दिलीप मंडल,वरिष्ठ पत्रकार-
मेरी यह पोस्ट उन मासूम मुसलमानों के लिए है, जो हर रात NDTV पर सेकुलरिज्म को साकार होता देखते हैं। जिन भोले लोगों को भ्रम है कि एनडीटीवी सांप्रदायिक ताक़तों से लड़ रहा है।
मैंने नवंबर, 2016 में ही यह कह दिया था कि एनडीटीवी अभी सेकुलरिज्म का नाटक करके आपका भरोसा जीत रहा है, ताकि मौक़े पर यूपी में बीजेपी के लिए काम कर सके।
बिहार में बीजेपी के लिए प्रचार करने के लिए एनडीटीवी ने ओपिनियन मेकिंग पोल कराए थे। बहुत थू-थू हुई और ख़ुद मालिक प्रणय रॉय को प्राइम टाइम में माफ़ी माँगनी पड़ी।
इसलिए यूपी में ओपिनियन मेकिंग पोल का रास्ता एनडीटीवी के पास नहीं था।
लेकिन मुकेश अंबानी के एहसान तले दबे और केंद्र की जाँच एजेंसियों से भयभीत इस चैनल को बीजेपी के लिए यूपी में प्रचार तो करना ही था।
इस बार यह काम करने मालिक प्रणय रॉय ख़ुद उतर पड़े।
मतदान जब चल ही रहा है तब चार पत्रकारों से बात करके प्रणय रॉय ने टीवी पर शो चला दिया कि यूपी में बीजेपी जीत रही है। इसके लिए ग्राउंड रिपोर्ट की आड़ ली गई।
इस तरह एनडीटीवी ने नमक का क़र्ज़ चुका दिया।
यह सब तो वह बात है, जो आप सब जानते हैं, देख-पढ़ चुके हैं।
असली बात यह है कि इसके बावजूद एनडीटीवी और उसके मालिक और उनके कर्मचारी भोले लोगों की नज़र में सेकुलर बने रहेंगे।
अंतिम बात, ख़तरा दैनिक जागरण, जी टीवी या रजत शर्मा से नहीं है। वे जो हैं, वह जगज़ाहिर है।
ख़तरा घास में छिपे हरे साँपों से है।
मीडिया एक सिस्टम से काम करता हैं। वहाँ एकाध सेकुलर इसलिए रखे जाते हैं ताकि ठीक समय पर सांप्रदायिकता के पक्ष में गोल दागा जा सक
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