डा. पीके लेले
करीब साल 2001-02 की है| इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का बसंत ऋतू शुरू ही हुआ था| अचानक अब ‘बे-सहारा’ दिखाई पड़ रहे संस्थान ने एक बड़ी बिल्डिंग में चैनल की शुरुआत की| तब पहली बार इस कल्चर को महसूस किया| कोई डबराल साहब आए और देखते ही देखते एक खास लंबी फौज उनके पीछे खड़ी हो गई| खांडपाल, कांडपाल, अंडपाल, वगैरह-वगैरह|
”रोग” का जन्म हो चुका था| रोग अब “कैंसर’ बन चुकी है| सबूत-कुछ दिन पहले लखनऊ में देश के सबसे बड़े पेशेवर टाइम्स ग्रुप का नवभारत टाइम्स लॉन्च हुआ| कोई त्रिपाठी या मिश्रा संपादक बने, तो पंडितों की पूरी फौज जमा हो गई| मतलब ये कि हिंदुस्तान के सबसे पेशवर संस्थान के प्रोफेशनलिज्म की हवा निकल गई| इस पंडित ने सारे प्रोफेशनलिज्म की मां बहन एक कर दी| लेकिन सबसे प्रोफेशनल संस्थान के आईआईएम से पास हुए एचआर मैनेजरों को कुछ नहीं दिखाई दिया| एक और सबूत-सालों पहले जागरण दिल्ली में निशिकांत ठाकुर आए तो खास राज्य के वो लोग भी पत्रकार बन गए, जो चपरासी भी बनने की काबिलियत नहीं रखते थे| जिन्हें नाम भी ढंग से नहीं लिखना आती थी| एक और ताजा और भविष्यवाणी का सबूत-कुछ दिन बाद विद्वानों के विद्वान और पत्रकारों के पत्रकार अजीत अंजुम एक बड़े चैनल में जाएंगे, तो देखिएगा| झा, ओझा और राज्य विशेष की खास फौज उनके पीछे पीछे चली जाएगी| मतलब ये कि सबसे बड़ा सवाल में चिल्ला चिल्लाकर तर्क देने वाले अंजुम का क्षेत्रीय और जातिगत भ्रष्टाचार जारी रहेगा| उल्लेखनीय है कि भ्रष्टाचार आर्थिक ही नहीं होता| आगे बढ़ते हैं अजीत अंजुम के पुराने चैनल में हो सकता है कि कोई पहाड़ी सज्जन बॉस बनकर आ जाएं, तो उनके साथ भी कुछ ऐसा ही हो सकता है| विश्वकर्मा, कृपाकर्मा टाइप के लोग उनके साथ दिख सकते हैं भाई लोगों| देश के सबसे तेज चैनल में आप चेक कर लीजिएगा| ज्यादार लोग एक खास राज्य से आते जा रहे हैं| खुफिया रिपोर्ट के अनुसार भीतर के लोगों में नाराजगी बढ़ने लगी है कि ये हो क्या रहा है कि खास राज्य के लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है| भइया अरुण पुरी ध्यान दो भाई|
एक चैनल में खुद को कवियों के कवि और सबसे ईमानदार पत्रकार बताने वाले और सत्यजीत राय से बेहतर फिल्म बनाने का दावा करने वाले वाले संपादक की चैनल में भी हाल कुछ ऐसा ही है| जब इन साहब ने कांग्रेसी नेता के चैनल को ज्वाइन किया तो सबसे पहले अपने राज्य के एक महा भुतिया को सिनीयर प्रोड्यूसर ज्वाइन कराया| वो बाद में लड़कीबाजी के केस में पुलिस केस में बुरी तरह फंसता दिखाई पड़ा तो चुपचाप उसे जयपुर न्यूज नेशन में बतौर रिपोर्टर सेट करा दिया गया| मामला ठंडा पड़ा तो महा भुतिया फिर से इंडिया न्यूज आ गया| इसी चैनल में एक और उदाहरण बताएं तो एक सज्जन डेस्क हेड थे| इनकी टीम में आठ लोग थे| लेकिन आठों के आठों इलाहाबाद के| सवाल ये है कि इन चैनलों का “मानव संसाधन मंत्रालय” कर क्या रहा है? क्या सबसे तेज चैनल का ‘मानव संसाधन मंत्रालय’ सो रही है? मानव संसाधन विभाग को इन क्षेत्रवाद और जातिवाद भ्रष्टाचारियों का कारनामा क्यों नहीं दिखाई पड़ता? इन जातिगत और क्षेत्रीय भ्रष्टारियों ने कैसे एचआर डिपार्टमेंट और अरुण पुरी जैसे मालिकों की आंखों पर पट्टी बांध दी है? ये जातिगत और क्षेत्रीय भ्रष्टाचारी खुद को विद्वान और महान पत्रकार बताते हैं| मर्यादा पुरोषोत्तम राम की बातें करते हैं| लेकिन जब बात ईमानदारी से किसी को नौकरी देने की आती है या तौलने की आती है तो इनके दिल इनकी बिरादरी या क्षेत्र की बिरादरियों (वो भी अपनी) में आकर बस जाते हैं| फिर ये अंजुम, राणा सांगा और प्रसाद भाई किस बाद के पत्रकार और संपादक हैं?
