एसपी के नाम पर होने वाला सालाना व्यायाम बंद ही कर दें तो अच्छा होगा

sp1sp-2एसपी सिंह के नाम पर भाई Pushkar Pushp बड़े जतन से हर साल कार्यक्रम करवाते हैं, लेकिन हर बार एसपी के समकालीन और उन्हें अपना आदर्श मानने वाले संपादक आम दर्शकों और नौजवान पत्रकारों की बची-खुची आस को एक-एक सेंटीमीटर डुबोते जाते हैं। फिलहाल उर्मिलेश जी को छोड़ दें तो विनोद कापड़ी, राहुल देव, नक़वी जी, अजित अंजुम और यहां तक कि निशांत ———————————— सब ने मिलकर मीडिया की खराब हालत के लिए नए लड़कों के ”अनपढ़” होने को आज जिम्मे दार ठहरा दिया।

आप लोगों को शर्म नहीं आती? नए लड़कों के ”अनपढ़” होने का जिम्माव किसके सिर पर है? क्या- आपने कभी न्यू ज़रूम में भाषा/शैली/खबर/समाज/राजनीति पर कोई ट्रेनिंग चलाई? बाल पकने पर तो सियार भी भगत हो जाता है। इन ”अनपढ़ों” को कौन रिक्रूट करता रहा? क्योंि रिक्रूट करते रहे आप इन्हेंा? इसीलिए न, कि नया लड़का आपको बाबा समझता रहे और आपकी आत्मकमुग्धज समझ को चुनौती न मिल सके? ”पढ़े-लिखे” लोगों को नौकरी देकर देखिए, दो दिन नहीं सह पाएंगे आप। आप ही के बीच से शेष नारायण जी सबसे पहले उठ कर चले गए क्योंोकि वे पर्याप्तम ”पढ़े-लिखे” थे फिर भी आपसे ज्यारदा उन्होंरने भोगा है।

उस पर से तुर्रा ये कि चैनल चलाने के लिए पैसा चाहिए और बकौल अंजुम जी, सबको वैकल्पिक रेवेन्यू मॉडल पर सोचना चाहिए। क्यों सोचें भाई? विटामिन खाओ हमसे और इश्क लड़ाओ शुक्लाख जी से? हर हफ्ते आप ही की उम्र और साथ के कुछ ”असफल” पत्रकार जैसे अनिल चमडि़या, धीरेंद्र झा, राजेश वर्मा आदि पिछले डेढ़ साल से कोऑपरेटिव मॉडल पर चैनल लाने की कोशिश कर रहे हैं, प्रेस क्ल ब में नियमित मीटिंग करते हैं, लेकिन आपको तो तब पता हो जब दफ्तर में साधु-तांत्रिक को घुमाने से आपको फुरसत मिले। बताइए, अच्छे -खासे अरुण पांडे जी से प्रणाम करवा दिया था जबरिया… बात करते हैं!

खुल तो गई पोल पेड न्यूकज़ पर। सबने एक स्वछर में मान लिया कि पेड न्यूाज़ की रिपोर्ट की खबर इन्हों ने नहीं दिखाई, न दिखा सकते थे। अब क्याक बचता है बोलने को? कैसे आ जाते हैं आप लोग सार्वजनिक कार्यक्रमों में? आलोक मेहता को देखिए और सीखिए… एक बार हंस की गोष्ठी में गाली खाए तो फिर कभी नहीं उपराए। अब भी सोचिए… मौका है। लड़के बहुत गुस्सेे में हैं। बस लिहाज करते हैं और इसलिए आप लोगों को बुलाते हैं कि आपसे ही उन्हेंत सही-गलत जो हो, उम्मीेद है। वरना जिस माइक से अनुशासन सिखाने के लिए एक हत्यापरे की कंपनी के सीईओ रह चुके राहुल जी छटपटाते रहते हैं, किसी दिन वह माइक शर्मिंदा होकर ऑन होने से खुद ही इनकार कर देगा।

पुष्कसर भाई, वैसे तो मुझे डॉक्टोर ने कार्यक्रम में जाने को नहीं कहा था, फिर भी एक गुज़ारिश है। कोई प्रच्छेन्ना एजेंडा ना हो तो एसपी के नाम पर होने वाला कांग्रेस सेवा दल टाइप यह सालाना व्या्याम बंद ही कर दें।

इतना लंबा पढ़वाने के लिए मित्र क्षमा करेंगे।
(अभिषेक श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से)

 

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