दीपक शर्मा,पत्रकार,आजतक
राजनीति में नरेन्द्र मोदी से अधिक चमत्कारी उछाल का उदाहरण आज कहीं नही है. नदी तैर कर स्कूल जाने वाले शास्त्री को मोदी ने भुला दिया है. चाय बेचकर पढ़ाई का खर्च निकालने वाले मोदी के आगे लालू, मुलायम और मायावती के प्रेरणादायक संघर्ष फेल हैं.
मोदी ने अपनी गरीबी को ढका नही बल्कि उसे यूएसपी की तरह सत्ता में मार्केट किया है. जितनी चाय उन्होंने ट्रेन में नही बेचीं होगी उससे ज्यादा मंच से बेच दी. यही मोदी की संवाद शैली है जिसका मुकाबला आज कोई नेता नही कर सकता है.
मुझे याद है जब राम प्रकाश गुप्ता यूपी के मुख्यमंत्री बने तो अगले दिन मैंने स्टोरी में लिखा कि एक आम आदमी कि तरह गुप्ताजी रोज़ सुबह झोला लेकर सब्जी मंडी जाते थे. इस पर मिसेज गुप्ता इतना नाराज़ हुई की उन्होंने मेरे संपादक से शिकायत कर दी. लेकिन वो आम आदमी की राजनीति का समय नही था इसलिए खुद सब्जी खरीदने की सहजता और सादगी को मिसेज गुप्ता ने अपमान मान लिया.
दो दशकों में देश में राजनीति बदली है. सबसे सुखद सन्देश इस बदली हुई राजनीति में गरीब और आम आदमी की बढ़ती भागेदारी है. शायद इसीलिए चाय वाला मोदी टी बैग वाले राहुल पर भारी पड़ा. चाय के आलावा मोदी के एक्शन मैन की छवि ने भी कांग्रेस की शिथिलता को एक्सपोज़ किया.
मोदी की ये छवि दिल्ली के चुनाव में केजरीवाल को धाराशायी करने में बड़ा काम आती. लेकिन रायसीना के पहाड़ पर चढ़कर मोदी ने ऊपर ही ऊपर ज्यादा देखा. अपने नीचे कम.
पिछले 5-6 महीनो में अगर मोदी यमुना के गंदे घाटों से लेकर दिल्ली के बजबजाते कठपुतली नगर पहुंचे होते तो केजरीवाल को आज पसीना आ रहा होता. मोदी ने संसद से कुछ मील दूर लोनी में सर पर मैला ढो रहे सैकड़ों निरीह नागरिकों को इस पाप से मुक्त करने कि कोशिश की होती तो स्वच्छ भारत अभियान आज पोस्टर से आगे बढ़ जाता.
मित्रों, मुद्दा हारने-जीतने का नही है. दिल्ली में बीजेपी जीते या आम आदमी …दिल्ली शंघाई या शिकागो बनने नही जा रही है. 5 साल बाद भी यहाँ कठपुतली नगर स्लम ही रहेगा. 5 साल बाद भी एम्स के फुटपाथ पर देश के बीमार लेटे मिलेंगे.
सवाल बस इतना है कि आखिर 9 महीनो में ऐसा क्या हो गया की बीजेपी सारा देश जीतने के बाद एक नगर निगम छाप चुनाव में सारा दम खम झोंकने को मजबूर है ?
क्या केतली से चाय उबलकर छलक गयी है ? या सारी चाय ओबामा पी गये ? क्या हो गया कुछ ही महीनो में ?
मोदीजी मंच से नही …जनता के बीच चाय परोसिये . अगर एक बार भी आप रायसीना के पहाड़ से उतरकर अपनी केतली लेकर कठपुतली नगर गये होते तो आज आपको इस नगर निगम छाप चुनाव में चार चार रैली न करनी पड़ती.
जनतंत्र में जनता बड़ी है , अमरीका नही .
‘परिधान’मंत्री जी कुछ गलत लिखा हो तो माफ़ी.
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