विनीत कुमार
स्टेटस1- तमाम न्यूज चैनल और मीडिया संस्थान प्रधानसेवक के आगे बिछे हैं..उन्हें देश का प्रधानमंत्री कम, अवतारी पुरुष बताने में ज्यादा रमे हुए हैं लेकिन उनकी ही पार्टी की सरकार की शह पर मीडियाकर्मियों की जमकर पिटाई की जाती है.
पुलिस उन पर डंडे बरसाती है..हमने तो जनतंत्र की उम्मीद कभी की ही नहीं लेकिन आपने जो चारण करके जनतंत्र के स्पेस को खत्म किया है, अब आपके लिए भी ऑक्सीजन नहीं बची है..
अफसोस कि आपके लाख घाव दिखाए जाने के बावजूद वो संवेदना पैदा नहीं हो पा रही, जो मानवीय स्तर पर पनपनी चाहिए..पता नहीं क्यों, लग रहा है इसके लिए आप ज्यादा जिम्मेदार हैं जिसका सबसे शर्मनाक पहलू है कि मैनेज आपके मालिक होते हैं और आपको सैलरी उनके हिसाब से मैनेज होने के लिए मिलती है, जर्नलिज्म करने के लिए नहीं.
स्टेटस2- हमारा मीडिया जबकि राजनीतिक पार्टियों, तथाकथित बाबाओं और कॉर्पोरेट से इतना अधिक मैनेज है तो भी मीडियाकर्मी पर सरकार की शह पर पुलिस लाठियां बरसाती है..मीडिया का चरित्र इन तीनों की की ही तरह है..जितना भ्रष्टाचार और लोकतंत्र की जड़ें राजनीतिक पार्टियां कर रही है, उतना ही मीडिया भी, जितना पाखंड़ और अंधविश्वास ये बाबा-महंत फैला रहे हैं, उतनी मीडिया भी और जितना कॉर्पोरेट इस देश को लूट रहा है, लोगों की जुबान बंद कर रहा है, उतना ही मीडिया भी..फिर भी मीडियाकर्मी इनके हाथों पिट जाता है…अब सोचिए कि जिस दिन मीडिया इन सबसे मुक्त अपने चरित्र के हिसाब से जीने की कोशिश करे तब क्या होगा ? मीडियाकर्मियों की देश में लाश बिछ जाएगी.
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