बी.पी.गौतम,स्वतंत्र पत्रकार
उत्तर प्रदेश की राजनीति के स्तंभ और देश की राजनीति में भी प्रमुख भूमिका निभाते रहने वाले समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव का 75वां जन्मदिन 21 नवंबर को है। उनका जन्मदिन इस बार विशेष चर्चा में इसलिए है कि उनके जन्मदिन का समारोह रामपुर स्थित जौहर यूनिवर्सिटी में आयोजित किया जा रहा है। मुलायम सिंह यादव के बेहद खास कहे जाने वाले और उत्तर प्रदेश सरकार में सर्वाधिक शक्तिशाली मंत्री माने जाने वाले आजम खां समारोह का आयोजन कर रहे हैं। आजम खां के लिए वर्ष 2014 बेहद खास रहा है। इस वर्ष उनकी चर्चित यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक का दर्जा मिला है, साथ ही उनकी पत्नी डॉ. तजीन फात्मा राज्यसभा के लिए चुनी गई हैं, यह दोनों कार्य सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के सहयोग के बिना संभव ही नहीं थे, इसलिए उनके जन्मदिन पर भव्य समारोह का आयोजन आजम खां की ओर से रिटर्न गिफ्ट कहा जा सकता है, वैसे मुलायम सिंह यादव और आजम खां के बीच जैसे आत्मीय संबंध हैं, उन संबंधों के बीच रिटर्न गिफ्ट जैसे शब्द के लिए कोई जगह नहीं है। मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन के अवसर पर रामपुर में समारोह आयोजित होने के जो भी कारण हों। फिलहाल बात मुलायम सिंह यादव की ही करते हैं।
समाजवादी विचारधारा की बात करते ही वर्तमान राजनैतिक परिवेश में पहला नाम सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव का ही उभर कर सामने आता है। उनके समर्थक उन्हें समाजवादी विचारधारा का एक मात्र नेता मानते रहे हैं, साथ ही मुलायम सिंह यादव भी स्वयं को कट्टर समाजवादी ही कहते रहे हैं, पर मुलायम सिंह यादव के राजनैतिक जीवन पर नजर डालें, तो उनके समाजवादी होने पर भी कई प्रश्न चिन्ह लगे नजर आते हैं, इसीलिए वर्तमान दौर के सर्वश्रेष्ठ समाजवादी नेता होने के बावजूद उनके समर्थकों के अलावा कोई और उन्हें समाजवादी विचारधारा का नेता मानने को तैयार नहीं दिख रहा है। राजनैतिक जीवन में मुलायम सिंह यादव के नाम कई ऐसी उपलब्धियां दर्ज हैं,जिन्हें राजनीति के इतिहास में न चाहते हुए भी सुनहरे अक्षरों से दर्ज करना ही पड़ेगा, पर कई ऐसे दाग भी हैं, जो उनके समाजवादी होने पर हमेशा सवाल उठाते रहेंगे। मुलायम सिंह यादव को उनके चाहने वाले ‘नेताजी’ नाम से संबोधित करते हैं एवं जमीनी नेता होने के कारण उन्हें ‘धरतीपुत्र’ भी कहा जाता है। वास्तव में वह स्वयं में बेहद अच्छे इंसान भी हैं। पत्रकारों से तो वह और भी अच्छी तरह से पेश आते हैं। किसी भी सवाल पर वह निरुत्तर नहीं होते। जवाब न भी दें, तो भी वह पत्रकार को अपनी बातों से संतुष्ट कर ही देते हैं। उनकी कोई पत्रकार वार्ता ऐसी नहीं होती, जिसमें वह एक-दो पत्रकार को सवाल करने पर झिडक़ते न हों, पर उनके झिडक़ने का भी अंदाज इतना सरल व मजाकिया रहता है कि वह पत्रकार उनका प्रशंसक हो जाता है। सत्ता में होने पर वह समाज के हर वर्ग के लिए सराहनीय कार्य करते रहे हैं, फिर भी वह समाज के सभी वर्गों के चहेते नहीं बन पा रहे हैं। मतलब,व्यक्तिगत तौर पर वह सभी के चहेते हो सकते हैं, लेकिन समाजवादी नेता के रूप में उनकी व्यापक तौर पर आलोचना की जाती रही है। वह समाजवादी विचारधारा को समाजवादी पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं की सोच में पूरी तरह नहीं ढाल पा रहे हैं, क्योंकि वह स्वयं भी समाजवादी विचारधारा से भटकते रहे हैं, इसीलिए उनसे जुड़ी पुरानी घटनायें हमेशा ताजा बनी रहती हैं।
अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद उन्होंने कहा कि घटना भाजपा की सोची-समझी साजिश का नतीजा है और कांग्रेस ने इस साजिश में भाजपा का पूरा साथ दिया है। भाजपा और कांग्रेस के विरुद्ध आवाज बुलंद करने के कारण ही वह बड़ी राजनैतिक हस्ती बन पाये। बाबरी विध्वंस के समय मुलायम सिंह यादव की भूमिका से मुसलमान उनके मुरीद हो गये, लेकिन भाजपा को सांप्रदायिक पार्टी बताने वाले मुलायम सिंह यादव भाजपा का भी सहारा ले चुके हैं, इसी तरह कांग्रेस को कोसने वाले मुलायम सिंह यादव कांग्रेस की गोद में भी बैठ चुके हैं। हालांकि वे कांग्रेस व भाजपा के विरुद्ध मोर्चा बनाने के पक्ष में हमेशा रहे हैं।
कारण वह चाहे जो बतायें, पर इन प्रश्नों का सटीक उत्तर वह कभी नहीं दे पायेंगे। सीधी सी बात है कि उन्होंने सत्ता सुख को ऊपर रखते हुए भाजपा और कांग्रेस से भी दोस्ती करने में कोई गुरेज नहीं किया, इससे भी बड़ी आश्चर्य की बात यह है कि सत्ता के लिए उन्होंने एक समय बाबरी विध्वंस के सबसे प्रमुख व्यक्ति कल्याण सिंह से भी दोस्ती कर ली। यह बात अलग है कि राजनैतिक लाभ की जगह हानि होने पर उन्होंने कल्याण सिंह से शीघ्र ही किनारा भी कर लिया। उनकी दलील थी कि भाजपा को मिटाने के लिए उन्होंने कल्याण सिंह का साथ लिया, जबकि बाबरी विध्वंस के सेनापति कल्याण सिंह ही थे। इतना ही नहीं उनके शासन काल में उत्तराखंड के आंदोलनकारियों पर भी कहर बरपाया गया। पुलिस के तांडव के शिकार हुए परिवार उम्र भर वह दिन नहीं भूल सकते, जबकि वह जिन डॉ. राममनोहर लोहिया और चौधरी चरण सिंह की विचारधारा पर चलने का दावा करते हैं, वह दोनों नेता छोटे राज्यों के पक्षधर थे, वह विकास के लिए छोटे राज्यों को जरुरी मानते थे, पर मुलायम सिंह यादव छोटे राज्यों के धुर-विरोधी रहे हैं।
इसके अलावा मायावती भले ही उनकी राजनैतिक प्रतिद्वंदी हैं, पर वह एक महिला भी हैं। मायावती के साथ लखनऊ के गेस्ट हाउस में जो घटना घटित हुई,वह सिर्फ राजनैतिक प्रतिद्वंदी पर हमला नहीं, बल्कि एक महिला की लाज पर भी हमला था। मायावती की राजनीति, विचारधारा या कार्य करने का अंदाज़ सही है या गलत, यह प्रश्न अलग है, यहां सवाल एक महिला की अस्मिता का है,लेकिन इस घटना पर मुलायम सिंह यादव ने आज तक अफसोस भी नहीं जताया है। उन्होंने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया पर भी हल्ला बोला था, जिसको लेकर उन्होंने आज तक दु:ख नहीं जताया है। उनके दामन पर और भी कई गंभीर दाग लगे हुए नजर आते हैं। जातिवाद और परिवारवाद के आरोप उन पर लगते ही रहे हैं। महिलाओं के विषय में ही उनके विचार बहुत अच्छे नहीं कहे जा सकते। महिला आरक्षण का पुरजोर विरोध करने के साथ उन्होंने यह तक कह दिया कि आरक्षण के चलते उद्योगपतियों और पूंजीपतियों की ऐसी लड़कियां सदन में आयेंगी, जिन्हें देख कर युवा सीटी बजायेंगे, लेकिन मुलायम सिंह यादव शायद, अनभिज्ञ ही हैं कि उद्योगपति या पूंजीपति सिर्फ सवर्ण ही नहीं हैं। धनपति पिछड़े और अनुसूचित तबके के लोग भी हैं। उनके परिवार की लड़कियां भी राजनीति में हैं एवं आरक्षण के बाद और भी आयेंगी। इसके अलावा अगर, उन्हें धनपतियों और पूंजीपतियों से नफरत है, तो सभी पिछड़ों, सभी अनुसूचितों और सभी अल्पसंख्यकों की जगह गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले