हाल ही जबसे नरेन्द्र मोदी ने गुजरात विधानसभा चुनाव को फ़तेह किया है तब से भाजपा में नेताओ से लेकर कार्यकर्ताओ को मोदी चालीसा का पाठ पढ़ते हुए देखा जा सकता है। भाजपा में एक गुट द्वारा ये मांग लगातार उठायी जा रही है कि पार्टी मोदी के नेत्र्तव में लोकसभा चुनाव 2014 लड़ने की घोषणा करे। ये मांग तब से और तेज़ हो गयी है जब से हाल ही में एक न्यूज चैनल द्वारा किये गए सर्वे में मोदी को देश के 57 फीसदी युवाओं की पसंद बताया गया है। इस संदर्भ में कल नरेन्द्र मोदी और भाजपा के नव निर्वाचित अध्यक्ष राजनाथ सिंह की दिल्ली में मुलाक़ात भी हुई। उम्मीद की जा रही थी कि पार्टी इस मुलाकात के बाद कोई बड़ी घोषणा करेगी, पर ऐसा हुआ नहीं। इस पूरे राजनैतिक घटनाक्रम के बाद जो बात महतवपूर्ण रूप से निकल क्र सामने आयी वो ये कि क्या वास्तव में मोदी 57 फीसदी युवाओं की पसंद है ? और क्या वास्तव में मोदी चालीसा के सहारे भाजपा 2014 लोकसभा चुनाव की नैय्या पार लगा लेगी? अगर सर्वे रिपोर्ट पर भरोसा करे तो हम कह सकते हैं कि हाँ मोदी इस देश के 57 फीसदी युवाओं की पसंद है लेकिन जैसा की किसी भी चुनाव के पूर्व विभिन्न न्यूज चैनलो और अखबारों द्वारा कराये जाने वाले एग्जिट पोल की हर रिपोर्ट सत्य से काफी दूर होती है वैसे ही संभव है कि इस सर्वे की रिपोर्ट भी वास्तविकता से परये हो क्योकि ये जग जाहिर है कि राजनैतिक दलों के पक्ष में राजनैतिक हवा बनाने के लिए जितना मुफीद माध्यम आज के दौर में मीडिया है उतना कोई और नहीं। ऐसी स्थिति में यह संभव है कि इस सर्वे की परिणाम पहले से ही पूर्व निर्धारित रहे हो। ये तो बात हुई उस सर्वे रिपोर्ट की जिसमे मोदी को युवाओ की पहली पसंद बताया गया है। अब बात करते है भाजपा के उस उम्मीद की जिसमे वो मोदी के सहारे 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद सत्ता मे काबिज होने का सपना देख रही है।
वास्तव में देखा जाये तो ये राह इतनी आसान नहीं होगी। ये सही है कि मोदी गुजरात के जनप्रिये नेता है और उनमे देश के कुशल संचालन की योग्यता है परन्तु इसके बाद भी उनकी राह आसान नहीं है। इसके दो कारण है पहला ये कि भाजपा और उसके सहयोगी दल खुद आन्तरिक गुटबाजी में इतना उलझ चुके है कि यदि मोदी को भाजपा के तरफ से प्रधानमंत्री पद का अधिकृत उम्मीदवार घोषित कर भी दिया जाये तब भी आन्तरिक तौर पर पार्टी के कुछ नेताओ और सहयोगियों में विरोध के स्वर रहेंगे जिनमे प्रमुख नाम बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार का है जिनके बारे में ये कहा जाता है कि उन्हें किसी भी कीमत पर नरेद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के लिए स्वीकार्य नहीं है। दूसरा कारण ये है कि मोदी को अभी भी देश के आम मुस्लिमो ने स्वीकार नहीं किया है, ऐसी स्थिति में यदि अखंड हिन्दुवाद के बैनर तले भाजपा मोदी को प्रधामंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करती है तो इसके परिणाम उलटे हो सकते है। यहाँ जो एक बात धयान