ओम थानवी
यही भाजपा 2004 में यह कहती थी कि चुनाव अधिसूचना के बाद ओपिनियन पोल पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए! तब पोल माफिक नहीं था, आज उन्हें शायद माफिक बैठता दीखता है!
चंद्रा कुमार
फ़र्ज़ी ओपिनियन पोल के मुद्दे पर रविश कुमार के शो ‘प्राइम टाईम’ में भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर जितने डिफेंसिव आज दिखे उतने हाल के कुछ वर्षों में भाजपा का कोई भी प्रवक्ता नज़र नहीं आया! ‘चोर की दाढ़ी में तिनका’ का अर्थ आज साक्षात समझ आ रहा था! इधर मान्यवर मोदी जी का झूठा गुणगान चौबीसों घन्टे टीवी, रेडियो, समाचार पत्रों, पत्र-पत्रिकाओं इत्यादि में चल रहा है और उधर टीवी पर प्रकाश जी का यह कहना कि जनमत इन सबसे प्रभावित नहीं होता –क्या ये बेमेल की बातें नहीं दिखती हैं ! अगर ऐसा है तो फिर उनकी पार्टी इन पर पानी की तरह पैसा क्यों बहा रही है? भले ही वह किसी अम्बानी या अडानी ने ही भेंट किया हो लेकिन है तो वह भी पैसा ही ना !! क्या जनता यह भी नहीं जानती? भाजपा नैतिकता के तक़ाज़े मोदी और गडकरी जैसे नेताओं के राष्ट्रीय स्तर पर आगमन के साथ ही बहुत पीछे छोड़ आई है। ख़ुद को ‘पार्टी विद ए डिफरेंस’ मानने वाली भाजपा मोदी के आगे अब कुछ सोच ही नहीं पा रही। खुदा-न-खास्ता 2014 के चुनाव में अगर इनके हाथ-पल्ले कुछ नहीं लगा तो न ये घर के रहेंगे न घाट के। खुदा ख़ैर करे।