दिल्ली . आधुनिक हिंदी टेलीविजन पत्रकारिता के जनक स्वर्गीय सुरेन्द्र प्रताप सिंह यानी एसपी सिंह को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में कल याद किया गया. 27 जून को उनकी 17वीं पुण्यतिथि थी. इस मौके पर मीडिया वेबसाईट मीडिया खबर डॉट कॉम ने उन्हें याद करते हुए मीडिया कॉनक्लेव और एसपी सिंह स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया था. इस व्याख्यान में राहुल देव(वरिष्ठ पत्रकार), एन के सिंह(महासचिव,ब्रॉडकास्टर एडिटर्स एसोसियेशन), सतीश के सिंह(एडिटर-इन-चीफ,लाइव इंडिया), शैलेश(सीईओ,न्यूज़ नेशन), अलका सक्सेना(प्रख्यात एंकर), मुकेश कुमार(एडिटर-इन-चीफ,4रियल न्यूज़) और आशुतोष(नेता,आम आदमी पार्टी) उपस्थित थे.
2014 का लोकसभा चुनाव समाचार चैनलों के माध्यम से भी लड़ा गया. राजनीति की ख़बर और विज्ञापनों का ऐसा कॉकटेल तैयार हुआ कि ये समझना मुश्किल हो गया कि राजनीति की खबर दिखाई जा रही है या ख़बरों की राजनीति हो रही है. बहरहाल इसी विषय पर मीडिया कॉनक्लेव में उपस्थित दिग्गजों ने अपने विचार रखे.
समाचार चैनलों के सम्पादकों की संस्था ब्रॉडकास्टर एडिटर्स एसोसिएशन के महासचिव एन के सिंह ने शुरूआती वक्ता के रूप में अपनी बात रखते हुए कहा कि इस चुनाव में विज्ञापन ने एक बड़ी भूमिका अदा की है.न्यूज चैनल के लोग इलेक्शन का इंतजार करते हैं. पियू रिसर्च सेंटर के रिसर्च का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि चुनाव को लेकर जो भी रिपोर्ट प्रकाशित हुई उसमें खुद से रिपोर्टिंग या कवरेज नहीं हुई. बल्कि विरोधी पार्टी के लोगों के प्रभाव से आयीं. खुद से कंटेंट जेनरेट करने का काम हमने छोड़ दिया है जो कि चिंता का विषय है.
समाचार चैनल 4रियल न्यूज़ के एडिटर-इन-चीफ मुकेश कुमार ने ख़बरों की राजनीति के लिए सीधे-सीधे कॉरपोरेट को बताते हुए कहा कि सरकार ही मीडिया को नाथती है, बांधती है जबकि सरकार भी तो कार्पोरेट की जेब में है और सरकार को भी मीडिया बहुत भाव नहीं देती. इसलिए आप इस मीडिया से बहुत उम्मीद नहीं कर सकते. यहां खड़े-खड़े सौ पास लोगों को निकाल देते हैं कोई कुछ कर नहीं पाता. एक एंकर आत्महत्या करने की कोशिश करती है और उसकी खबर आपको मीडिया में नहीं दिखती है तो हम किस मीडिया की बात कर रहे हैं.
प्रख्यात एंकर अलका सक्सेना ने इस चुनाव को बाकी चुनावों से अलग बताते हुए कहा कि कोई भी मीडिया या चैनल किसी नेता को न तो क्रिएट कर सकता है, न ही नष्ट कर सकता है, थोड़ा मैगनिफाई जरूर कर सकता है, बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर सकता है लेकिन एकदम से पैदा नहीं कर सकता. लेकिन वेब है तो दिखेगी, आंधी है तो आंधी दिखेगी. यही वो पहलू कि जब जो दिखता है, तस्वीरें अपनी कहानी कह देती है.ये लड़ाई एकतरफा थी..ये लड़ाई चिराग और फ्लडलाइट के बीच की थी. नरेन्द्र मोदी का मीडिया में क्रिटिसिज्म बहुत हुआ. आप नरेन्द्र मोदी की पॉलिसी से डिसएग्री कर सकते हैं लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सहयोग के न मिलने के बावजूद फ्लडलाइट क्रिएट किया. हां ये जरूर है कि इससे हमारी आंखे चौंधियानी नहीं चाहिए थी. यहां मुझे कमी लगती है कि यहां मीडिया को बेहतर होना चाहिए था कि जो कि नहीं हुआ..
वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने अलका सक्सेना की बात का समर्थन करते हुए कहा कि अलका ने ठीक कहा कि ये चुनाव अलग से भी अलग था. ये चुनाव मीडिया संचालित चुनाव था. जो पत्रकारों को चलाते हैं उनके द्वारा ये संचालित था. इस मामले में हम एक पक्षिय बात करते हैं.इस बार तकनीकी स्तर पर कुछ नया था. नरेंद्र मोदी जब मुख्य धारा में नहीं थे तब उनकी सबसे ज्यादा आलोचनाएं हुई. मीडिया में ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी को कहा गया होगा साहब मोदी को दिखाइए. मोदी को मर्यादा और संतुलन के परे जाकर दिखाया गया. एक व्यक्ति ने सारी राजनीति को ध्वस्त कर दिया. कई तरह से ये नया चुनाव रहा है.खुली आलोचनाओं की जगह और सिकुड़ेगी. सरकार की ताकत को हमसे ज्यादा मालिक जानते हैं. वो चाहे तो सबकुछ ध्वस्त कर सकते हैं.
