डॉ शोभा भारद्वाज
जंगलों में सीआरपीएफ पर आदिवासियों के औरतों बच्चों को आगे कर घात लगाते, छिप कर वार करते , सत्ता को चुनोती देते नक्सलियों के बारे में सभी जानते है लेकिन शहरों में बसे समाज का सुखी सम्पन्न सफेद पोश वर्ग देश में ही नहीं विदेशों तक में नक्सलियों के पक्ष में शोर मचा कर उनके लिए समर्थन जुटाते हैं | अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता मानवाधिकार की दुहाई देते हुए खुल कर सामने आते हैं यही नहीं स्वयं पर फर्जी हमले करवाने से लेकर किसी पर भी बलात्कार के आरोप लगाने में निपुण हैं यदि सख्त पुलिस अफसर नक्सलाईट पर सख्ती बरतता हैं उसके पीछे पड़ जाते हैं कुछ चैनल टीआरपी बढ़ाने के लिए ऐसी खबरों को बार-बार चलाते हैं प्राईम टाईम में बहस कराते हैं लेकिन इनकी पुष्टि न होने पर मौन हो जाते हैं|सफेद पोश नक्सली गतिविधियों खून खराबे पर मौन धारण करने में निपुण हैं |यपीए की सरकार के गृहमंत्री पी चिंदबरम नक्सलियों के खिलाफ एयरफोर्स का इस्तेमाल करना चाहते थे उनका जम कर विरोध हुआ अत: अभियान पर ब्रेक लगाना पड़ा, मोदी जी ने भी सुकमा में हत्या कांड के तुरंत बाद सेना लगाने से परहेज किया|
शहरी सफेद पोश आमतौर पर मानवाधिकारवादी ,सामाजिक कार्यकर्ता ,शिक्षण कार्यों में लगे लोग है कुछ अपने आप को पत्रकार कहते हैं कुछ रिसर्च स्कालर |वह नक्सलियों की खोज खबर के नाम पर उनके गढ़ में जाते हैं उनके बयानों का प्रचार ही नहीं गौरव गान करते हैं लेकिन दुःख से कहते हैं हम तो दोनों तरफ की मार झेलते हैं नक्सलाईट हमें सरकारी जासूस और मुखबिर समझते हैं सरकार शक की नजर से देखती है जेल भेज देती है |हम तो आदिवासियों की हालत सरकार को बताना चाहते हैं |यही आदिवासियों को भड़काते हैं केंद्र और राज्य सरकारें उनके क्षेत्र का विकास करना नहीं चाहती, 70 वर्ष बीत गये आज भी वह मौलिक अधिकारों ,रोटी कपड़ा मकान बच्चों की शिक्षा स्वास्थ्य सेवा और विकास उनका अधिकार था, से वंचित हैं| सुकमा पहुचने के मार्ग में खूबसूरत नजारे घाटियाँ घने जंगल मन को मोहते हैं लेकिन जगह जगह विस्फोटों से टूटी सड़कें हैं अर्द्ध सैनिक बलों के कैंप छावनी जैसे लगते हैं क्षेत्र में जाने की हिम्मत करना बड़ी बात है | यह नक्सलियों का क्षेत्र हैं या उनके मनमाने साम्राज्य की सीमा शुरू हो रही हैं |आदिवासी चाहते हैं सड़कें बने मोबाईल टावर लगें वह शहरों से जुड़ें लेकिन बनती सड़कें सीआरपीएफ जवानों के खून से रंगी जा रही है |तर्क दिया जाता है तुम्हारे आदि वासी क्षेत्रों से तुम्हे निकाल दिया जाएगा वनों पर तुम्हारा अधिकार है लेकिन तुम शहरों में मजदूरी के लिए विवश हो जाओगे | बस्तर में ईसाई मिशनरियाँ भी सक्रिय हैं आदिवासियों की सेवा के नाम पर इन क्षेत्रों में रहते हैं उनका धर्म परिवर्तन के नाम पर विदेशों से मोटा पैसा मिलता है इनमें भारतीय भी शामिल हैं |
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जी.एन.साईबाबा सफेद पोश माओवादी थे , जेएनयू का छात्र हेम मिश्रा और उसके चार साथी देश के खिलाफ षड्यंत्र रचने तथा देशद्रोह के अपराध में पकड़े गये उनमें से एक अपराधी विजय तिरकी को दस वर्ष की सजा हुई बाकी को उम्र कैद |साईबाबा व्हील चेयर पर था उसका अपराध न देख कर मानवाधिकार वादियों नें उसके पक्ष में देश विदेश तक शोर मचाया ,अपीलें की गयी चैनलों में एक ही चर्चा थी उसे छोड़ने के लिए सरकार को मजबूर किया लेकिन देश द्रोह के गुनाहगार की सजा सुप्रीम कोर्ट ने कम नहीं की |
