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कुंभ मेले से पीटूसी करते कनफुंकवा रिपोर्टर

आज का पूरा दिन कुंभ मेले के नाम रहा. टेलीविजन चैनलों पर सुबह से प्रसारण शुरू हो गया. दिल्ली से टेलीविजन पत्रकारों को चैनलों ने कुंभ मेले की कवरेज के लिए भेजा. पूरे कवरेज पर मीडिया मामलों के विशेषज्ञ विनीत कुमार की कुछ टिप्पणियाँ:

  • क्रांति और मकर संक्रांति की बेतहाशा कवरेज देखकर लगता है कि इस टीवी इन्डस्ट्री को कनफुकवा मीडियाकर्मी चला रहे हैं. जिनके कान फुंके हुए होते हैं या फिर हमारी कान इस कदर फूंकना चाहते हैं कि इसके अलावे हमें कुछ सुनाई न दे. इन कनफुकवा मीडियाकर्मियों की खास बात होती है कि वो पीटूसी करते हुए इतने आत्ममुग्ध हो जाते हैं कि लगता नहीं किसी व्यावसायिक चैनल के लिए बोल रहे हैं, लगता है अंदर महंतों के आश्रम से तर माल( नदिया के पार से साभार) चापकर सार्वजनिक हुए हैं और उनका कर्ज अदा कर रहे हैं. हिन्दू होने और ऐसे महाकुंभ का हिस्सा होने का गर्व चरम पर है. दिलचस्प होगा गर कोई मुस्लिम मीडियाकर्मी को कवरेज के लिए भेजा जाए और खुली छूट हो कि वो अपने तरीके से इस पर बात करे. वैसे कैमरामैन तो कई होते ही हैं.

गिरीश पंकज को पं.बृजलाल द्विवेदी स्मृति साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान

भोपाल, 14 जनवरी,2013। रायपुर से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका ‘सद्भावना दर्पण’ के संपादक गिरीश पंकज को पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान-2012 से अलंकृत करने की घोषणा की गयी है।

मीडिया विमर्श पत्रिका द्वारा प्रतिवर्ष साहित्यिक पत्रकारिता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले संपादकों को यह सम्मान प्रदान किया जाता है। इसके पूर्व यह सम्मान वीणा( इंदौर) के संपादक स्व. श्यामसुंदर व्यास, दस्तावेज (गोरखपुर) के संपादक डा. विश्वनाथप्रसाद तिवारी, कथादेश (दिल्ली) के संपादक हरिनारायण और अक्सर (जयपुर) के संपादक हेतु भारद्वाज को दिया जा चुका है।

इलाफिलेक्स-2013” में शाही स्नान (मकर संक्राति कुंभ पर्व) पर जारी हुआ विशेष आवरण

डाक विभाग द्वारा दो दिवसीय इलाहाबाद डाक टिकट प्रदर्शनी’’इलाफिलेक्स-2013’’ का समापन 14 जनवरी 2013 को उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के महात्मा गाँधी कला वीथिका में हुआ। प्रदर्शनी के समापन समारोह के अवसर पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति पंकज मिथल, द्वारा मकर संक्राति पर्व पर विशेष आवरण व विरूपण का विमोचन, ले0 कर्नल पोस्टमास्टर जनरल ए. के. गुप्ता और निदेशक डाक सेवाएँ कृष्ण कुमार यादव के सहयोग से किया गया।

प्रदर्शनी के समापन समारोह को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति पंकज मिथल ने कहा कि इस प्रकार की प्रदर्शनियों का आयोजन हर साल होना चाहिये ताकि अभिरुचि के रूप में फिलेटली का विकास हो सके। ले0 कर्नल पोस्टमास्टर जनरल ए. के. गुप्ता ने कहा कि डाक टिकट ज्ञार्नाजन का स्त्रोत भी है जो हमारी शिक्षा प्रणाली को और भी मजबूत बनाने में सहायक सिद्ध हो सकता है। जबकि इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवायें कृष्ण कुमार यादव ने डाक टिकटों को एक नन्हें राजदूत की संज्ञा दी, जो जिस भी देश में जाता है वहां अपनी सभ्यता, संस्कृति और विरासत से उस देश के लोगों के अवगत कराता है।

