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बाल – बाल बचे दीपक चौरसिया !

deepak-d-p-yadavटेलीविजन पत्रकार दीपक चौरसिया बाल – बाल बच गए. नहीं तो आज वे इंडिया न्यूज़ ज्वाइन नहीं कर पाते. एक वायदा उनकी राह का रोड़ा बन जाता और डीपी यादव नाम के दल – बदलू नेता उनके पीछे पड़ जाते.

दरअसल मामला बतकही का है और ये बतकही जनवरी, 06, 2012 को हुई. उस वक्त एबीपी न्यूज़ स्टार न्यूज़ ही हुआ करता था. स्टार न्यूज़ पर बाहुबली नेता डी पी यादव थे और उनसे दीपक चौरसिया सवाल – जवाब कर रहे थे.

सवाल – जवाब के दौरान दीपक चौरसिया एक – एक कर डी पी यादव का कच्चा – चिठ्ठा खोल रहे थे और डी पी यादव अपने बचाव में तर्क दे रहे थे.

दीपक चौरसिया बोल रहे हैं, पुण्य प्रसून और राणा यशवंत शरमा रहे हैं

मशहूर टेलीविजन पत्रकार दीपक चौरसिया की एक खासियत है कि वे चुप नहीं रहते. अच्छा – बुरा जो भी कर रहे हैं उसपर खुलकर अपनी बात रखते हैं.

एबीपी न्यूज़ से वे इंडिया न्यूज़ जा रहे हैं , ये बात कहने में वे हिचके नहीं. कई वेबसाइटों से बात करने के बाद वे न्यूज़ लौंड्री के साथ हुए इंटरव्यू में भी इस मुद्दे पर बोले और अपना पक्ष सामने रखा.

इसी इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि आपातकाल वाले पुण्य प्रसून बाजपेयी और महुआ न्यूज़ वाले राणा यशवंत जैसे दिग्गज भी इंडिया न्यूज़ ज्वाइन कर रहे हैं.

लेकिन एक तरफ जब दीपक उनका नाम लेकर एक तरह से इंडिया न्यूज़ में उनकी नियुक्ति की खबर को पुष्ट कर रहे हैं तो दूसरी तरफ दोनों चुप्पी साधे हुए हैं.

राणा यशवंत तो पूर्व में इसे गॉसिप तक करार चुके हैं. दूसरी तरफ पुण्य प्रसून बाजपेयी चुप्पी साधे हुए हैं. ना हाँ बोलते हैं और ना.

लेकिन अब जब वे इंडिया न्यूज़ जा ही रहे हैं तो फिर बोलने में शरमा क्यों रहे हैं? वहां जाकर स्क्रीन पर तो बोलेंगे ही कि पुण्य प्रसून बाजपेयी, इंडिया न्यूज़. तो फिर स्वीकार करने में हर्ज क्या? यदि नहीं जा रहे तो फिर दीपक चौरसिया झूठे कहलाएँगे.

कुंभ मेले की कवरेज के बहाने पाखंड लाइव

mahakumbh coverage

मीडिया मामलों के विशेषज्ञ विनीत कुमार की कुंभ मेले से संबंधित तीन टिप्पणियाँ : प्लीज, दीपक चौरसिया,पुण्य प्रसून वाजपेयी और राणा यशवंत जैसे मीडियाकर्मियों के सरोकार पर सवाल मत उठाइए. आप इससे ज्यादा सरोकार क्या चाहते हैं कि जहां बाकी मीडियाकर्मी या तो प्रयाग जाकर या फिर डेस्क पर पैकेज बनाकर मकर सक्रांति में अपने पाप धो रहे हैं, ये सारे चेहरे जेसिका लाल हत्यारे के चैनल पर लगे कलंक धोने जा रहे हैं. मीडियाकर्मी हमेशा दूसरों के सरोकार की चिंता करता है.

