अब्दुल रशीद
भारत दौरे पर आए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारत से न केवल कई महत्वपूर्ण समझौते किए बल्कि यह भी सन्देश दिया के धर्म के पालन की आज़ादी मौलिक अधिकार है वहीँ दोनों देशों के बीच परमाणु समझौते पर गतिरोध भी दूर कर लिया गया है. कई मायने में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा महत्वपूर्ण रही. यह पहली बार हुआ कि अमेरिकी राष्ट्राध्यक्ष ने अपने कार्यकाल के दौरान दूसरी बार भारत की यात्रा की है. यह भी पहली बार हुआ है कि बतौर मुख्य अतिथि अमेरिकी राष्ट्रपति भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में उपस्थित हुए हैं. लेकिन सबसे अहम बात यह रहा कि भारत और अमेरिका के बीच संबंधों को मजबूती देने के लिए हर संभव कोशिश की गई है.
बीते आठ सालों से परमाणु करार पर गतिरोध बना हुआ था जिसके कारण महज़ चाय पार्टी के करिश्मे से इस गतिरोध को समाप्त कर दिया गया है. नरेंद्र मोदी की सरकार एक बीमा फंड बनाएगी जिसके तहत मुआवजे की राशि दी जाएगी. यानी अमेरिकी कंपनियों की जवाबदेही एक प्रकार से खत्म कर दी गयी है. यह बेहद दिलचस्प बात है कि परमाणु समझौते पर उनकी पार्टी ने केंद्र में यूपीए कि सरकार का कड़ा विरोध किया था और सुषमा स्वराज जो वर्त्तमान में विदेश मंत्री हैं उन्होंने ने तो उस समय इसका विरोध करते हुए इसकी तुलना जहांगीर द्वारा ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत में व्यापार करने के लिए दी गयी रियायतों और इस संबंध में किये गए समझौते से की थी.बीते समय में जो भी राजनीति रहा हो,अब यह स्पष्ट है प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर भाई मोदी कि सरकार भारत-अमेरिका संबंधों को एक नया आयाम देने के लिए प्रतिबद्ध है. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर भाई मोदी के साथ दो दिनों की बातचीत के बाद अंत में उन्होंने कहा कि धर्म के पालन की आज़ादी मौलिक अधिकार है.ज्ञात हो कि अमेरिका ने गुजरात में 2002 में हुए दंगों की वजह से जिसमें 1000 से ज्यादा लोग मारे गए थे, तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को ब्लैकलिस्ट कर दिया था और उनका वीजा भी रद्द कर दिया था. हालांकि भारतीय अदालतों ने उन्हें हर आरोप से बरी कर दिया है. लेकिन दंगों को रोकने में प्रशासन की विफलता और दंगों के लिए माफी मांगने से मोदी के इनकार ने कई सवाल को आज भी ज़िंदा रखा है जिसका जवाब का इंतज़ार है. हाल में “लव ज़ेहाद” ईसाइयों और मुसलमानों के धर्मांतरण के घरवापसी अभियान के खिलाफ नहीं बोलने के लिए भी मोदी की आलोचना हुई है. बराक ओबामा ने सिरीफोर्ट सभागार में करीब 2,000 चुनिंदा लोगों को संबोधित करते हुए कहा कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करना सरकारों और लोगों की जिम्मेदारी है. “हमारे राष्ट्र मजबूत होंगे यदि हम समझें कि हम सब ईश्वर की संतान हैं, उनकी नजरों में सभी बराबर हैं.”
भारत में उनके संदेश को राजनेता कितनी संजीदगी से लेते हैं और अमल करते हैं यह तो भविष्य ही बताएगा लेकिन उन्हेंने अनेकता में एकता और एकता से विकास का सन्देश दे कर भारत और अमेरिका के रिश्तों कि भविष्य रेखा तो खींच ही दी है. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने भाषण से यह विश्वास जताया कि दोनों देश न केवल स्वाभाविक साझेदार हैं बल्कि आने वाले समय में सर्वश्रेष्ठ साझेदार भी बनेंगे. उन्होंने भारत और अमेरिका के संविधान, लोकतांत्रिक मूल्यों और चुनौतियों का तुलनात्मक विश्लेषण करते हुए कहा कि विश्व में शांति और स्थिरता तभी स्थापित होगी जब दो मजबूत लोकतंत्र एकजुटता के साथ खड़े होंगे. बेहतर भविष्य के लिए अतीत को भूल कर वर्त्तमान में ईमानदार हो कर कर्म करने का संकल्प लेना चाहिए यही दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के ६६ वें गणतंत्र दिवस का गण को संदेश है.