आजतक सौम्या विश्वनाथन को और एबीपी न्यूज़ सायमा सहर को भी याद कर ले

बलात्कार का रियल्टी शो / महिला अपराध पर न्यूज़ चैनल अपने अंदर भी झांके / आजतक, जी न्यूज़, एबीपी न्यूज़ महिला अपराध पर खुद भी एक बार आइना देख लें.

aaj-tak-reporterबलात्कार, बलात्कार और बलात्कार. पिछले छः दिनों से समाचार चैनलों पर बलात्कार शब्द का न जाने कितनी बार इस्तेमाल हुआ. जिस शब्द को बोलने में जबान लड़खड़ाती थी आज वह शब्द पानी की तरह बह रहा है. समाचार चैनलों की कृपा से बच्चे – बच्चे की जुबान पर शब्द बैठ गया और अब इसे बोलते हुए पहले जैसी जबान लड़खड़ाती नहीं.

एक नज़र में समाचार चैनलों के सरोकार पर न्योछावर होने का जी करता है. उनकी क्रांतिकारिता को सलाम ठोकने का दिल करता है. दुष्कर्म के खिलाफ उनकी मुहिम काबिलेतारीफ है. लेकिन क्या वाकई में महिला अपराध को लेकर समाचार चैनल इतने संवेदनशील हैं और जड़ से इसे खत्म करने के लिए गंभीर भी?

ज़ी –जिंदल उगाही मामले में जी न्यूज़ के साथ –साथ बाकी चैनलों की भी इज्जत उतर गयी. इसलिए अभी सरोकार की दरकार भी थी. दिल्ली दुष्कर्म मामले ने ये मौका भी दे दिया और लगभग सारे चैनल सरोकार का लबादा ओढ़ कर सरोकारी चैनल की भूमिका में आ चुके हैं. लेकिन धीरे – धीरे ये सारा सरोकार रियल्टी शो में तब्दील होता जा रहा है.

आजतक ने ‘पूछता है आजतक’ नाम से कार्यक्रम लॉन्च किया तो दस महिला पत्रकारों की फ़ौज को सड़क पर उतार दिया. गौर करेंगे तो पायेंगे कि सामूहिक दुष्कर्म मामले पर आजतक पर जो भी रिपोर्टिंग हुई, उसमें कोशिश की गयी है कि ज्यादा से ज्यादा महिला एंकर – रिपोर्टर नज़र आये. इंडिया गेट से रितुल जोशी तो जंतर – मंतर में अंजना कश्यप. कमोबेश कई दूसरे चैनलों भी ऐसा ही करते नज़र आये. ये बात अलग है कि उनके पास आजतक की तरह महिला पत्रकारों की लंबी फ़ौज नहीं है.

संभवतः आजतक और दूसरे समाचार चैनलों की ये सोंच होगी कि महिला पत्रकार होने से उसकी स्टोरी ज्यादा ऑथेंटिक लगेगी. फिर यह भी सोंच मालूम पड़ती है कि महिला अपराध का मामला है तो महिला पत्रकार ही कवर करे. लेकिन इस मानसिकता से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि महिलाओं की स्क्रीन प्रेजेंस पुरुषों से ज्यादा बेहतर होती है और चैनल पर थोडा ग्लैमर भी दिखता है, इसलिए महिला पत्रकारों को आगे कर दिया गया.

लेकिन यदि मुद्दा सही है, आपके कंटेंट में दम है तो फिर महिला –पुरुष पत्रकार होने से कोई फर्क नहीं पड़ता. मसलन एक तरफ आजतक के ही शम्स ताहिर खान महिला अपराध पर स्टोरी करे और दूसरी तरफ अंजना कश्यप, तो दर्शक शम्स ताहिर खान की स्टोरी देखना पसंद करेंगे और उनकी स्टोरी का प्रभाव भी कहीं ज्यादा होगा. उनकी स्टोरी को देखकर आप भावुक हो सकते हैं और शायद रो भी पड़े तो कोई आश्चर्य नहीं. यहाँ मुद्दों की समझ और उससे जुड़ाव का मामला है जो एक जेनुइन रिपोर्टर ही दे सकता है, जो ऐसे विषयों को कवर भी करता रहा हो और संवेदनशील भी हो.

