तारकेश कुमार ओझा
आजादी के बाद से खबरचियों यानी मीडिया के क्षेत्र में भी आमूलचूल परिवर्तन आया है। पहले मीडिया से जुड़े लोग फिल्म निदेशकों की तरह हमेशा पर्दे के पीछे ही बने रहते थे। लेकिन समय के साथ इतना बदलाव आया है कि अब इस क्षेत्र के दिग्गज बिल्कुल किसी सेलीब्रिटी की तरह परिदृश्य के साथ पर्दे पर भी छाये रहते हैं।अपने ही चैनल पर अपना इंटरव्यू देते हैं और हमपेशा लोगों की बखिया उधेड़ने से भी बिल्कुल गुरेज नहीं करते। बदलते दौर में खबरें शानदार शाही नाश्ते की प्लेट की तरह हो गई है जिसमें कई प्रकार के कलरफूल मिठाईयां सजी होती है। खबरों की दुनिया में दुनिया की खबरें वाकई बड़ी दिलचस्प है। इनमें से कई खबरें इसके बावजूद सुर्खियां बनती है जबकि यह पहले से मालूम होता है कि कुछ घंटे बाद ही यह खबर बिल्कुल उलटी होने वाली है। जैसे भारत – पाक संबंधों में सुधार। दोनों देशों के कर्णधार जब – तब रिश्ते सुधारने की बातें करते हैं । बयान पर बयान जारी होते हैं। लेकिन फिर अचानक सीमा पर गोलियां तडतड़ाने लगती है और तनाव का पारा फूटने को होता है।रिश्तों का यह उतार – चढ़ाव देखते कई दशक बीत चुके हैं। आगे की तो ईश्वर ही जाने।
रोचक खबरों में माननीयों के खिलाफ निलंबन जैसी कार्रवाई भी शामिल है। आम आदमी खास तौर से सरकारी मुलाजिमो के शरीर पर निलंबन के नाम से ही झुरझुरी दौड़ने लगती हैं। बचपन में मैं भी स्कूल में निलंबन की कल्पना से सिहर उठता था। क्योंकि अक्सर मास्साब उद्दंड टाइम बच्चों को एक्सपेल्ड कर दिया करते थे।एक बार खुद अपने साथ ऐसी नौबत आई तो मैं मारे डर के बेहोश होते – होते बचा। लेकिन माननीयों के लिए इसके मायने कुछ और हैं। इससे तो उलटे उनके लोकप्रियता के नंबर बढ़ते हैं। आज खबर आई कि फलां माननीय के खिलाफ सदन में अमुक कारर्वाई की गई, लेकिन दूसरे दिन कार्रवाई के सम्मानजनक खात्मे की सूचना भी आ जाती है और अल्पकाल के लिए दंडित हुआ माननीय सदन में कोई सवाल पूछता नजर आ जाता है।
आम आदमी के लिए कुछ खबरें तो बिल्कुल चाट – पकौड़े की तरह होती है। मसलन किसी मशहूर अभिनेत्री का अफेयर फिर शादी या और अंत में तलाक। बेशक ऐसी सूचनाएं आम आदमी के लिए एकबारगी महत्व पूर्ण नहीं कही जा सकती। लेकिन इससे नीरस जिंदगी में चटपटा स्वाद तो मिलता ही है। ऐसे ही नून – तेल – लकड़ी की चिंता में दुबले हुए जा रहे मैंगो मैन माफ कीजिए आम आदमी के लिए किसी नामी खिलाड़ी या अभिनेता की दिनोंदिन बढ़ती कमाई की सूचना भी भोज की थाली में रखे आचार सा स्वाद देती है। बेशक फटीचरों का खून इससे जलता हो , लेकिन आम आदमी को इस नारकीय जिंदगी में कम से कम यह कम सुकून तो मिलता है कि अपन भले अखबार वाले को समय पर पेमेंट न कर पा रहे हों, लेकिन उसके पसंदीदा खिलाड़ी या अभिनेता – अभिनेत्री की कमाई पड़ोसी महिला की सुदंरता की तरह दिनोंदिन बढ़ती जा रही है । मैं अक्सर खबरों में देखता – पढ़ता हूं कि फलां अभिनेता की फिल्म अपने जन्म लग्न यानी रिलीज होने वाले दिन ही सौ करोड़ क्लब में शामिल हो गई। बमुश्किल दो दशक पहले जब यह सुना था कि अपने अभिनय सम्राट अमिताभ बच्चन अब नई फिल्म साइन करने के एक करोड़ लेने लगे हैं तो हाथों की अंगुलियां दातों तले खुद ब खुद चली गई थी। लेकिन अब तो फिल्म का नाम भले ही न बोलते बने न सुनते , लेकिन सौ करोड़ क्या हजार करोड़ की बात भी मामूली हो चली है। कुछ खबरों का अपना मजा है। खबरों की दुनिया में जब – तब यह समाचार भी देखने – पढ़ने को मिलता है कि देश के सबसे बड़े प्रांत यानी उत्तर प्रदेश के समाजवादी पुरोधा मुलायम सिंह यादव अपने मुख्यमंत्री बेटे से काफी नाराज है। अभी कुछ दिन पहले एक समारोह में उन्हें बेटे को डपटते देख मुझे अपने स्वर्गीय पिता की याद हो आई। कई बार मुझे लगा कि यदि बाबूजी सचमुच नाराज है तो बिटवा पर गाज तो गिरनी ही गिरनी है लेकिन एक चुनाव से चल कर अपना उत्तर प्रदेश दूसरे चुनाव के करीब पहुंच गया। लेकिन मुख्यमंत्री पद पर अखिलेश बाबू ही काबिज हैं।
(लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं।)