स्टेटस 1 : तमाम चैनलों में जो नरेन्द्र मोदी रिचार्ज कूपन भरवाया गया था, कल उसकी वैलिडिटी खत्म हो गयी. लिहाजा कल से ही चैनलों के मिजाज बदल गए. जी न्यूज जैसे एकाध चैनल को छोड़कर बाकी खुलकर नरेन्द्र मोदी की निगेटिव स्टोरी दिखा रहे हैं. आज के केजरीवाल के रोड शो का असर चैनलों पर साफ दिख रहा है. इसका मतलब है कि विज्ञापनबाजी छोड़कर जमीनी स्तर पर काम करते रहने से जो मीडिया का कूपन रिचार्ज नहीं करते, उनके भी दिन आते हैं. आज केजरीवाल का दिन है. एकाध दिन में फिर से नरेन्द्र मोदी मीडिया कूपन रिचार्ज हो जाए तो अलग बात है.
स्टेटस 2 : मीडिया पर मोदी हों चाहे कोई और करोड़ों रुपये बहा दे लेकिन वो चाहकर भी हिन्दी सिनेमा की फॉर्मेट से अलग ले जाकर नहीं चला सकता. इन्टरवल के बाद उसे एक विलेन चाहिए ही चाहिए और अगर इन्टरवल के पहले विलेन है तो एक हीरो जरूरी है. मीडिया की जीन में है कि वो बिना खलनायक के शो नहीं चला सकता. अब केजरीवाल और मोदी के अलावा तो कोई है नहीं तो बारी-बारी से इन्हें ही बनाता है. ऐसे में मोदी का पैसा गया पानी में और उन्हीं के पैसे से केजरीवाल कभी नायक तो कभी खलनायक बनाए जाते रहे हैं.. रही बात कांग्रेस के पैसे की तो उनके विज्ञापनों का खर्चा समझिए बरातियों पर लुटाने में चले गए.
स्टेटस 3 :न्यूयार्क टाइम्स से लेकर बीबीसी वर्ल्ड तक सब बिके हुए हैं. बहुत जल्द ही आपको ये बयान मोदी कैंप से सुनने को मिलेंगे. चुनाव आयोग पर तो निशाना साध ही दिया. दूरदर्शन तक तो पहुंच ही गए..कौन कह रहा है कि न्यूयार्क टाइम्स, रायटर, बीबीसी दूध के धुले हैं लेकिन भायजी ये तो आप ही हैं जो जी न्यूज जैसे दागदार चैनल और सुधीर चौधरी जैसे दलाली मामले में फंसे संपादक को पत्रकारिता के अग्रदूत मानकर बैठे हैं. आप इन सब पर सवाल उठाकर हमारी ही बात दोहरा रहे हैं, हमें अच्छा लग रहा है.
स्टेटस 4 : फिलहाल भारतीय( तकनीकी रूप से ट्रांसनेशनल कहना ज्यादा सही होगा) मीडिया पर अंबानी के पैसे से कहीं ज्यादा उन विदेशी एजेंसियों और मीडिया हाउस का असर ज्यादा काम कर रहा है जो मोदी को स्टॉक एक्सचेंज की तरह आश्वस्त नहीं बता रहे हैं. ये जरूरी है कि नरेन्द्र मोदी और बीजेपी को लेकर निगेटिव रिपोर्ट आने से उनकी आक्रमकता पहले के मुकाबले और अधिक बढ़ी है जिसकी डिकोडिंग की जाए तो लाचारी ज्यादा झलकती है.
स्टेटस 5 : कॉर्पोरेट मीडिया पर कार्पोरेट रेशे और विज्ञापन से बनी जो चादर पिछले तीन-चार महीने से चढ़ी थी, अब वो जगह-जगह से मसकनी शुरू हो गई है और भीतर से नरेन्द्र मोदी की अश्लील और घोर अलोकतांत्रिक हरकतें झांकने लग गयी हैं. लिहाजा, मेनस्ट्रीम कॉर्पोरेट मीडिया जो कि खुद को मजार तक बनाकर इस चादर को अपने उपर लपेटे रखा, इसे उघाड़कर दिखाना-बताना शुरू कर दिया और आपको फिर वहीं पर लाकर खड़ा कर दिया है कि देखिए, आप कहते हैं हम मोदी वाया अंबानी के हाथों की कठपुतली हैं, हम दिखा रहे हैं कि नहीं नरेन्द्र मोदी की हरकतों को.
लेकिन आप गौर करेंगे तो यहां के मीडिया ने नरेन्द्र मोदी के खिलाफ जो-थोड़ा बहुत दिखाना शुरू किया है, वह खुद की प्रेरणा से नहीं बल्कि न्यूयार्क टाइम्स से लेकर बीबीसी जैसे मीडिया हाउस के ये बताने के बाद कि बनारस में मोदी से कहीं ज्यादा केजरीवाल की लहर है के बताए जाने के बाद. ऐसे में एक स्थिति साफ है कि भारी पूंजी के बहाए जाने के बावजूद विदेशी मीडिया संस्थानों की खबर को भारतीय मीडिया इग्नोर नहीं कर पाता और अपनी साख उन्हीं के बूते बचाने की कोशिश करता है.