जेएनयू प्रसिद्ध विश्वविद्यालय है यहाँ सस्ती फ़ीस , कैंटीन में सस्ता भोजन ,हास्टल सुविधा है लेकिन शुरू से ही बाम पंथियों का गढ़ रहा है किसी भी विषय पर बेबाक बहस करना संस्थान की विशेषता है लेकिन अधिकतर बाम पंथी विचार धारा पर बहस होती है| नक्सलवाद के खिलाफ लड़ने वाले 76 अर्ध सैनिक बलों की शहादत पर खुश होकर जश्न मनाया गया था दुखद टैक्स पेयर के पैसे पर पलने वाले बुद्धिजीवियों की मानसिकता पर हैरानी है इसी संस्थान में पिछले वर्ष 9 फरवरी को अफजल गुरु और मकबूल भट का महिमा मंडन ही नहीं किया, देश विरोधी नारे लगे कितने अफजल मारोगे हर घर से अफजल निकलेगा पाकिस्तान जिंदाबाद देश के टुकड़े टुकड़े तक जंग जारी रहेगी यह किसी और प्लेनेट के जीव नहीं थे इसी भारत भूमि में रहते हैं देश स्तब्ध रह गया| दिल्ली यूनिवर्सिटी के राम जस कालेज में होने वाले सेमिनार में जेएनयू के छात्र ‘उमर खालिद’ और शहला रशीद को सेमिनार में शामिल होने के लिए बुलाया गया लेकिन विरोध होने पर न्योता रद्द करना पड़ा जिससे पक्ष और विपक्ष के बीच होने वाली झड़पों में दोने पक्ष के छात्र, टीचर और पुलिस कर्मी जख्मी हुये शिक्षण संस्थाओं में पनपती नक्सलवादी विचार धारा की राजनीति शुभ लक्षण नहीं है |सुकमा के शहीदों को दी जाने वाली श्रद्धांजलि का विरोध किया गया |
सोवियत संघ के टूटने के बाद मार्क्सवाद कमजोर पड़ने लगा चीन भी माओ वादी विचार धारा से धीरे-धीरे पीछे हट रहा है लेकिन भारत में नई विचार धारा, क्रान्ति द्वारा व्यवस्था परिवर्तन के नारे ,लाल सलाम ,अलगाव वाद, यही नहीं सुराज का स्थान स्वराज ने ले लिया है |देश के एक सत्तासीन नेता ने अपने आप को अराजकता वादी कहा सब कुछ अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के नाम पर |यह भारत की अखंडता और सम्प्रभुता को चुनौती है अनेक जाने पहचाने नाम हैं खुले आम नक्सलवाद का समर्थन कर रहे हैं कई संसद और सत्ता में बैठे हैं कईयों ने राजनीतिक पार्टियाँ बना ली हैं लेकिन चंदा विदेशों से भी आता है क्यों ? क्या चंदा देने वाले देश , भारत को तोड़ने का षड्यंत्र रच रहें है ?बंदूक उनकी है कंधे सफेद पाशों के|
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के विकास में तेजी लाने के लिए ग्रहमंत्री राज नाथ जी ने दस नक्सल प्रभाव वाले क्षेत्रों के मुख्य मंत्रियों से मीटिंग कर एजेंडा बनाया सभी राज्य एक साथ नक्सलवाद को खत्म करने के लिए सहयोग करें | अक्सर जब कार्यवाही एक क्षेत्र में होती हैं विद्रोही दूसरे राज्य में पलायन कर जाते हैं | सबसे पहले नक्सलवादियों तक हथियारों और गोला बारूद पहुंचने का रास्ता रोका जाये उसके बाद आधुनिक तकनीक द्वारा नक्सलवादियों के अड्डों का निरीक्षण कर उनकी गतिविधियों को जाना जाये विशेष कोबरा बटालियन भेजी जाये जो इन क्षेत्रों की अभ्यस्त है भोजन न मिलने पर यहीं से खाने पीने का जुगाड़ कर लेती है | अब जरूरत सरकार की इच्छा शक्ति की है कागज पर योजना तैयार है |