कुंभ मेले की कवरेज के बहाने न्यूज चैनलों की धर्म,पाखंड और अंधविश्वास के प्रति आस्था अपने चरम पर है. जो मीडियाकर्मी कवरेज के बहाने प्रयाग में डुबकी लगाने से रह गए हैं, नोएडा फिल्म सिटी की डेस्क पर बैठकर जितने पाप धो सकते हैं, पैकेज बना-बनाकर धो रहे हैं. लग रहा है, अगर ये धर्म बचेगा नहीं तो वो जीकर क्या करेंगे ? वो इस देश में विवेक को, संवेदना को, बराबरी औऱ अस्मिता को ध्वस्त होते हुए आराम से देख सकते हैं लेकिन पाखंड को कभी नहीं.

अगर ये खत्म हो जाएगा तो रात में श्रीयंत्रम,लक्ष्मी की लॉकेट, गंडे-ताबीज कैसे बेच सकेंगे ? अब बताइए न अगर आजतक ये कहता है कि एक डुबकी लगाते ही आंखों में पाप धुल जाने का एक आत्मविश्वास साफ दिखाई देने लगता है. पैकेज की भाषा ऐसी कि अच्छे से अच्छी पीआर कंपनी शर्मा जाए. वो लच्छेदार जुबान कि एक से एक लफंदर को रस्क होने लग जाए.

महाकुंभ कवरेज का सबसे बड़ा सुख है कि शाम ढलते ही देर रात तक जब मीडियाकर्मी रसरंजन करते हैं, तब भी वो धर्म और पत्रकारिता का ही हिस्सा बन जाता है. लगता नहीं कि कुछ अस्वाभाविक है. इससे रमणीय जगह क्या हो सकती है कवरेज की, जहां धर्म भी चट्टान की तरह खड़ा रहे और पत्रकारिता का पताका भी लहराता रहे. है न ?

'समाचार प्लस- राजस्थान' चैनल की तैयारियां पूरी, जल्द होगा लॉन्च

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में लोकप्रियता के शिखर पर स्थापित होने के बाद, अब ‘समाचार प्लस’ चैनल का विस्तार होने जा रहा है। इस नेटवर्क का दूसरा चैनल ‘समाचार प्लस-राजस्थान’ लॉन्च होने की दहलीज़ पर है। इसके लिए सभी तैयारियां लगभग पूरी की जा चुकी हैं। लुक एंड फील रेडी हो चुका है, न्यूज़रूम, स्टूडियो, पीसीआर-एमसीआर तैयार है और मशीनों का इंस्टालेशन चल रहा है।

मातृ संस्थान ‘बेस्ट न्यूज़ कंपनी प्राइवेट लिमिटेड’ के स्वामित्व वाले समाचार प्लस न्यूज़ नेटवर्क का ये दूसरा चैनल होगा। पहला चैनल उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड के लिए 15 जून 2012 को लॉन्च हुआ था, जो खासा पसंद किया जा रहा है। इस चैनल की कई ख़बरों का बड़ा असर भी हुआ है। एक्जीक्यूटिव एडिटर अतुल अग्रवाल के द्वारा एंकर किया जाने वाला, रात 8 से 9 बजे के बीच प्रसारित होने वाला प्राइम टाइम डिबेट शो ‘बिग बुलेटिन’ इसका फ्लैग-शिप शो है। इसमें जनता के प्रवक्ता की भूमिका निभाने वाले अमिताभ अग्निहोत्री की तीखी टिप्पणियों को भारी जन-समर्थन हासिल है और राजनीतिक गलियारों में खासी धमक भी है।

