प्रियभांशू रंजन
माननीय Narendra Modi जी,
हमेशा की तरह एक बार फिर आज पूरा मीडिया आपके गुणगान में तल्लीन है ।
लोगों को बताया जा रहा है कि आपने ‘श्रम सुधार’ की दिशा में बडा कदम उठाया है । (01) अब उद्योग-धंधे शुरू करने के लिए 16 अर्जियां नहीं लगानी होंगी । एक से ही काम बन जाएगा । (02) प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले लोगों को एक कंपनी से दूसरी कंपनी में जाने पर पीएफ अकाउंट नंबर नहीं बदलना होगा । अब हर किसी को एक यूनिवर्सल पीएफ अकाउंट नंबर मिलेगा । (03) ड्रॉ के जरिए फैसला होगा कि लेबर इंस्पेक्टर किस कारोबारी इकाई का निरीक्षण करेंगे । वगैरह, वगैरह !
लेकिन मेरी राय में ये श्रम सुधार नहीं है । दूसरे प्वाइंट को छोड दें तो इसे ‘कंपनियों की सुविधाओं में सुधार’ कहना ज्यादा सही होगा ।
सही मायने में श्रम सुधार तब होगा जब कंपनियों की सुविधाओं के साथ-साथ वहां काम करने वालों के हित में भी नीतिगत फैसले होंगे । मसलन:—
कंपनियों में काम करने वालों की बेसिक सैलरी की 12 फीसदी रकम पीएफ के तहत काटी जाती है । नियम है कि जितनी रकम कर्मचारी की सैलरी से काटी गई, उतनी ही रकम कंपनी भी उसके पीएफ अकाउंट में जमा करेगी । पर हकीकत में ऐसा होता है क्या ? यदि किसी की सैलरी से पीएफ के तौर पर 1000 रूपए काटे गए तो ज्यादातर कंपनियां महज 500-600 रूपए जमा करती हैं, जो गैर-कानूनी है । पर ऐसी कंपनियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती ।
ज्यादातर प्राइवेट कंपनियां अपने ज्यादातर कर्मचारियों का न तो लाइफ इंश्योरेंस कराती हैं और न ही हेल्थ इंश्योरेंस कराती हैं ।
ज्यादातर कंपनियों में जुगाड और सिफारिशों से नौकरियां दी जाती हैं और मालिक या बॉस की मर्जी से नौकरी से निकाल बाहर कर दिया जाता है । ऐसे हालात में सारे के सारे श्रम कानून धरे के धरे रह जाते हैं ।
एक ही संस्थान में काम करने वाले ‘परमानेंट’ और ‘ठेके’ के लोगों की सैलरी और सर्विस कंडीशंस में जमीन-आसमान का फर्क होता है । इस भेदभाव को कौन दूर करेगा ?
कितने श्रमायुक्तों में हिम्मत है कि वे अपने अधिकार-क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों में इस बात की जांच करें कि वहां श्रम कानूनों का पालन हो रहा है या नहीं ?
मोदी जी, यदि वाकई बदलना है तो इस हालात को बदलिए । तभी सही मायने में समझा जाएगा कि आपने श्रम सुधार किया । पर मुझे पूरा यकीन है कि आप क्या, आज कोई भी नेता इस दिशा में कदम नहीं उठा सकता….क्योंकि ऐसा करने से प्राइवेट कंपनियां नाराज हो जाएंगी । और कारपोरेट मीडिया में आपकी छवि दो दिन में ‘हीरो’ से ‘जीरो’ की बनाकर रख दी जाएगी ।
बहरहाल, लोगों को आपसे काफी उम्मीदें हैं । यदि आपमें वाकई बदलाव लाने का जज्बा है तो इस दिशा में काफी कुछ कर सकते हैं । और नहीं कर पाए तो यही समझा जाएगा कि आप भी औरों की तरह हवा-हवाई ही हैं !!!
(स्रोत-एफबी)