रमेश यादव
3 अगस्त,2014. नई दिल्ली ।
प्रधानमंत्री की नेपाल यात्रा पर खबरिया चैनलों की एक पड़ताल
नेपाल में ‘नमो-नमो’: इंडिया टीवी / मोदीमय हुआ नेपाल : फ़ोकस न्यूज़ / ‘धर्म पुत्र’ के साथ नेपाल का दिल जीतेंगे मोदी : इंडिया न्यूज़ / नेपाल में ‘नमो मंत्र’ : आजतक / नेपाल में ‘नमो-नमो’ : एबीपी न्यूज़ / नमो नेपाल / मोदी की महा पूजा / नेपाल से चीन पर निशाना ! / मोदी का बम-बम भोले प्लान : जी न्यूज़ / पहले सोमनाथ फिर विश्वनाथ अब पशुपतिनाथ / मोदी की शिव साधना -टीवी चैनल्स
दूसरी तस्वीर :
भारत की विदेश मंत्री ने नेपाल के पशुपति मंदिर को 25 करोड़ का अनुदान दिया : स्रोत टीवी चैनल्स
प्रधानमंत्री पशुपति मंदिर में मोदी चढ़ायेंगे 3 करोड़ रूपये का चंदन : न्यूज़ एक्सप्रेस
भारत से ब्राह्मणों का विशेष दल नेपाल जायेगा पूजा कराने ( इस ख़बर के साथ मोदी द्वारा विभिन्न मंदिरों में दूध / जल / फूल चढ़ाने अौर आरती करने से संबंधित तस्वीरें/ वीडियो दिखाया जा रहा है ) स्रोत : टीवी चैनल्स
तीसरी तस्वीर :
तेलंगाना में 100 किसानों ने की आत्महत्या : 30 जुलाई ,2014 स्रोत NDTV India
चौथी तस्वीर :
30 जुलाई को महाराष्ट्र के पुणे में भूस्खलन के चपेट में आने से एक गाँव ज़मींदोज़ हो गया। जिसमें सैकड़ों लोग दब गये । आज पाँचवे दिन 87 लाशें निकाली जा चुकी हैं अौर सैकड़ों लोगों के अभी भी दबे / फँसे होने की आशंका बतायी / जतायी जा रही है । बचाव कार्य अब भी जारी है ।
“पुणे के पास मालिण गांव में हुए भूस्खलन आपदा में पांच और शवों की बरामदगी के बाद अब हादसे में मरने वालों की संख्या बढ़कर 87 हो गई है, जबकि अब भी वहां मलबे में 100 से ज्यादा लोगों के फंसे होने की आशंका है। जो इस हादसे में बाल-बाल बचे हैं, उनके मन में ऐसा खौफ है कि वे अब वापस गांव नहीं लौटना चाहते। जानकारों के मुताबिक इनका डर बेवजह नहीं है, क्योंकि पहाड़ों को समतल करने के लिए भारी मशीनों के इस्तेमाल की वजह से आसपास के 15 और गांवों पर इस तरह के हादसे का खतरा मंडरा रहा है। जिला नियंत्रण कक्ष ने रविवार को बताया कि मरने वालों में 33 पुरुष, 42 महिलाएं और 12 बच्चे हैं।” – NDTV India / 3 अगस्त,2014
अब आइए उक्त पहली / दूसरी / तीसरी अौर चौथी तस्वीरों को जोड़कर एक ‘कोलाज’ बनाते हैं अौर पड़ताल करते हैं कि आख़िरकार इनके पीछे का मूल कारण क्या है ?