लेकिन यदि ऐसा होगा तो
फिर रियल्टी शो कैसे बनेगा और उसमें ग्लैमर का तडका कैसे लगेगा? ज़ी न्यूज़ दिनभर बलात्कारियों को फांसी पर चढाने की मुहिम में लगा रहता है. आंसू निकालने पर आमदा. लेकिन 12 बजते ही सीधे पावर प्राश पर ही गिरता है और अबतक जहाँ सरोकार की महफिल जमी थी वहां पर वीणा मल्लिक के नेतृत्व में पावर प्राश की महफ़िल सज जाती है. विज्ञापन में साफ़ तौर पर जो संदेश देने की कोशिश होती है वह बताने की जरूरत नहीं. यह तो रात 12 बजे के बाद की बात है. लेकिन दिन में भी सरोकारी खबरों के बीच – बीच में आ रहे विज्ञापन काफी कुछ कह जाते हैं.

नेहा स्वाहा, स्नेहा स्वाहा, टाइट पेन्ट वाली…..,तो हो गयी न स्वाहा. खुद स्वाहा नहीं हुई तो जबरन स्वाहा कर दी गयी. अब स्यापा क्यों? अमुक डियो लगाने से लड़किया आपपर कूद पड़ती हैं. शादीशुदा औरतें तक होश – हवास खो देती हैं. फलाना जींस पहनने से लड़कियां पट जाती है. यहाँ तक कि बनियान और चड्डी तक का असर होता है. क्या ऐसे विज्ञापनों के खिलाफ समाचार चैनलों ने कभी कोई स्टैंड लिया है?

बलात्कार का रियलिटी शो कैसे बनता है और इसमें सितारों का तडका कैसे लगता है. उसका उदाहरण आजतक की एक स्टोरी है. आजतक ने चलाया कि गुस्से में बॉलीवुड. दबंग – 2 के प्रोमोशन के लिए आये सलमान खान उर्फ पाण्डेय जी और करीना कपूर की भी राय ले ली और उनलोगों ने भी फ़िल्मी अंदाज में जवाब दे दिया. लेकिन बॉलीवुड को गुस्सा होने का हक है क्या? स्त्री को भोग की तरह पेश करने में बॉलीवुड का कितना बड़ा रोल है क्या यह भी बताने की जरूरत है? फिर बॉलीवुड के अंदर कास्टिंग काउच किस तरह से होता है, वह भी किसी से छुपा नहीं. क्या इसके खिलाफ सलमान खान ने कभी कोई भूमिका निभाई ? आजतक के किसी रिपोर्टर ने ये सवाल नहीं किया कि मुन्नी बदनाम हुई, झंडू बाम हुई जैसे आयटम नंबर्स के जरिये बॉलीवुड समाज को क्या संदेश देता है? शक्ति कपूर, गुलशन ग्रोवर के वह रेप सीन याद कीजिये. आप झनझना उठेंगे. यहाँ पर पूछता है आजतक डालकर आजतक बॉलीवुड से तीखे सवाल करता तो शीर्षक जंचता. लेकिन ऐसे सवाल बलात्कार के रियलटी शो में खलल डालते हैं. फिर क्यों पूछे जाएँ?

लेकिन इन सारे सवालों के बीच सबसे अहम सवाल है कि खुद अपनी महिला कर्मियों के प्रति समाचार चैनलों का क्या रवैया है? क्या वहां भी वे इतने ही संवेदनशील और क्रांतिकारी रूप में नज़र आते हैं? स्टार न्यूज़ जो अब एबीपी न्यूज़ है, वहां सायमा सेहर सेक्सुअल हरासमेंट केस में क्या हुआ? स्टार न्यूज़ तो छोडिये किसी भी समाचार चैनल ने एक मिनट की भी स्टोरी नहीं चलायी. स्टोरी को पूरी तरह से दबा दिया गया. क्या सायमा सेक्सुअल हरासमेंट केस एक मिनट की भी स्टोरी बनने के लायक नहीं थी.