बोरसी की आग सी हैं लघु पत्रिकाएं

– लघु पत्रिकाओं की प्रासंगिकता बनी रहेगी

– सामंती व साम्राज्यवादी ताकतों के चक्रव्यूह को तोड़ती हैं लघु पत्रिकाएं

रविवार को पटना जिला प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा केदार भवन में हिन्दी साहित्य की पाँच लघु पत्रिकाओं यथा – शीतल वाणी, दोआबा, एक और अन्तरीप, साँवली और देशज के ताज़े अंकों पर विमर्श का आयोजन किया गया। इस विमर्श में लघु पत्रिका अभिधा, अक्षर पर्व, कृतिओर एवं माटी के ताज़े अंकों की भी चर्चा हुई।

लोक चेतना के जागरण में इन पत्रिकाओं के योगदान को रेखांकित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डा. रानी श्रीवास्तव ने की। मुख्य वक्ता युवाकवि शहंशाह आलम ने कहा कि लघु पत्रिका का कैनवस बहुत बड़ा है आजादी के दिनों में पत्रिकाएं अलख जगाने का काम करती थीं।

फिर सामंती और साम्राज्यवादी ताकतों के विरूद्ध मसाल लेकर खड़ी रही हैं। उन्होंने कहा कि ‘वागर्थ’ का अस्सी दशक के बाद के कवियों पर केन्द्रित अंक आया है। अंक पठनीय है परन्तु 80 के दशक के बाद के अनेक कवियों को अनदेखा किया गया है… ऐसे कार्य जानबूझ कर और चालाकी से किये जा रहे हैं.. खासकर बिहार के युवा कवियों को नजरअंदाज कर। ऐसे कृत्यों की निंदा की जानी चाहिए।

वक्ताओं में रमेश ऋतंभर, पूनम सिंह, अरुण शीतांश, विभूति कुमार एवं राजकिशोर राजन आदि ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन अरविन्द श्रीवास्तव ने किया। उन्होंने जल्द ही पाँच कवयित्रियों की समकालीन कविता पर पटना में विमर्श कये जाने की भी सूचना दी।

– अरविन्द श्रीवास्तव (मधेपुरा) बिहार प्रलेस मीडिया प्रभारी सह प्रवक्ता

सर कटा सकते हैं लेकिन सर उठा सकते नहीं !

पाकिस्तानी हमारे देशभक्त सैनिकों के सर काट कर ले गए। हम हाथ मल रहे हैं। शूरवीरों की माताएं मातम मना रही हैं। विधवाएं विलाप कर रही हैं। परिवार के बाकी लोग बिलख रहे हैं। और परिजन प्यासे – भूखे बैठे हैं। कह रहे हैं कि बेटों की जिंदगी तो वापस नहीं ला सकते, मगर पाकिस्तानियों से उनके सर तो कम से कम वापस ले आइए। सारा देश सन्न है। मगर राजनीति मजे ले रही है। सिर्फ बातें हो रही है। मथुरा के सांसद शहीद के गांव जाकर परिजनों का अनशन जबरदस्ती तुड़वा रहे हैं। सरकार मौत के मुआवजे के रूप में पंद्रह – पंद्रह लाख के चेक भेज रही है। बिहार के एक मंत्री कह रहे हैं कि नरेंद्र मोदी देश के पीएम होते तो करारा जवाब देते। और जवाब में कांग्रेस के मनीष तिवारी पाकिस्तान पर तो कुछ नहीं बोलते, पर बहुत बेशर्मी से मोदी तो हिटलर कह देते हैं। यह अलग बात है कि मोदी हिटलर है या नहीं। मगर, इतना जरूर है कि सैनिकों के सर कलम किए जाने की घटना के मामले में प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह फिर एक बार नपुंसक सरकार के मुखिया साबित हो रहे हैं। और, मनीष तिवारी शायद यह भूल रहे हैं वे उसी नपुंसक सरकार में दोयम दर्जे के मंत्री है।

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