टेलीविज़न की दुनिया में आज मेरे बीस वर्ष पूरे हो गए। बीस बरस पहले आज के ही दिन (15 अगस्त, 1993) गुलमोहर पार्क स्थित परख के दफ़्तर में श्री विनोद दुआ से बात हुई और बतौर संवाददाता काम शुरू कर दिया। हालाँकि पिछले एक-डेढ़ महीने से आना-जाना हो रहा था और मैंने इस नए माध्यम को देखने-समझने का काम शुरू कर दिया था, लेकिन नियमित रूप से काम करने का सिलसिला आज के दिन ही शुरू हो सका। इस बीच बहुत से लोगों ने डराया और समझाया भी कि प्रिंट में ही लगे रहो, मगर मन कह रहा था कि भविष्य के इस माध्यम को जानना चाहिए और मैंने मन की ही सुनी। इस नौकरी से छह महीने की बेरोज़गारी भी दूर हुई थी। कुछ ही महीनों बाद दुआ साहब ने मुझे कार्यक्रम का संपादकीय प्रमुख बना दिया। करीब सौ कड़ियाँ मेरी देखरेख में ही तैयार हुईं। दो साल बाद जब परख बंद हुआ तो अलग होना पड़ा, लेकिन इस दौरान दुआ साहब से बहुत कुछ सीखने को मिला। उनका आभार।
इन बीस सालों में मैंने बहुत कुछ सीखा-जाना। बहुत कुछ हासिल भी किया। सफलता-असफलता के बहुत से मुकाम आए। कई उपलब्धियाँ भी दर्ज़ हुईं। इस बात की खुशी है और गर्व भी कि कोई समझौता नहीं किया, भले ही इस वजह से कितनी ही नौकरियाँ क्यों न छोड़नी पड़ीं हों। अपनी तईं कोई ग़लत काम नहीं किया और न ही किसी को करने दिया। आज़ादी मिली तो बहुत सारे प्रयोग किए। कामयाबी भी ठीक-ठाक ही मिली। ख़ैर अभी हिसाब करने का वक़्त नहीं आया है, क्योंकि अभी तो बहुत सा सफ़र बाक़ी है। बहरहाल, आगे बढ़ने से पहले इतना ज़रूर कहना चाहूँगा कि अभी तक की यात्रा में जिन लोगों का साथ मिला और जिन्होंने साथ दिया (फेहरिस्त बहुत लंबी है), उन सबका बहुत-बहुत आभार।
(Mukesh Kumar के फेसबुक वॉल से साभार)