मीडिया का चश्मा ‘भारतीय’ नहीं रह गया है

मीडिया और मिथ विषय पर पूरे दिन चले चर्चा परिचर्चा में यह बात निकल कर आई की मीडिया का चश्मा भारतीय नहीं रह गया है।ऐसे में एक गंभीर सवाल यह भी है की मीडिया का भारतीय चश्मा कहीं खो गया है?, या कभी भारतीय चश्मा बना ही नहीं! दोनों ही स्थिति भारत के हित में नहीं है।

ashutosh kumar singh
ashutosh kumar singh

आशुतोष कुमार सिंह

20 मई, 2017 पत्रकारिता के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा। भारत में रहकर अमेरिका, ब्रिटेन, चीन और पाकिस्तान के राष्ट्रीयधारा के अनुकूल रिपोर्टिंग करने वालों की धौस, मौज और स्वार्थपरता को धता बताते हुए पहली बार ब्यापकता एवं सार्थकता के साथ मीडया की वर्तमान स्थिति पर विचार-विमर्श किया गया। इसका गवाह भारतीय जनसंचार संस्थान बना।

सुबह -सुबह यज्ञ का आयोजन किया गया। स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यज्ञ के बहुत से फायदे हैं। आज जब पूरा विश्व मानसिक रूप से अस्वस्थ होता जा रहा है, वैसे में यज्ञ और योग ही उसे समष्टिगत रूप से स्वस्थ रख सकता है। इस लिहाज से आयोजन पूर्व यज्ञ का होना सकारात्मकता को बढ़ाने जैसा है। कुछ छात्र इस यज्ञ का विरोध कर रहे थे। उन्हें शायद नहीं मालूम की भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, जहाँ पर सभी नागरिकों को अपने धार्मिक मान्यता के अनुसार पूजा करने का मौलिक अधिकार मिला हुआ है। विरोध कर के वे भारतीय संविधान की मूल आत्मा पर कुल्हाड़ी चला रहे हैं, यह भान उन्हें शायद नहीं था। इन्हें आप भटके हुए युवा कह सकते हैं। अतः इनके साथ नरमी और प्यार से पेश आने की जरुरत है। साथ ही हमें अपनी उस कमी पर भी चिंतन करने की जरुरत है, जिसके कारण हम इन युवाओं में भारतीय संविधान और भारतीय संस्कृति के प्रति सकारात्मक भाव नहीं भर पाएं हैं।

मीडिया और मिथ विषय पर पूरे दिन चले चर्चा परिचर्चा में यह बात निकल कर आई की मीडिया का चश्मा भारतीय नहीं रह गया है।ऐसे में एक गंभीर सवाल यह भी है की मीडिया का भारतीय चश्मा कहीं खो गया है?, या कभी भारतीय चश्मा बना ही नहीं! दोनों ही स्थिति भारत के हित में नहीं है। ऐसे में जरुरत इस बात की है की मीडिया के चक्षुदोष की जाँच किसी विशेष आँख वाले चिकित्सक से कराइ जाये और दोष के अनुरूप उसके चश्मे की संख्या दी जाये। अगर उसका आँख भारतीय सन्दर्भ को बिलकुल ही देखने में असमर्थ है तो किसी भारतीय नेत्रदाता की शरण ली जाये।

यहाँ यह समझना जरुरी है की भारत में जन्मा प्रत्येक जन भारत के नागरिक हैं। उनके प्रत्येक कृत्य-कुकृत्य का असर भारत की पहचान से जुड़ती है। अगर आप भारतीय हैं और राष्ट्रीयता के भाव के विपरीत आचरण कर रहे हैं तो यह चिंतनीय स्थिति है। यह बात भारत की मीडिया पर भी लागू होता है। अगर आप भारत में रहकर, भारत के आवरण में साँस लेकर, उसी आवरण को दूषित करने का काम करते हैं तो निश्चित रूप से राष्ट्र और राष्ट्रीयता की अवधारणा से आप कोसों दूर हैं। आपको यह दूरी कम करने की जरुरत है।इस परिप्रेक्ष्य में भारतीय जनसंचार संस्थान में #मीडिया_स्कैन द्वारा आयोजित यह परिसंवाद बहुत ही सार्थक दिशा देगा।

आशुतोष कुमार सिंह
सदस्य, संपादक मंडल, मीडिया स्कैन
संयोजक-स्वस्थ भारत अभियान
संपर्क 9891228151

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.