आजतक और हेडलाइन्स टुडे ने अपनी ही पत्रकार सौम्या विश्वनाथन की रहस्मय मौत के बाद क्या किया? कौन सी मुहिम चलायी. मुहिम तो छोडिये खबर चलाने में भी देरी की. आज भी सौम्या विश्वनाथन की मौत की गुत्थी फाइलों की धूल ही फांक रही है. ऑफिस से घर जाते हुए कार में उसके साथ क्या हुआ, अब भी कोई नहीं जानता. यदि ऐसी ही मुहिम उस वक्त भी आजतक चलाता तो शायद ये नौबत ही नहीं आती.

सरोकारी ज़ी न्यूज़ में एक महिला पत्रकार की रहस्मय मौत हुई. उसे लीप – पोत करके बराबर कर दिया गया.उसके साथ क्या हुआ और उसकी मौत कैसे हुई , किसी को पता नहीं. वैसे वजह कार दुर्घटना बताई गयी, लेकिन उसी कार दुर्घटना में कैमरामैन और रिपोर्टर को कुछ भी नहीं हुआ. संदेह की कई और भी वजह हैं. लेकिन इसे उकेरना न ज़ी न्यूज़ चाहता था और न बाकी के चैनल.

इसके अलावा दर्जनों मामले और भी हैं जहाँ कैमरे की नाक के नीचे ठीक दिया तले अँधियारा की तर्ज पर महिला पत्रकारों के साथ अपराध हुए. लेकिन न्यूज़ इंडस्ट्री सोता रहा. उसकी संवेदना नहीं जगी. यह सिद्ध करता है कि महिला पत्रकारों के साथ होने वाले अपराध के प्रति खुद न्यूज़ चैनलों का क्या रवैया रहता है? वे कितने उदासीन हैं?

महिला अपराध के खिलाफ झंडा बुलंद करने के साथ – साथ एबीपी न्यूज़ सायमा सेहर सेक्सुअल हरासमेंट केस को याद करे और हेडलाइन्स टुडे सौम्या विश्वनाथन के मामले को. अपने मामले में महिला अपराध के प्रति समाचार चैनलों की सारी संवेदना कहाँ हवा हो जाती है? संवेदना तो दूर खबरों की दुनिया में आने से पहले ही खबर को दफ़न भी कर दिया जाता. खबरनवीस होने की यह कौन सी कीमत है जिसे सभी को चुकाना पड़ता है.

आजतक की स्टोरी – और आंसू रो पड़े. मुझे यकीन है कि न्यूज़ चैनल हमारे आंसुओं को टेलीविजन के स्क्रीन पर ही सूखा देगा. उन आंसुओं से टीआरपी की माला तो जरूर बन जायेगी, लेकिन बदलेगा कुछ नहीं. पूरे समाज को बदलने की ठेकेदारी करने वाले चैनल अपनी दुनिया में भी झांके और वहां भी झाड़ू – पोछा मारे. और कुछ आंसू अपनी दुनिया के लिए भी बचाकर रखें.

पुष्कर पुष्प,

संपादक,

मीडिया खबर डॉट कॉम

संपर्क – pushkar19@gmail.com

3 COMMENTS

  1. आप ये शपथ लें की हम बलात्कार के खिलाफ चल रही इस मुहिम को थमने नहीं देंगे

    शपथ लेने के लिए “हमें” एसएमएस करें 57777 पर —– ज़ी न्यूज़

    (एसएमएस चार्जेस 5 रुपये प्रति एसएमएस)

  2. न्यूज़ चैनल महिला एंकरों का उपयोग लोग सॉफ्ट कॉर्नर से खबर चैनल देख टी आर पी बढाने के लिए करते हैं। सायमा प्रकरण की जानकारी मुझे केवल मीडिया खबर के माध्यम से ही हुई।किसी भी न्यूज़ चैनल पर खबर तक नहीं दिखी। इस बार इतना इंटरेस्ट लेने वाले लोग अब तक कहाँ थे?

  3. I am so glad you brought this topic up!! Media is the most corrupt of all the industries and ironically they have the power to manage all the fora of justice!!

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