ठीक है यार कि ये भी हो सकता है कि कोई दूसरे राज्य का या हर व्यक्ति आपके घर का सामान नहीं ढो सकता| महीने का राशन नहीं डलवा सकता| हो सकता है कि हर बाहरी अपनी तन्खवाह का एक हिस्सा आपकी दारूबाजी पर खर्च नहीं कर सकता| लेकिन हे महान संपादकों कम से कम चीजों को बैलेंस तो करो| थोड़ी सी तो ईमानदारी दिखा लो| क्यों इतना डरे हुए हो भाई लोगों? क्यों इतना असुरक्षित महसूस करते हो महान संपादकों? अरे आप टॉप पर हैं| आपको सारी पावर मिली हुई है| फिर इतना डर क्यों है ईमानदार संपादकों? पैंसठ हजार बच्चे हर साल पत्रकारिता पास करके निकलते हैं| कोई मुंबई से टीवी पत्रकार बनने आता है| कोई उड़ीसा से|कोई राजस्थान से|कोई राजपूत झा से उम्मीद लगाता है| कोई अरोड़ा राणा सांगा के घर के चक्कर काटता है| लेकिन यहां तो शर्मा शर्मा को, गुप्ता गुप्ता को, झा झा को, दिल्ली वाला दिल्ली वाले को, बिहार वाला बिहार वाले को ही गले लगाए पड़ा है| काबीलियत और ईमानदारी गई तेल लेने| मैं तो उसे ही नौकरी दूंगा, जो मेरी गलत बात पर तब तक सही कहता रहे, जब तक मैं कहूं| तब तक हंसता रहे जब तक मैं हंसूं| मुझे हफ्ते में एक बार दारू तो जरूर पिलाए| मेरी किसी भी गलत बात को भूलकर भी न काटे| लेकिन शर्म, शर्म शर्म, इन सभी चैनलों का एचआर (मानव संसाधन विभाग) सो रहा है| अरुण पुरी का भी| कांग्रेसी नेता का भी| न्यूज नेशन का भी| ज्यादातर चैनलों का| यहां तो महान,ईमानदार संपादकों (खुद की नजरों में) का क्षेत्रीय और जातिवाद भ्रष्टाचार पूरे जोरों पर चल रही है| राम-राम भाई साहब| अच्छा लगे तो कमेंट दीजिएगा| जिन्हें बुरा लगे वो मेरे ‘इस’ पे|
(डा. पी.के.लेले, नोट: मैं पीकर सबकी ले लेता हूं!)
स्तरहीन
स्तरहीन ही नहीं मीडिया के लिए शर्मनाक है ये ….पत्रकारिता में अब नागमणियों के गैंग बन गए हैं जो एक चैनल से दूसरे चैनल अपने विषधरों को साथ लेकर घूमते हैं..अकेला आदमी कहीं नौकरी मांगने जाए तो उसे निर्दलीय उम्मीदवार समझकर झिड़क कर भगा दिया जाता है, ये जितना शर्मनाक पत्रकारिता के लिए है उससे ज्यादा इन अंजुमों, कपाड़ियों के लिए भी