सिंधु नदी का इलाका करीब 11 लाख 20 हजार किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसका 86 फिसदी हिस्सा भारत पाकिस्तान में बंटा हुआ है। पाकिस्तान में 47 फिसदी और भारत में 39 फिसदी हिस्से के अलावे सिंधु नदी का 8 फिसदी हिस्सी चीन में 6 फिसदी हिस्सा अफगानिस्तान में भी आता है। और इस क्षेत्र के आसपास के इलाको में करीब 30 करोड़ लोग रहते हैं,लेकिन 1947 में भारत विभाजन पर मुहर लगते ही पंजाब और सिंध प्रात में पानी को लेकर संघर्ष की शुरुआत हो गई । 1947 में भारत और पाकिसातन के इंजीनियरों की मुलाकात ने विभाजन से पहले के हालात 31 मार्च 1948 तक बरकरार रखने पर सहमति बनायी। यानी तय हुआ देश बंटे है लेकिन पानी नहीं बंटेगा। और 31 मार्च 1948 तक पानी की धारा किसी ने रोकी नहीं। लेकिन 1 अप्रैल 1948 को जैसे ही समझौते की तारीख खत्म हुई और पाकिसातन ने कश्मीर में दखल देना शुरु किया तब पहली बार भारत ने पाकिस्तान पर दबाब बनाने के लिये दो प्रमुख नहरों का पानी रोक दिया जिससे पाकिस्तानी पंजाब की 17 लाख एकड़ ज़मीन सूखे की चपेट में आ गया। यानी आज जो सवाल कश्मीर में पाकिस्तानी दखल को लेकर है भारत के सामने है वैसा ही सवाल 1948 में भी सामने आया था। हालांकि 1948 से लेकर 1960 तक सिंधू नदी को लेकर कोई ठोस समझौता तो नहीं हुआ लेकिन उस दौर में पानी रोका भी नहीं गया । लेकिन 1951 में नेहरु के
कहने पर टेनसी वैली अथॉरेटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियंथल ने इस पूरे इलाके का अध्ययन कर जब रिपोर्ट तैयार की तो वर्लड बैक ने भी इसका अध्ययन किया और 19 सितंबर 1960 को कराची में सिंधु नदी समझौते पर हस्ताक्षर हुए.समझौते हुआ तो सिंधु नदी की सहायक नदियो को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में बांटा गया । सतलज, ब्यास और रावी नदियों को पूर्वी नदी मानते हुये भारत को इस्तेमाल का हक मिला ।
तो झेलम, चेनाब और सिंधु को पश्चिमी नदी मानते हुये पाकिसातन को इस्तेमाल का हक मिला ।लेकिन नदियो में एक दूसरे देश के लिये विजली बनाने , खेती के लिय पानी उपयोग के लिये आपसी सहमति के आधार पर पानी देने की भी व्यवस्था हुई । लेकिन कोई उलझन होने पर सिंधु आयोग बना । जिसमे भारत-पाक के कमिश्नर नियुक्त हुये। दोनों देशों की सरकारों को विवाद सुलझाने का हक मिला। कोर्ट आफ आर्ब्रिट्रेशन में जाने का भी रास्ता सुझाया गया । लेकिन पाकिस्तान ने जिस तरह कश्मीर में आतंक को हवा दी और अंतराष्ट्रीय मंच पर जाकर आंतकवाद को स्टेट प़ोलेसी के तहत रखा उसने सिंधू ,समझौते के 56 बरस के इतिहास में पहली बार भारत के लिये ये सवाल तो पैदा कर ही दिया है कि सीमा पर खून बहे और खून बहाने वालो को पानी दें तो क्यों दे । और आज पीएम की बुलाई बैठक में 1948 वाले हालात की तर्ज पर पानी बंद करने की स्थिति पर चर्चा तो हुई । लेकिन ये कैसे और कबतक संभव है नजरे अब इसी पर होंगी। तो सवाल है कि क्या वाकई पानी को लेकर हालात और बिगड सकते है । और अगर ऐसा होता है तो चीन क्या करेगा । जो लगातार पाकिस्तान के पीछे खड़ा है । याद कीजिये तो न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत की सदस्यता पाकिस्तान नहीं चाहता था,तो चीन ने अडंगा