंड को कभी नहीं.

अगर ये खत्म हो जाएगा तो रात में श्रीयंत्रम,लक्ष्मी की लॉकेट, गंडे-ताबीज कैसे बेच सकेंगे ? अब बताइए न अगर आजतक ये कहता है कि एक डुबकी लगाते ही आंखों में पाप धुल जाने का एक आत्मविश्वास साफ दिखाई देने लगता है. पैकेज की भाषा ऐसी कि अच्छे से अच्छी पीआर कंपनी शर्मा जाए. वो लच्छेदार जुबान कि एक से एक लफंदर को रस्क होने लग जाए.

महाकुंभ कवरेज का सबसे बड़ा सुख है कि शाम ढलते ही देर रात तक जब मीडियाकर्मी रसरंजन करते हैं, तब भी वो धर्म और पत्रकारिता का ही हिस्सा बन जाता है. लगता नहीं कि कुछ अस्वाभाविक है. इससे रमणीय जगह क्या हो सकती है कवरेज की, जहां धर्म भी चट्टान की तरह खड़ा रहे और पत्रकारिता का पताका भी लहराता रहे. है न ?

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