कुमार विश्वास का तीन घंटे का इंटरव्यू,लेकिन कई प्रकरण प्रकाशित साक्षात्कार से गायब

कुमार विश्वास
कुमार विश्वास

अभिषेक श्रीवास्तव

‘पाखी’ पत्रिका के दफ्तर में साढ़े तीन घंटे तक चले अपने सामूहिक साक्षात्‍कार के दौरान कुमार विश्‍वास ने दिल्‍ली के खिड़की एक्‍सटेंशन और सोमनाथ भारती वाली कुख्‍यात घटना का जि़क्र करते हुए अफ्रीकी नागरिकों को ‘नीग्रो’ कहकर संबोधित किया। जब मैंने इस पर प्रतिवाद किया, तो उन्‍हें अव्‍वल यह बात ही समझ में नहीं आई कि आपत्ति क्‍यों की जा रही है। तब मैंने उन्‍हें एक और उदाहरण दिया कि कैसे कमरे में प्रवेश करते वक्‍त उन्‍होंने अपूर्व जोशी को ‘पंडीजी’ कह कर पुकारा था। इस पर वे कुछ बैकफुट पर तो आए, लेकिन अपने इन जातिसूचक और नस्‍लभेदी संबोधनों पर उन्‍होंने कोई खेद नहीं जताया। यह प्रकरण प्रकाशित साक्षात्‍कार में गायब है।

ऐसे कई और सवाल हैं, प्रतिवाद हैं जिन्‍हें संपादित कर के हटा दिया गया। ज़ाहिर है, इतने लंबे संवाद से कुछ बातें हटनी ही थीं लेकिन कुछ ऐसी चीज़ें भी हटा दी गईं जिनसे कुमार विश्‍वास के एक रचनाकार, राजनेता और सार्वजनिक दायरे की शख्सियत होने के कारणों पर शक़ पैदा होता हो। अपने देश-काल की औसत और स्‍वीकृत सभ्‍यता के पैमानों पर कोई व्‍यक्ति अगर खरा नहीं उतरता, तो यह बात सबको पता चलनी ही चाहिए। ऐसा इसलिए क्‍योंकि जो लोग लिखे में ‘पॉपुलर’ का समर्थन कुमार विश्‍वास की पूंछ के सहारे कर रहे हैं, उन्‍हें शायद समझ में आए कि दरअसल वे अंधेरे में अजगर को ही रस्‍सी समझ बैठे हैं। ‘पॉपुलर’ से परहेज़ क्‍यों हो, लेकिन कुमार विश्‍वास उसका पैमाना कतई नहीं हो सकते।

मेरा ख़याल है कि अगर साढ़े तीन घंटे चले संवाद की रिकॉर्डिंग जस का तस सार्वजनिक की जाए, तो शायद कुछ धुंध छंटने में मदद मिले। जो प्रश्‍न औचक किए गए लग रहे हैं, जो बातें संदर्भहीन दिख रही हैं और कुमार को जो ”घेर कर मारने” वाला भाव संप्रेषित हो रहा है, वह सब कुछ पूरे साक्षात्‍कार के सामने आने के बाद परिप्रेक्ष्‍य में समझा जा सकेगा। उसके बाद पॉपुलर बनाम क्‍लासिकी पर कोई भी बहस विश्‍वास के समूचे व्‍यक्तित्‍व को ध्‍यान में रखकर और उन्‍हें इससे अनिवार्यत: बाहर रखकर की जा सकेगी।

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