न्यूज़ चैनलों पर पाकिस्तान के नाम पर हुआ – हुआ

pakistan on news channel

मुद्दे से भटकाने के लिए पाकिस्तान एक अच्छा मुद्दा है. भारतीय चैनल जब – तब इसे पकड़कर उठक – बैठक शुरू कर देते हैं. ऐसा लगता है मानों परमाणु युद्ध हुआ ही समझिए. पाकिस्तान को तो समाचार चैनल ऐसे चेताते हैं कि वे खुद भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष हैं और स्क्रीन पर ही पाकिस्तान को नेस्तनाबूद कर देंगे. कई वर्षों से न्यूज़ चैनल दर्शकों को भारत – पाक युद्ध के नाम पर ऐसे ही भड़का कर अपनी टीआरपी की खेती कर रहे हैं. भारत – पाक क्रिकेट के समय भी ऐसी ही शब्दावली का प्रयोग चैनलों द्वारा होता है. अब फिर से एक बार यही सिलसिला शुरू हो गया है. अचानक ही न्यूज़ चैनेलों के स्क्रीन पर भारत – पाकिस्तान के बीच युद्ध के बादल मंडराने लगे हैं. मीडिया मामलों के विशेषज्ञ विनीत कुमार की टिप्पणी :

चैनल युद्ध-युद्ध खतरा-खतरा चिल्ला रहे हैं लेकिन वो बता सकते हैं कि उनके ब्यूरो के कितने लोग हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के बार्डर इलाके में हैं, कितने पाकिस्तान की अंदुरुनी हालत का जायजा लेने वहां हैं या वहां की वायर की सब्सक्रिप्शन ली हुई है या फिर सिर्फ रायटर,एपीटीएन के भरोसे हैं औऱ इधर कितने लोग महाकुभ मेले को कवर करने गए हैं ?

ऑडिएंस को गदहा समझते हैं क्या ये कि युद्ध की खबरें तो अखबार की कतरनों और यूट्यूब के खदानों में उतरकर,फुटेज निकालकर अंधाधुन चलाएं, अठन्नी खर्च न करें और कहें कि देश में युद्ध की संभावना है औऱ उधर लाखों रुपये आस्था के स्नान पर फूंक दें. उन्हें पता है कि हथियार का विज्ञापन तो कर नहीं सकते लेकिन गंडे-ताबीज,श्रीयंत्रम बेच सकते हैं तो उसकी कवरेज ग्राउंड रिपोर्टिंग की तर्ज पर करें.

यकीन मानिए, तालिबान सी जुड़ी खबरें दिखाते वक्त भी यही किया था, यूट्यूब की खानों से धुंआधार स्टोरी चला करते. क्या चैनल जिस अनुपात में युद्ध की खबरें दिखाता है, उस अनुपात में लागत की रिपोर्टिंग करने का माद्दा रखता है ?

देखिए, मीडिया के लिए पाकिस्तान हर हालत में एक युद्ध ही है. आप क्रिकेट को लेकर बनी पैकेज पर गौर करें, भाषा पर गौर करें. आग के गोले,धुएं,दहाडती पार्श्वध्वनि, रिपोर्टर और एंकर की ऐसी आवाज कि जैसे बस चले तो पाकिस्तान खिलाड़ियों को निगल जाएं.

माहौल ऐसा कि जैसे 11 भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी ने लाहौर से लेकर कराची तक पर कब्जा कर लिया हो और वहां के प्रधानमंत्री उनके लिए खैनी चुनिआने का काम करेंगे. घुसकर मारो पाकिस्तान को जैसे हेडर होते हैं. युद्ध और क्रिकेट ही नहीं, वीणा मल्लिक भी आए तो भारत पर कब्जा हो जाता है.

यहां का मीडिया पाकिस्तान को किसी भी हाल में एक पड़ोसी देश की शक्ल में देखने के लिए तैयार नहीं है. वो अशोक प्रकाशन के इतिहास की कुंजी से आगे की समझ रखता ही नहीं..यही कारण है कि क्रिकेट,मनोरंजन,सिनेमा,संस्कृति सारे मामले में कब्जा,युद्ध, दे मारो, फाड़ डालो जैसे मुहावरे स्वाभाविक रुप से आते हैं.

अगर सालभर क्रिकेट मैच चले तो समझिए कि मीडिया के लिए सालोंभर भारत-पाकिस्तान युद्ध जारी है और अगर सचमुच राजनीतिक माहौल गड़बड़ाते हैं तो क्रिकेटरों के नाम काटकर वहां गृहमंत्री,सेना अध्यक्ष और प्रधानमंत्री के नाम डाल दिए जाते हैं.

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