बड़े संस्थानों का बड़प्पन अब गुजरे ज़माने की चीज हो गयी है. उनका व्यवहार भी अब टुच्चे संस्थानों की तरह हो गया है. यानी गैर पेशेवर और अनैतिक. खासकर अपने यहाँ काम करने वालों को लेकर उनकी मानवीय संवेदना बिलकुल मर गयी है. कोई एच आर पॉलिसी नहीं.
आउटलुक ग्रुप जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में दो दिन पहले ऐसा ही हुआ जब तीन पत्रिकाओं (पीपल,जियो और मैरी क्लेयरी) को बंद कर दिया गया और तक़रीबन 135 मीडियाकर्मी रातों – रात सड़क पर आ गए.
त्रासदी देखिए कि आउटलुक ग्रुप के इन पत्रिकाओं में काम करने वालों को अपने बेरोजगार होने और पत्रिकाओं के बंद होने की खबर ट्विटर के जरिए मिली. यदि नैतिकता की बात छोड़ भी दें तो क्या यह गैर पेशेवर रवैया नहीं है?
आउटलुक ग्रुप के प्रेसिडेंट इंद्रनील रॉय ने पत्रिकाओं के बंद होने के मुद्दे पर ऑफिसियल बयान जारी करके कहा, ‘It has nothing to do with profitability. It’s our business call not to continue with the titles. लेकिन पत्रकारों की छंटनी के सवाल पर No comment…..
गौरतलब है कि प्रेसिडेंट साहब ने बेरोजगार कर दिए गए पत्रकारों से अबतक एक बार मिलना भी गंवारा नहीं किया.
Patrakaar to ab dihadi mazdooro ke barabar ho gaye. Aaj kaam mil gaya, kal kaa pataa nahin. Unse ummid ki jaati hai ki nidar hoker independent patrakaari karen. Jab job hi unsafe hai to nirbhay hokar kaam kaise karngen. Dimaag main to rozi roti, bibi aur bachhchhe ghoom rahen honge.