आइबीएन7 पर छत्तीसगढ़ की आदिवासी छात्राओं के साथ सरकारी आश्रमों में होते रहे बलात्कार पर मौसमी सिंह की विशेष रिपोर्ट “दरिंदे” देख रहा हूं. मौसमी सिंह न पूरी रिपोर्ट को जिस अंदाज में और जिस चुस्त स्क्रिप्ट के साथ पेश किया है, उससे गुजरते हुए सैंकड़ों आइआइएमसी,जामिया मिलिया इस्लामिया से पढ़े उन मीडिया छात्रों का जोश, काम के प्रति जज्बात और संवेदनशीलता की झलक मिलती है जिन्हें मीडिया मंडी में प्रयोग करने के मौके नहीं मिलते. वैसी खबरों की गुंजाईश न के बराबर रह गई है जहां वो दर्शकों को बता सकें कि टीवी पत्रकारिता भले ही मुनाफे और भारी निवेश के बीच खड़ा एक उद्योग है लेकिन संवेदना की जमीन को बीच-बीच में छूते रहना अनिवार्य है. मौसमी सिंह की भाषा और तेवर से गुजरते हुए एकबारगी टीवी के भीतर लुप्त होती विधा का अहसास होता है और टीवी का वो स्वाभाविक हिस्सा नहीं लगता. ऐसी ही रिपोर्टों को देखते हुए हमारे मन में सवाल उठते हैं- क्या टेलीविजन पत्रकारिता अपने नफा-नुकसान की गणित के बीच अपने इस चरित्र को शामिल नहीं कर सकता जो अभी मौसमी सिंह की इस रिपोर्ट के स्क्रीन पर आने से नजर आ रहे हैं.
इन सबके बीच सबसे जरुरी बात कि परिचर्चा में बीजेपी नेता और मशहूर वकील मीनाक्षी लेखी इस पूरी रिपोर्ट को झूठा और साजिश बताकर रमन सिंह सरकार की ओर से न केवल आरोप लगा रही हैं बल्कि आइबीएन 7 को धमकियां तक दे रही हैं. हम इन सब पर बराबर नजर बनाए हुए हैं, संदीप चौधरी इसे चुनावी नारे की शक्ल में तब्दील न भी करते तो भी हम इस पर गौर करते बल्कि हम चाहते हैं कि चैनल ऐसे काम बराबर करते रहें कि धमकिया मिलती रहे. चैनल को कायदे से तो धमकियां ही मिलनी चाहिए, डीएलएफ, आम्रपाली और प्रतीक ग्रुप जैसे प्रायोजकों से काठ-कांसे-पीतल के मेडल नहीं. खैर, जरुरी बात ये कि मौसमी सिंह उन तमाम आरोपों और बीजेपी के नेताओं की झल्लाहट का इतना सधे ढंग से जवाब दे रही हैं कि प्राइम टाइम के बाकी सुरमा बहुत ही फीके नजर आ रहे हैं. वो आज की न्यूज चैनल के प्राइम टाइम की रिपोर्टर ऑफ द डे है जिसे कि आगे लंबे समय तक याद रखा जा सकेगा. पिछले दस साल में बहुत ही कम या कहें कि शायद ही कोई ऐसा मौका आया होगा जब हमने स्थापित, घिसे चेहरे के बीच अपेक्षाकृत मौसमी सिंह जैसे नए चेहरे को हम जैसे दर्शक पर इस कदर प्रभावित कर पाए हों जिनकी सलामती और तरक्की( फ्लैट और लोहे-लक्कड़ की गाड़ियों के स्तर पर तरक्की नहीं, बौद्धिक और पत्रकारिता के स्तर पर) के लिए दिल से दुआ निकल रही है. संभव है इस रिपोर्ट के पीछे राजनीतिक व्याख्या शामिल हो लेकिन हम मौसमी सिंह की तेवर, भाषा और स्क्रिप्ट को सलाम करते हैं.
लिंक- http://khabar.ibnlive.in.com/news/95278/1
मौसमी सिंह की रिपोर्ट हमने देखी थी और इस बात से मौसमी सिंह भी इंकार नहीं कर सकतीं कि जो कुछ, महीने भर से स्थानीय अखबारों में छपा था, उसे ही मौसमी ने उठा कर सनसनीखेज तरीके से पेश कर दिया, कुछ इस तरह, जैसे वे पहली बार उन मुद्दों को सामने ले कर आ रही हों. दिल्ली में बैठ कर सलाम करने के बजाये अगर आपने स्थानीय अखबारों के पुराने संस्करण देख लिये होते तो सलाम करने के बजाये आप मौसमी सिंह की लानत-लमामत ही करते, जो मैं कर रहा हूं.