लगाकर सदस्यता नहीं मिलने दी। दक्षिण चीन सागर पर भारत के रुख से चीन राज है। बलूचिस्तान का जिक्र मोदी के करने पर चीन खफा है,क्योंकि चीन का आर्थिक कॉरोडोर शिनजियांग प्रांत को रेल,सड़क और पाइपलाइन के जरिए बलूचिस्तान के ग्वादर पोर्ट से जोड़ेगा, जिस पर चीन 46 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च कर रहा है । इसलिये आतंक के सवाल पर भी चीन ने ही पाकिस्तान व के आतंकी संगठन जैश के मुखिया समूद अजहर को यूएन में ही आतंकवादी नहीं माना और वीटो जारी कर दिया ।
और अब जब भारत सिंधू पानी समझौता तोड़़ने का जिक्र कर रहा है तो चीन का मीडिया भारत को चेता रहा है। यानी हालात सिर्फ सिंधु नदी के क्षेत्र तक नहीं सिमटेगे बल्कि तिब्बत और ब्रह्मपुत्र भी इसकी जद में आयेगा । यानी इधर सिधु नदी । उधर बह्मपुत्र नदी । इधर पाकिसातन । उधर चीन । तो सवाल ये भी है कि क्या पानी को लेकर संघर्ष के हालात पैदा हुये तो चीन भी पाकिस्तान के साथ खडा होकर बह्रमपुत्र का पानी रोक सकता है । ये सवाल इसलिये क्योकि चीन अरसे से तिबब्त में बांध बनाकर बह्रमपुत्र के पानी को पीली नदी में डालने की योजना बनाने में लगा है । चीन की बांध बनाने की योजना अरुणाचल और तिबब्त की सीमा पर ग्रेट बैड पर है । जहा ब्रह्मपुत्र यू टर्न लेती है । और ब्रह्मपुत्र कही ना कही बांग्लादेश के लिये भी जीवनदायनी है । यानी भारत पाकिस्तान टकराव की जद में समूचा एशिया आयेगा इससे इंकार किया नहीं जा सकता । तो क्या वाकई पानी को लेकर दुनिया के केन्द्र में भारत पाकिस्तान हो सकता है । क्योंकि ये पहली बार हो रहा है ऐसा भी नहीं है । नील नदी को लेकर मिस्र , इथोपिया , सूडान आपस में भिडे । तो जार्डन नदी को लेकर इजरायल, जार्डन, लेबनान , फिलस्तीन और अराल सी [ नदी ] पर तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान , उजबेकिस्तान , किर्जिकिस्तान के बीच झगडा जग जाहिर है । यानी पानी एक ऐसे हथियार के तौर पर किसी भी देश के लिये सहायक हो सकता है जब उसे अपने दुश्मन देश पर दबाब बनाना हो या फिर दुश्मन देश की सत्ता के खिलाफ उसके अपने देश में राष्ट्रीय भावना को उसी के खिलाफ करना हो । और असर इसी का है कि पानी का संघर्ष चाहे गाजा पट्टी मेंदिखायी दे या फिर मिस्र , सूडान और इथोपिया के बीच । आखिर में दुनिया के दबाब में रास्ता पानी समझौते का ही निकाला गया । और पानी को लेकर बीते 50 बरस में 150 संधिया हुईं । 37 संधियों में हिंसा हुई । तो नया सवाल ये भी है आतंकवाद का नया नजरिया पानी को ही हथियार या ढाल बनाकर भी शुरु हो सकता है । क्योंकि सीरिया और यमन में अगर आईएसआईएस का आतंक आज दस्तक दे चुका है तो उसके अतीत का सच ये भी है कि सीरिया और यमन में गृह युद्द के हालात पानी की वजह से ही बने । जह वहा के गवर्नर ने अपने लिये पानी अलग से जमा कर कब्जा कर लिया । और लोगो ने विरोध किया । असंतोष के हालात में तेल के साथ साथ पानी पर भी आईएस ने कब्जा कर लिया । फिर यूनाइटेड नेशन के जेनरल सेकेट्री रहे कोफी अन्नान से लेकर मौजूदा बान की मून तक ने माना कि 21 वी सदी में तेल को लेकर नहीं पानी को लेकर युद्द होगा । बंदूकें पानी के लिये खरीदी जायेगी ।
(लेखक के ब्लॉग से साभार)