मीडिया से लोगों को स्यूसाइड का आइडिया मिलता है। यह खुलासा हुआ है हाल ही हुई एक स्टडी में। इसके मुताबिक 89 पर्सेंट लोगों का मानना है कि मीडिया से स्यूसाइड करने का आइडिया मिलता है। यही नहीं, 71 पर्सेंट लोगों का मानना है कि परिवार में स्यूसाइड हिस्ट्री देखकर ही लोग स्यूसाइड अटेंप्ट करते हैं। 10 सितंबर को स्यूसाइड प्रिवेंशन डे है। डॉक्टरों का मानना है कि स्यूसाइड करने वाले 90 पर्सेंट लोग मानसिक रूप से अनफिट होते हैं और इसका इलाज हो सकता है। इसलिए डॉक्टरों की मांग है कि यूरोपीय देशों की तरह भारत में भी स्यूसाइड प्रिवेंशन पॉलिसी बनाई जाए ताकि हर ऐसे रोगी को पूरा इलाज मिल सके।
दिल्ली एनसीआर के 3000 अडल्ट लोगों पर यह स्टडी की गई। फोर्टिस अस्पताल के साइकैटरिस्ट डॉक्टर समीर पारिख की अगुवाई में यह स्टडी की गई। डॉ पारिख का कहना है कि एक तरफ 90 पर्सेंट लोगों को लगता है कि इसका इलाज नहीं है। दूसरी तरफ 89 पर्सेंट लोगों को स्यूसाइड का आइडिया मीडिया से मिलता है। आमतौर पर बीमारी से परेशान और वीकनेस के शिकार लोग स्यूसाइड कर लेते हैं। लेकिन इस स्टडी में यह भी पता चला है कि अटेंशन नहीं मिलने की वजह से 85 पर्सेंट लोग स्यूसाइड कर लेते हैं। जो लोग स्यूसाइड करने की सोचते हैं, उनमें 90 पर्सेंट लोग स्यूसाइड कर ही लेते हैं।
इहबास के डायरेक्टर निमेश जी. देसाई का कहना है कि देश में साइकैटरिस्ट की भारी कमी है। इसलिए पॉलिसी बनाने की जरूरत है। स्यूसाइड प्रिवेंशन हेल्पलाइन हो, डॉक्टरों के अलावा नर्सिंग स्टॉफ, स्कूल टीचर को ट्रेनिंग दी जाए जो लोगों को इस बीमारी से बाहर निकलने में मदद कर सकें। मीडिया से लोग स्यूसाइड का आइडिया लेते हैं। सरकार को इसी मीडिया के जरिए लोगों को जागरूक करना चाहिए कि स्यूसाइड की वजह आमतौर पर बीमारी होती है और इसका इलाज है। उन्होंने कहा कि जब तक हम लोगों को इसके प्रिवेंशन के बारे में नहीं बताएंगे, तब तक सोच नहीं बदलेगी। एक बार जब लोग उस स्थिति से गुजर रहे होते हैं, उसी समय उन्हें इलाज की जरूरत है।
(सौजन्य-नवभारत टाइम्स)