जगदीश्वर चतुर्वेदी
पंडित जवाहरलाल नेहरु के जन्मदिन पर विशेष- ”क्लिक कल्चर” के प्रतिवाद में पंडित नेहरु
उल्लेखनीय है पंडित जवाहरलाल नेहरु देश के सामान्य प्रधानमंत्री नहीं थे, वे सामान्य राजनेता भी नहीं थे। आमतौर पर लोकतंत्र में नेता आते हैं और जाते हैं।औसत नेता ही लोकतंत्र की संपदा के रुप में नजर आते हैं, भारत में अनेक औसत नेता प्रधानमंत्री बने,लेकिन आधुनिक विचारवान विरल प्रधानमंत्री तो एकमात्र पंडितजी ही थे। वे ऐसे प्रधानमंत्री थे जिनके पास आधुनिक भारत का विज़न था,आधुनिक विचार थे ,आधुनिक जीवनशैली थी और इन सबसे बढ़कर अपने विचारों के लिए जोखिम उठाने का साहस था।
नेहरु को महान जिस चीज ने बनाया वह था जीवन के प्रति उनका विवेकवादी नजरिया। नेहरु के लिए साधन और साध्य एकथे। उन्होंने लिखा है ” शुरु में जिंदगी के मसलों की तरफ़ मेरा रुख़ कमोबेश वैज्ञानिक था,और उसमें उन्नीसवीं सदी और बीसवीं सदी के शुरु के विज्ञान के आशावाद की चाशनी भी थी। एक सुरक्षित और आराम के रहन-सहन ने और उस शक्ति और आत्म-विश्वास ने ,जो उस समय मुझमें था,आशावाद के इस भाव को और बढ़ा दिया था।” हमारे नेताओं और राजनीतिक कार्यकर्ताओं में एक बड़ा अंश है जो अंधविश्वासी और धर्म का अंधपूजक है। वेधर्म को आलोचनात्मक विवेक की आंखों से देखते ही नहीं हैं। ऐसे अंधपूजक हमारे देशके प्रधानसेवक भी हैं। जबकि नेहरु में ये चीजें एकदम नहीं थीं। नेहरु ने लिखा है, ” मजहब में – जिस रुप में मैं विचारशील लोगों को भी उसे बरतते और मानतेहुए देखता था,चाहे वह हिन्दू-धर्म ,चाहे इस्लाम या बौद्ध-मत या ईसाई-मत-मेरे लिएकोई कशिश न थी । अंध-विश्वास और हठवाद से उनका गहरा ताल्लुक था और जिन्दगी केमसलों पर ग़ौर करने का उनका तरीक़ा यक़ीनी तौर पर विज्ञान का तरीक़ा न था। उनमेंएक अंश जादू-टोने का था और बिना समझे-बूझे यकीन कर लेने और चमत्कारों पर भरोसा करने की प्रवृत्ति थी।”
” फिर भी यह एक जाहिर-सी बात है कि मज़हब ने आदमी की प्रकृति की कुछ गहराई के साथ महसूस की हुई जरुरतों को पूरा किया है और सारी दुनिया में,बहुत ज्यादा कसरत में ,लोग बिना मज़हबी अकीदे के रह नहीं सकते। इसने बहुत-ऊँचे किस्म के मर्दों और औरतों को पैदाकिया है ,और साथ ही तंग-नज़र और ज़ालिम लोगों को भी।इसने इन्सानी ज़िन्दगी को कुछ निश्चित आंकें दी हैं और अगरचे इन आंकों में से कुछ आज के ज़माने पर लागू नहींहैं.बल्कि उसके लिए नुकसानदेह भी हैं,दूसरी ऐसी भी हैं, जो अख़लाक़ और अच्छे व्यवहार लिए बुनियादी हैं।”
नेहरु ने लिखा है ” असल में मेरी दिलचस्पी इस दुनिया में और इस जिंदगी में है,किसी दूसरी दुनिया या आनेवाली जिंदगीमें नहीं।” पंडितजी पुनर्जन्म की धारणा में यकीन नहीं करते थे,अंधविश्वासों के विरोधी थे।दिमागी अटकलबाजी में यकीन नहीं करते थे। वे चीजों,घटनाओं,व्यक्तियों,समुदायऔर वस्तुओं को वैज्ञानिक नजरिए से देखने में विश्वास करते थे। उन्होंने माना ”मार्क्स और लेनिन की रचनाओं के अध्ययन का मुझ पर गहरा असर पड़ा और इसने इतिहास और मौजूदा जमाने के मामलों को एक नई रोशनी में देखने में बड़ी मदद पहुँचाई। इतिहास और समाज के विकास के लंबे सिलसिले में एक मतलब और आपस का रिश्ता जान पड़ा और भविष्य का धुंधलापन कुछ कम हो गया।”