संजीव चौहान
यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जानना चाहते हैं, कि पुलिस खराब है या फिर पुलिस को यूं ही पब्लिक सड़क पर गरियाती है। इसके लिए यूपी के डीजीपी (पुलिस महानिदेशक) ने डिप्टी-डायरेक्टर (सूचना) अशोक कुमार शर्मा और अपने मातहत पुलिस मुख्यालय के पब्लिक रिलेशन विभाग में तैनात एडिश्नल एसपी स्तर के अधिकारी नित्यानंद राय को तैयार किया है।
ब-हुक्म आला-कमान दोनो अफसरान महीनों से सूबे में जिले-जिले की खाक छान रहे हैं। सरकारी हुक्मरानों की नज़र में अक्सर यही रहता है, कि पुलिस की दुर्गति करने के लिए मीडिया और पब्लिक जिम्मेदार है। पुलिस से तो कभी-कभार कहीं जाने-अनजाने कोई भूल हो जाती है। तो मीडिया खिसिया-खिसियाकर पुलिस की खराबी को ज्यादा उजागर करता है। ऐसा ही एक वीडियो “क्राइम्स वॉरियर” (CRIMES WARRIOR) के हाथ लगा है। वीडियो देखकर आपकी रुह कांप जायेगी। मां, बहन-बेटी की आंखों में आंसू आ जायेंगे। खुद अपनी आंख से देखिये कि, यूपी (आगरा) पुलिस किस हद तक उतर सकती है, अगर वो औकात पर आ जाये।
आगरा पुलिस ने हवालात में रखकर रात भर इस युवा को अकाल मौत के कगार पर ला खड़ा किया। एक बूंद पानी तक को तरसा दिया है। मीडिया अगर नहीं थाने पहुंचा होता, तो शायद अगले दिन के अखबारों में देश पढ़ता कि ‘पुलिस हिरासत में एक की मौत, आरोपी पुलिस वालों के खिलाफ मामला दर्ज, उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिये गये, आरोपी पुलिस वाले फरार, तलाश जारी’। इस खबर के चंद दिन बाद ही आप लोगों को मीडिया से ही सुनने-पढ़ने-देखने को मिलता… आगरा के थाना एतमुद्दौला में पुलिस हिरासत में मौत के मामले में आरोपी पुलिस वालों की फलां-फलां थानों में तैनाती कर दी गयी है। इसके बाद रेंज और जिले के आला-पुलिस अफसरों का इस पर बयान आता कि, ‘जब तक जांच में कोई दोषी न पाया जाये, उसके खिलाफ दण्डात्मक कदम कैसे उठाया जा सकता है।’
बताईये अब अगर मीडिया ने इस लड़के की जान बचा कर, पुलिस के कुकर्मों को ‘नंगा’ करके पब्लिक को बता दिया, तो इसमें मीडिया का भला क्या कसूर है? और क्या वाकई पुलिस दूध की धुली और मासूम है…उसे यूं ही मीडिया और पब्लिक निशाने पर ले आती है। क्या इसके बाद भी सूबे के सीएम और पुलिस महानिदेशक को अब जरुरत रह गयी है, कुछ जानने की, कि आखिर खराब कौन है? पुलिस या पब्लिक और मीडिया!
It is Police Station or “Pratadna Camp” of Hitler.