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सहारा के नेशनल न्यूज़ हेड बने ज़ी न्यूज़ के वाशिन्द्र मिश्र

सहारा में उलट –फेर का दौर जारी है. इधर ज़ी न्यूज़ में भी उथल – पुथल चालू आहे.

ज़ी न्यूज़ यूपी – उत्तराखंड से लंबे समय जुड़े वाशिन्द्र मिश्र ने इस्तीफा देकर सहारा का दामन थामने की तैयारी कर ली है.

हालाँकि इसके पहले भी उनके सहारा से जुड़ने की खबर उछली थी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं था.

संभवतः उपेन्द्र राय की दहशत में वे तब नहीं गए थे लेकिन अब जब उपेन्द्र राय साइडलाइन कर दिए गए तो वाशिन्द्र मिश्र ने एंट्री ले ली.

सहारा में वाशिन्द्र नए न्यूज़ हेड के तौर पर ज्वाइन करेंगे. अबतक ये जिम्मेदारी रजनीकांत सिंह संभाल रहे थे.

बहरहाल ये तय है कि सहारा में वाशिन्द्र मिश्र की ज्वाइनिंग के बाद राजनीति और गरमाएगी. वैसे वहां राजनीति के सिवाए होता क्या है?

Oye! 104.8 FM celebrates Republic Day with a mix of Bollywood and a Social Cause

This Republic Day, the programming on Oye! 104.8 FM has a flavor of Bollywood and also focus to bring about social change. Different activities are being done across the 7 staions not just on air but on ground as well.

In Delhi, the programming is around the vision to bring change in society and most importantly in peoples mindset post the tragic rape incident that had shaken the nation.

This initiative Oye FM Shradhanjali, started from Lohri, the festival of change and will come to an end on Republic Day. The core thought is to bring our society on the Road (path) to Republic (equality for all genders as enshrined by constitution of India). It’s a change which our society needs for avoiding incidents like the Gangrape. The change is not just in one case or in judiciary, policing, education and government but a complete change in the mindset of people.

आलोक मेहता जी नेशनल दुनिया में क्या चिरकुटई हो रही है?

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नयी दुनिया के क्लोन के रूप में नेशनल दुनिया तो आलोक मेहता ले आये, लेकिन एक अखबार के रूप में स्थापित करने में नाकाम रहे.

नेशनल दुनिया अखबार के रूप में झूठ का पुलिंदा हो गया है और ये झूठ वो डंके की चोट पर बोल रहा है. अपनी ही लिखी बातों को झूठला रहा है और झूठ की नयी इबारत लिख रहा है.

हाल ही में नेशनल दुनिया ने नितिन गडकरी मामले में झूठ बोलने के सारे रिकॉर्ड को ही ध्वस्त कर दिया. 22 जनवरी को नेशनल दुनिया ने पहले पेज पर खबर छापी कि ‘गडकरी का अध्यक्ष बनना तय’.

लेकिन गडकरी अध्यक्ष नहीं बने और राजनाथ का नाम सामने आ गया. अगले दिन यानी 23 जनवरी को नेशनल दुनिया ने एक बार फिर खबर छापी. अबकी खबर बदल चुकी थी.

गडकरी सीन से गायब थे और राजनाथ बीजेपी के नए नाथ बनने वाले थे. अब नेशनल दुनिया की जुबान बदल चुकी थी. उसके पिछले दावे की हवा निकल चुकी थी.

लेकिन फिर भी नेशनल दुनिया ये दावा करने से नहीं चूका कि, ,नेशनल दुनिया ने पहले ही लिखा था गडकरी को नहीं मिलेगा दूसरा कार्यकाल’.

अब इसे थेथरई नहीं तो और क्या कहा जाएगा? एक दिन की हेडलाइन को दूसरे दिन की हेडलाइन झूठलाती है. ऐसे अखबार और ऐसे संपादक की क्या विश्वसनीयता?

हेडलाइन्स टुडे में ‘मटरू की बिजली का मंडोला’ की आत्मा

headlinesनिर्देशक विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘मटरू की बिजली का मंडोला’ हाल – फिलहाल आयी. फिल्म को मिली – जुली प्रतिक्रिया मिली. अपने – अपने नजरिये से लोगों ने फिल्म को देखा और सराहा. मसलन वामपंथ विचारधारा वाले इसमें वामपंथी विचारधारा की धार खोजते नज़र आये तो पक्के शराबियों ने मंडोला से शराब पीने के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रेरणा ढूँढ ली. लेकिन इन सब के बीच हेडलाइन्स टुडे ने अपने लिए विज्ञापन का आइडिया जुगाड़ लिया.

फिल्म मटरू की बिजली का मंडोला में मंडोला यानी पंकज कपूर जब भी शराब छोड़ने की कोशिश करते हैं तो उन्हें गुलाबी रंग की भैस सामने दिखाई पड़ती है. उनकी कल्पना में वह भैंस उन्हें दिखती भी है और उनपर हँसती भी है. लेकिन शराब के दो घूँट अंदर गटकते ही गुलाबी भैंस लुप्त हो जाती थी और हैरी मंडोला की जगह पर हरिया फूल फॉर्म में सामने………

CNN – IBN में पत्रकारों पर गिरेगी गाज

न्यूज़ इंडस्ट्री में जब नौकरियों की बहार आयी हुई है. चैनलों के एचआर रिक्रूटमेंट में व्यस्त हैं. ठीक उसी वक्त सीएनएन – आईबीएन में पत्रकारों को बाहर किये जाने की कवायद शुरू हो गयी है.

विश्वसनीय सूत्रों की माने तो सीएनएन – आईबीएन ने अपने बहुत सारे पत्रकारों को नोटिस दे दिया है कि वे नयी नौकरी ढूँढ लें. इसके लिए छह महीने का समय दिया गया है.

यानी छह महीने के अंदर इन्हें विकल्प ढूँढ लेना पड़ेगा. यदि नहीं ढूँढ पाए तो फिर बेरोजगारी की मार सहनी पड़ेगी. सीएनएन – आईबीएन ने ये कदम उठाया है, इस बारे में पुख्ता तौर पर तो पता नहीं चल पाया है. लेकिन निश्चित तौर पर कॉस्ट कटिंग एक वजह तो है ही.

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