आसां नही, पत्रकार के लिए लोकतंत्र की कोठरी में बेदाग दिखना

मनीष ठाकुर-

एक वक्त था जब लोग ठसक के साथ कहते थे कि मैं वोट नहीं देता! इसमें पत्रकार भी शामिल होते थे। मान्यता थी की संभ्रांत कॉलोनी के लोग वोट नहीं देते और गरीब बस्तियों के वोट कुछ नगदी और शराब के लालच में खरीद लिए जाते हैं। वक्त ने करवट ले ली है अब आप वोट खरीद नहीं सकते, खरीदने का दंभ भले ही भर लें। दूसरी तरफ ,आज जब आप कहेंगे कि मैं वोट नहीं देता, तो सामाजिक बहिष्कार झेलने का खतरा मोल ले सकते हैं। दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिकाकर्ता के इसी ठसक पर कि वो वोट नही डालता उसकी याचिका खारिज करते हुए कहा फिर तो आपको व्यवस्था पर सवाल उठाने का भी कोई हक नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के द्वारा याचिका खारिज किए जाने के और भी कारण थे लेकिन किसी याचिका को खारिज करते हुए इस तरह की टिप्पणी भारत की सबसे बड़ी अदालत से शायद पहले कभी नहीं आई थी । सच भी है लोकतंत्र में व्यवस्था सभ्य समाज के हिसाब से बनाए रखने के लिए जरुरी है कि हम और आप वोट दें। इस व्यवस्था को बनाए रखने में सोशल मीडिया बड़ी भूमिका निभा रहा है। आज लोग सोशल मीडिया पर ऊंगली के निशान दिखा कर व्यक्त कर रहे हैं कि उनने वोट देकर लोकतंत्र के महापर्व में हिस्सा लिया। उन लोगों में पत्रकारों की संख्या बहुतायत होती है। तो तय सी बात है कि पत्रकार भी किसी न किसी राजनीतिक दल को वोट देते होंगे? किसी न किसी विचार धारा से प्रभावित होंगे।

यह मानवीय स्वभाव है। इसके लिए किसी के खिलाफ आवाज उठाने के बदले उनका सम्मान होना चाहिए कि उनने लोकतंत्र को मजबूत करने में भूमिका निभाई है।सोशल मीडिया जैसे मंच पर वो खुलकर अपने दिल की बात रखें इसका भी सम्मान होना चाहिए। क्योंकि ये किसी भी व्यक्ति का अपना मंच है।

लेकिन पत्रकार के लिए ये सामाजिक चुनौती ज्यादा बड़ी है। सही मायने में निःपक्ष दिखना पत्रकार कि पेशेगत जिम्मेवारी है। और इसी जिम्मेवारी का ईमानदारी से पालन पत्रकारिता को दुनिया के सभी पेशे से उंचा दर्जा देता है।

लेकिन जब मठाधीश पत्राकार मेनस्ट्रीम मीडिया में एजेंडे की तहत अपनी विचारधारा परोशते हैं तो पेशे की साख को चोटिल करते हैं जो उसकी सबसे बड़ी पूंजी है। ऐजेंडे पर चलना भी बुरा नहीं है। बुरा है, यह पाप कर के भी आदर्शवाद का चोला ओढना। उत्तर प्रदेश चुनाव आपका चोला उतार रहा है। भले ही आप सोशल मीडिया से भागकर कहीं भी ज्ञान बघार रहे हों…..कोई बात नहीं उतरने दीजिए बहुत आसां भी नहीं ये चोला ओढे रहना….

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.