समाचार चैनल लाइव इंडिया के एडिटर-इन-चीफ सतीश के सिंह ने कहा कि जो कंट्रोलिंग अथॉरिटी है, जो पत्रकारों का कोड है वो बहुत असरदार नहीं रहा है और ऐसा होता रहा तो हम राजनीतिक पार्टियों के खरीद-फरोख्त के शिकार होंगे. हम विज्ञापन के प्लेटफार्म बनकर रह जाएंगे. हम व्यूज को न्यूज की शक्ल देकर पेश करेंगे तो आप अमरीका की तरह घोषित कर दीजिए कि हम भाजपा, कांग्रेस या आप के लिए कर रहे हैं. लेकिन अघोषित रूप से आप बिकते रहेंगे तो वही सब चलता रहेगा.
पूर्व पत्रकार और आम आदमी पार्टी के नेता आशुतोष ने कहा कि चुनाव में एक हद तक मीडिया मदद करता है लेकिन एक लेबल पर जाकर कुछ खास नहीं कर सकता. उन्होंने भाजपा के शाइनिंग इंडिया का का उदाहरण देते हुए कहा कि कि शाइनिंग इंडिया क्या कोई मामूली कैम्पन था, नहीं चला..लेकिन 2014 में चला. क्या ये मीडिया क्रिएशन था? वैसे 21 वीं शताब्दी का यह पहला अत्यंत आधुनिक चुनाव था जिसका इसके पहले इस्तेमाल नहीं किया. आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल करके ब्रांड पोजिशनिंग की गई, इसमें मीडिया की भूमिका रही. टेक्नलॉजी और 3डी होलोग्राम टेक्नलॉजी का इस्तेमाल हुआ. मेरा कहना है कि अगर सुपर फिशियल तरीके से देखें तो लगेगा कि मीडिया को खरीद लिया गया लेकिन लेकिन गंभीरता से देखें तो लगेगा कि बहुत ही प्लान्ड वे में ये सब काम हुआ. डेटा का मैनिपुलेशन किया गया. माइक्रो प्लानिंग की गई.
अंतिम वक्ता के रूप में न्यूज़ नेशन के सीईओ शैलेश ने अपनी बात रखते हुए कहा कि इस चुनाव में और इससे पहले भी आरोप की शक्ल में ही सही, कहा जाता रहा है कि टेलीविजन किसी को नेता बना देता है, कहां से कहां पहुंचा देता है, पार्टी को जिता देते हैं.,एक पत्रकार के नाते खुशी होती है ? लेकिन क्या ये सच है ? क्या मीडिया किसी को जिता सकता है ? मैं इतिहास के कुछ संदर्भ को शामिल करना चाहूंगा. 1967 में दस राज्यों में कांग्रेस का सफाया हो गया, कौन सा मीडिया था..इंदिरा वाणी बंद करो, आकाशवाणी स्वछंद करो का नारा चला था.किस मीडिया ने गांव-गांव के लोगों को समझा दिया कि सरकार को बदलने का वक्त आ गया..कौन सा मीडिया था, एक मात्र टेलीविजन हुआ करता था. 1977 सिर्फ आकाशवाणी और कुछ अखबार थे. अखबार नेताओं के भाषण छाप देते थे, वही काफी था. रेडियो जो एक मात्र माध्यम था उस पर सरकार का नियंत्रण था. द टाइम्स ऑफ इंडिया दिल्ली से एक दिन बाद पहुंचता था तो कौन सा मीडिया ने कमाल कर दिया कि 1977 में जनता पार्टी की सरकार आ गयी. 1987 में फिर शुरुआत होती थी..प्राइवेट चैनल नहीं आया था. 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह आते हैं और अखबार उन्हें बल देना शुरु किया. सरकार बदल गयी..तो इसलिए 2004 के बाद ये थ्रेट कि मीडिया ही सबकुछ करता है तो खुशी होती है लेकिन मैं अंदर से जानता हूं कि पूरी दुनिया में मीडिया यही करता है कि जो धारा है, उसके साथ चलो.
कॉनक्लेव के दौरान पत्रकार और लेखक आर.अनुराधा को भी याद किया गया जिनका कुछ दिनों पहले निधन हो गया. राजकमल प्रकाशन के सौजन्य से आर अनुराधा द्वारा स्वर्गीय एसपी सिंह पर लिखी किताब ‘पत्रकारिता का महानायक’ मीडिया कॉनक्लेव के वक्ताओं को भेंट भी किया गया. कान्क्लेव में आजतक के चैनल हेड सुप्रिय प्रसाद, इंडिया टुडे के पूर्व मैनेजिंग एडिटर दिलीप मंडल,समाचार चैनल तेज के प्रमुख संजय सिन्हा, समाचार प्लस के प्रमुख उमेश कुमार, भास्कर न्यूज़ के एडिटर –इन-चीफ, राहुल मित्तल, राजकमल प्रकाशन के आलिंद माहेश्वरी आर तरुण गोस्वामी, आधी आबादी की मुख्य संपादक मीनू गुप्ता और संपादक हिरेन्द्र झा, भास्कर न्यूज़ के वाइस प्रेसिडेंट सरफराज सैफी, भास्कर न्यूज़ के एडिटर रवि शंकर और अमेटी यूनिवर्सिटी के प्रतिमान उनियाल, कृषि भूमि के संपादक सुबोध मिश्र, समेत बड़ी संख्या में पत्रकार, बुद्धिजीवी और छात्र मौजूद थे. कार्यक्रम का संचालन निमिष कुमार ने किया.