-अनिल सिंह-
पत्रकारिता संस्थाओं में दलाली नहीं सिखाई जाती। फिर भी दलाली आज शीर्ष पत्रकारिता का अभिन्न अंग बन गई है। हालांकि अपेक्षा रहती ही है कि पत्रकार सत्य के प्रति दुराग्रह की हद तक चला जाएगा। कुछ इसी मंशा से एक प्रयास अमर उजाला कारोबार के रूप में करीब दो दशक पहले हुआ था। संयोग ने वहां करीब 50 नए पत्रकारों की टीम बनाने और उन्हें प्रशिक्षित करने में मेरी भी भूमिका रही। दो दिन पहले जब उन्हीं में दो लोगों को मैंने डंके की चोट पर झूठ प्रचारित करते देखा कि 2000 के नए नोट में ट्रैकिंग चिप लगी हुई है तो बड़ा दुख हुआ है। फिर लगा कि जिस तरह कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं की जा सकती है, उसी तरह ‘प्रचारक’ को कभी सत्य का आग्रही पत्रकार नहीं बनाया जा सकता।
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