वेद विलास उनियाल
क्या भारत का मतलब योगेंद्र यादव , आशीष खेतान, प्रशात भूषण, आशूतोष ही है। टीवी के न्यूज चैनलों को देखकर यही लगता है। और तो और संजय सिंह को भी इस तरह दिखाया जाता है मानो वह कोई बीजू पटनायक हो।
मीडिया ने बबूलों को बरगद बना दिया।
योगेद्र यादव, आशीष खेतान , संजय सिंह और आशुतोष इस तरह बयानवाजी करते हैं मानों भारतीय राजनीति के चार पांच दशक इन्होने निकाल लिए हों। मगर उप्र और बिहार का एक ग्राम प्रधान इनको बैठे- बैठे ज्यादा राजनीति सिखा देगा। चौपाल की भी जरूरत नहीं पड़ेगी।इस तरह बयान बाजी करते हैं कि मानों भारत के चप्पे चप्पे को देख समझ लिया हो।जबकि हकीकत यह है कि इन्हें दिल्ली की पराठा गली और चांदनी चौक की गलियां भी ठीक से पता नहीं होगी।
गांव में जाकर चार लोगों से जूझने और उनकी समस्या को सुनने की क्षमता नहीं है इनमें। न कुछ सीखने की लालसा । अन्ना हजारे ने अपने तप तपस्या से इन सबकी लाटरी निकाल दी।
कोई अपने को जार्ज फर्नाडीज समझ रहा हेै, कोई चौधरी चरण सिंह, कोई युवा तुर्क चंद्रशेखर, कोई आचार्य कृपलानी। कोई अपने को कांग्रेस फार डेमोक्रेसी बनाने वाले जगजीवन राम ही समझ बैठा है। यह सब मीडिया की देन है।
राष्ट्रीय चैनल संजय सिंह को एक घंटा की वार्ता देंगे तो यही हाल होगा।
जिसकी क्षमता ग्राम प्रधान का चुनाव लडने की थी, वो देश पर बोलने लगा। सच है मीडिया ने बबूलों को बरगद बना दिया।
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