अनुराग पुनेठा, टेलीविजन पत्रकार
एक दिलचस्प किस्सा है, क्योंकि प्रेस की आज़ादी का मुद्दा ज़ेरे बहस है.
हिंदुस्तान के एक बडे मशूहरो मारूफ शायर हुये थे “मजरूह सुल्तानपुरी”
वही- ‘मै अकेला ही चला था, जानिबे मंजिल मगर लोग पास आते गये और कारवां बनता गया’ लिखने वाले.
फिल्मों में सबसे लंबे समय तक काम किया, सहगल से लेकर सलमान तक. उन्होंने अपनी रचनाओं के जरिए देश, समाज और साहित्य को नयी दिशा दी,
उनका लिखा– “जब दिल ही टूट गया तो जी के क्या करेंगे” उस वक़्त के आशिकों के लिए राष्ट्रीय गीत था. सहगल को यह गीत इतना पसंद था, वे चाहते थे कि इसे उनके जनाजे में जरूर बजाया जाए.
खैर बात 1949 के आसपास की है, जब देश आज़ाद हो चुका था, नेहरू सर्वे सर्वा थे- समाजवादी सपनों के नये भारत के स्वंयभू कस्टोडियन, बापू का वरदहस्त मिल ही चुका था, चुनौती में कोई नही था, और चुनौती उनको पसंद थी भी नही.
उन दिनो बंबई में मजदूरों की एक हड़ताल हो गयी, मजरूह प्रोग्रेससिव राइटर एसोसिएशन के सदस्य थे. वो मजदूरों के हक में पंहुच गये, और अपने बेखौफ़ लहजे में सुना डाली नज़्म…
मन में ज़हर डॉलर के बसा के,
फिरती है भारत की अहिंसा.
खादी की केंचुल को पहनकर,
ये केंचुल लहराने न पाए.
ये भी है हिटलर का चेला,
मार लो साथी जाने न पाए.
कॉमनवेल्थ का दास है नेहरू,
मार लो साथी जाने न पाए.
मजदूर जोश में आ गये. जमकर तालियां बजी, नारेबाज़ी हुयी.
खबर नेहरू तक पंहुची, चाचा नेहरू लाल हो गये। उन्होने तुरंत फोन खडखडाया, मुंबई के गर्वनर को, गर्वनर थे “मोरारजी देसाई”, आदेश कि टाइट करो इस “मार लो कहने वाले को”.
मोरारजी देसाई ने तुरंत आका के हुक्म की तालीम की, मजरूह और उनके साथ बलराज साहनी को तुरंत धर दबोचा गया, और आर्थर रोड जेल में ठूंस दिया.
छोडने की शर्त रखी कि माफी मांग लो, तो छोड देंगे.
मजरूह भी ठहरे अख्खड- नही मांगी माफी, उनके लिये नेहरू के क़द से बडी उनकी कलम थी,
मजरूह सुल्तानपुरी को 2 साल की सजा सुना दी गयी.
आजाद भारत में खिलाफ बोलने या लिखने का पहला मामला..
एसी फैरिस्त लंबी है)..संदेश ये दिया गया कि लोग पजामें में रहें, वर्ना …
किस्सा समाप्त
और हां मजरूह सुल्तानपुरी के सामने नरेन्द्र मोदी की क्या हैसियत ?
तो क्या हुआ कांग्रेस के नेता अब तक उनको 50 से ज्यादा गालियां दे चुके है।
मौत का सौदागर, नीच, “चौकीदार चोर है, “गदहा”, “नामर्द”, “साला मोदी” “Chop Narendra Modi into pieces” “चोर और नटवरलाल”, “नमक हराम”, हिटलर, “आतंकी जैसे दिखते हैं मोदी” , “चूतिया को भक्त बनाना और भक्तों को पर्मानेंट चूतिया बनाना”, “जवानों के खून के दलाल”, “सांप, बिच्छू और गंदा आदमी”, “रैबिज से पीड़ित” , “पागल कुत्ता” , “गंदी नाली का कीड़ा”…इत्यादि
कौन पार्टी मुकाबला करेगी?
मोदी को अपशब्द कहना ही तो पत्रकारिता है,
और हां इस किस्से का अर्नब गोस्वामी से कोई लेना देना नही है, वो गोदी मीडिया है, उसके साथ जो हुआ , वो कम हुआ.
मजरूह सुल्तानपुरी की रूह से पूछो।
(लेखक के एफबी वॉल से साभार)