इस सरकार ने अपने पहले बजट में सरदार बल्लभ भाई पटेल की मूर्ति के लिए 200 करोड़ रूपये दिया । पशुबलि के लिए प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर को 25 करोड़ रूपये दिया । मोदी द्वारा 3 करोड़ रूपये की चंदन की लकड़ी भी भेंट किये जाने की ख़बर चल रही है ।
जिस देश में आपदा प्रबंधन के लिए कोई अचूक प्रबंधन नहीं है । जिस देश में आपदा के शिकार लोगों के पास हफ़्तों तक मलबे में दबे / फँसे रहने के सिवा कोई विकल्प नहीं है । जिस देश में क़र्ज़ में डूबे किसानों के पास आत्महत्या के सिवा कोई अौर चारा नहीं है ।
उसी देश में व्यक्तिगत आस्था को राष्ट्रीय आस्था में तब्दील कर जनता के पैसे की बली चढ़ायी जा रही है । सब उस देश में हो रहा है,जिसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होने का तमग़ा मिला हुआ है ।इसे लोक कल्याणकारी राज्य व्यवस्था के नमूने के तौर पर भी देखिए ।
इस देश में आदमी की ज़िंदगी अौर मौत हमेशा सस्ती रही है । इस पर सरकारों ने कोई प्रतिबद्ध अौर जवाबदेह काम नहीं किया है । जिस देश में व्यक्तिगत लाभ / आस्था के लिए सरकारी धन का किसी भी मंदिर में मनमानी चढ़ाना सर्वोपरि रहा हो अौर आम आदमी का जीवन सेकेंडरी तो यह किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए शर्मनाक परिस्थिति है ।
जिस वक़्त भारतीय मीडिया को भारतीय विदेश नीति को गहराई से समझकर पड़ोसी देशों के साथ आपसी रिश्ते / समझ / मित्रता / कारोबार / संतुलन शांति,सद्भावना अौर सक्रिय सहयोग के लिए माहौल बनाना चाहिए,उस वक़्त यह तमाम चैनल्स पूजापाठ / कर्मकांड / मंदिर-मंदिर अौर आस्था-आस्था का खेल,खेल रहे हैं ।
ख़बरिया चैनल पाखंड का पर्दाफ़ाश करने की जगह विदेश नीति को ही आस्था अौर पाखंड की चासनी में लपेटकर ख़बरों को परोस रहे हैं ।
यह सर्वविदित है कि पशुबलि के लिए पशुपतिनाथ मंदिर प्रसिद्ध है । आरएसएस अौर भाजपा खुद ‘गौ-हत्या’ का मुख़ालफ़त करते रहे हैं । बावजूद इसके प्रधानमंत्री का पशुपतिनाथ मंदिर जाना,एक तरह से पशुबलि को बढ़ावा देना है । ख़बरिया चैनलों,इस पाखंड का ख़ुलासा करने की जगह इसका महिमामंडन कर रहे हैं ।
यह मीडिया की मशीनरी या तकनीकी ख़राबी नहीं है,बल्कि यह मीडिया चैनलों में आस्था अौर पाखंड का आकंठ तक डूबे होने का प्रमाण है । यह उनके असली मानसिकता को दर्शाता है ।
किसी भी देश की विदेश नीति सिर्फ़ ‘शिव लिंग’ पर दूध / जल / फूल चढ़ाने आैर आरती करने भर से मज़बूत नहीं होती ।
मीडिया को अपने पड़ताल का फ़ोकस दोनों देशों के बीच बेहतर संबंधों मसलन; व्यापारिक / आवागमन / रोज़गार / आम जन को होने वाली सहुलियतों / मदक द्रव्य / मानव तस्करी / अवैध कारोबार रोकने आदि को रोकने के लिए उठाये जाने वाले क़दम अौर सम्भावनाअों पर होना चाहिए ।
गत 17 सालों तक किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने नेपाल की यात्रा नही की । जबकि भारत के जितने पड़ोसी मुल्क हैं,उन सबसे अलग अौर अहम रिश्ता नेपाल के साथ रहा है । बिना किसी ‘बिजा’ अौर बाधा के हमेशा दोनों मुल्कों ने एक दूसरे के लिए रास्ता खोल रखा है ।
एक बेहद बेहतर पड़ोसी देश,जिसके नागरिकों का भारत के साथ चोली-दामन का संबंध रहा है । बड़ी संख्या में नेपाली लोग भारत में रोज़गार पाते रहे हैं । भारत के लोग भी बड़ी संख्या में नेपाल में बिज़नेस करते रहे हैं ।
बावजूद इसके भारत की सरकार, नेपाल से जीवंत संबंध बनाने की जगह दूरी बनाये रखी । अंतरराष्ट्रीय राजनीति को बारीकी से देखें तो चीन इसका फ़ायदा उठाया अौर नेपाल के साथ बेहतर रिश्ता बनाने में कामयाब हुआ ।
नेपाल में राजतंत्र के खिलाफ,लोकतांत्रिक चेतना / परिवर्तन अौर बदलाव के साथ भारत सामंजस्य बनाने की जगह अलग-थलग पड़ा रहा है ।
ज़ाहिर है, नेपाल एक बेहतर मित्र देश रहा है,लेकिन भारत की तरफ़ से मित्रता की गरमाहट उस तरह से नहीं देखने को मिली,जैसे एक बड़ा भाई छोटे भाई के साथ रखता है ।
इस ठंडेपन के लिए भारतीय विदेश नीति / कुटनीतिक अौर राजनैतिक कमज़ोरी उभरकर सामने आयी है ।
हालाँकि इन्हीं वर्षों में भारतीय विदेश नीति का झुकाव अमेरिका अौर उस जैसे ताक़तवर देशों की तरफ़ अधिक रहा है अपने पड़ोसी देशों के प्रति कम । ख़ासतौर पर नेपाल के साथ ।
सबकुछ के बावजूद भारतीय प्रधानमंत्री की नेपाल यात्रा को सराहनीय माना जाना चाहिए अौर पशुपतिनाथ मंदिर जाने के निर्णय की आलोचना होनी चाहिए ।