पिछड़ों, अनुसूचितों और अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाओं के लिए ही आरक्षण मांगते, पर वह ऐसा नहीं कर सकते और न ही उन्होंने ऐसा किया, क्योंकि ऐसा करने से अपनी पार्टी के विधायकों, अपनी पार्टी के सांसदों की पत्नियों, उनके परिवार की अन्य महिलाओं को भी टिकट नहीं दे पायेंगे। अपने परिवार की महिलाओं को भी आरक्षित क्षेत्र से सदन नहीं पहुंचा पायेंगे, क्योंकि यह सब बीपीएल श्रेणी में नहीं आते, उनके इस नजरिये से साफ जाहिर हुआ कि जातियों के नाम पर भी वह सिर्फ राजनीति ही कर रहे हैं। उन्हें पिछड़ी या गरीब तबके की आम महिलाओं की कोई चिंता नहीं है।
मुलायम सिंह यादव निजी जीवन में जितने सहज व सरल हैं, उतने ही सहज व सरल राजनैतिक जीवन में भी होते, तो आलोचकों के निशाने पर न होते, उनके समाजवादी होने पर भी सवाल न उठते। कई बार उनकी कथनी व करनी में बड़ा अंतर हो जाता है और इसीलिए उनके समर्थक भी समाज सुधार की जगह सत्ता के लिए राजनीति करने लगते हैं, जबकि समाजवादियों का उद्देश्य सिर्फ सत्ता पाना नहीं होना चाहिए। शायद, उनकी कथनी-करनी के भेद को आम जनता भी अब समझती जा रही है, तभी उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार रहते हुए पिछले लोकसभा चुनाव में उनके सिर्फ परिजन ही चुनाव जीत सके। डॉ. राममनोहर लोहिया और चौधरी चरण सिंह का सानिध्य पा चुके और उनकी विचारधारा को आगे बढ़ाने का दंभ भरने वाले मुलायम सिंह यादव को अपनी नीतियों और क्रिया-कलापों को लेकर एक बार मंथन करना चाहिए। स्वस्थ मन से विचार करने पर उन्हें स्वत: ही अहसास हो जायेगा कि वह समाजवादी विचारधारा से कहीं न कहीं वह भटक जरूर गये हैं, तभी उनकी स्थिति कभी-कभी हास्यास्पद हो जाती है। गत लोकसभा चुनाव के दौरान भी उनकी स्थिति तब ऐसी ही हो गई थी, जब उन्होंने बलात्कार के प्रकरणों पर बलात्कारियों की हिमायत की थी। अगर, वह ऐसा ही करते रहे, तो उनकी छवि को बड़ा नुकसान हो सकता है, वह अपने प्रशंसकों में भी अलोकप्रिय हो सकते हैं। डॉ. राममनोहर लोहिया और चौधरी चरण सिंह के विचारों को उन्होंने अपने जीवन में अक्षरशः उतारा होता, तो उनकी स्थिति हास्यास्पद कभी नहीं होती, क्योंकि वह जिन-जिन बिंदुओं पर विरोध जताते रहे हैं, उस सबके डॉ. राममनोहर लोहिया और चौधरी चरण सिंह पक्षधर थे, इसलिए मुलायम सिंह यादव को इस जन्मदिन पर यही निर्णय लेना चाहिए कि अपना व्यक्तित्व व समाजवादी विचारधारा स्वयं के कर्म में उतारने के साथ समाजवादी पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं के जीवन में भी उतारेंगे। ऐसा हो गया, तो समाजवादी पार्टी सत्ता में रहे अथवा न रहे, पर वह समाजवादी नेता के तौर पर और अधिक मजबूत होंगे एवं इस देश के राजनैतिक इतिहास में हमेशा याद किये जाते रहेंगे।
खैर, तमाम विरोधाभासों के बीच समाजवादी विचारधारा की चर्चा होते ही ध्यान में पहला नाम समाजवादी नेता के रूप में आज भी मुलायम सिंह यादव का ही आता है। व्यक्तिगत तौर पर उनकी विचारधारा में कई कमियां हो सकती हैं, लेकिन वर्तमान युग के अन्य तमाम समाजवादी विचारधारा के नेताओं के मुकाबले उनकी तुलना की जाये, तो एक भी नेता उनके पीछे भी दूर तक नजर नहीं आता। निःसंदेह वे वर्तमान युग के एकमात्र समाजवादी नेता हैं, इसलिए कामना है कि वे शतायु हों, दीर्घजीवी हों और आगे का जीवन ऐसे जीयें कि आने वाली पीढ़ी के लिए वे आदर्श साबित हों।