देने योग्य है वो ये कि भाजपा जितना ज्यादा अखंड हिन्दुवाद का चोला ओढेगी उसका उतना ज्यादा फ़ायदा उत्तर प्रदेश में सत्ताशीन समाजवादी पार्टी को होगा क्योकि ये मानी हुई बात है है कि जब जब देश में साम्प्रदायिकता मजबूत हुई है उसका सबसे ज्यादा फायदा सपा को ही मिला है। इस लिहाज से भाजपा में कल्याण सिंह की वापसी भी काफी मायने रखती है क्योकि मोदी की ही तरह कल्याण की छवि भी आम मुस्लिमो में कट्टर हिन्दुवाद की है। खास करके उत्तर प्रदेश के मुस्लिमो में। ऐसी स्थिति में मोदी के नेत्रत्व में 2014 का लोकसभा चुनाव में भाजपा की स्थिति विगत वर्षो की तुलना में काफी बेहतर होगी ये कह पाना मुश्किल है।
यहाँ एक बात और समझनी आवश्यक है वो ये कि लोकसभा चुनाव के जो समीकरण होंगे वो विधानसभा चुनावो से काफी भिन्न होंगे, राज्यों के विधानसभा चुनाव जहाँ क्षेत्रीय समीकरणों पर लड़े जाते है तो वही लोकसभा चुनाव के मुद्दे राष्ट्रीय स्तर के होते है जिनमे महंगाई, भ्रष्टाचार आदि प्रमुख मुद्दा होता है। इन सभी मुद्दों में अगर सिर्फ महंगाई के मुद्दे को हम छोड़ दे अन्य किसी भी मुद्दे पर भाजपा पाक दामन नहीं है वो चाहे भ्रष्टचार का मुद्दा हो या फिर जनसरोकार से जुड़े महत्वपूर्ण बिलों का संसद की विभिन्न बैठकों मे पास न हो पाने का मामला हो। सबमे भाजपा का दोहरा चरित्र झलकता है। अभी हाल ही में इनके निवर्तमान अध्यक्ष नितिन गडकरी को भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते ही अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। ऐसी स्थिति में भाजपा सिर्फ भ्रष्टाचार और अखंड हिन्दुवाद के नाम पर लोकसभा चुनाव पार लगाने के सपने देख रही तो ये केवल उसका सपना ही रह जायेगा। इसलिए बेहतर होगा कि भाजपा अखंड हिन्दुवाद के चोले को उतार कर जन सरोकार से जुड़े ऐसे मुद्दों के साथ 2014 लोकसभा चुनाव में आये जिनमे कांग्रेस की बड़ी हार छुपी हो।
यह सही है कि आम आदमी कांग्रेस सरकार द्वारा किये गए भ्रष्टाचारो से अजीज है और वो बदलाव की चाहत रखता है पर ये बदलाव उसे अखंड हिन्दुवाद की कीमत पर मंजूर नहीं होगा विशेषकर उत्तर भारत के मुस्लिमो को जिनके बीच मोदी की छवि एक तानाशाह से कम नहीं है। इसलिए देश की मौजूदा राजनैतिक और सामाजिक हालत को समझते हुए भाजपा मोदी की जगह पर किसी ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद पर प्रस्तावित करें जिसकी छवि आम मुस्लिमो में धर्मनिरपेक्ष वाली हो, इससे दो फायदे होंगे पहला ये कि कांग्रेस के कुशासन से ऊबे आम मुस्लिमो का समर्थन भी भाजपा को मिलेगा और दूसरा ये कि भाजपा की अध्यक्षता में बना एनडीए भी टूटने से बच जायेगा। रही बाद भाजपा में आन्तरिक विद्रोह की तो अब राजनाथ सिंह ने राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभाल लिया है इसलिए अंदरूनी उठापठक काफी हद तक नियंत्रित हो जाएगी क्योकि वो अच्छी तरह
से जानते है कि किसको, कब, कहाँ, और किस तरह से फिट करना है।
(अनुराग मिश्र, स्वतंत्र पत्रकार लखनऊ )