पत्रकारिता को अब अपना नाम बदलकर चाटुकारिता रख लेना चाहिए

अभय पाण्डेय की एक टिप्पणी :

लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का वजूद खतरे में है या लोकतंत्र का यह चौथा स्तम्भ अपना वजूद खो चुका है वर्तमान परिदिश्य को देखकर तो कुछ ऐसा लग रहा है
जब लोकतंत्र का एक स्तम्भ ही हिचकोले खाने लगा तो लोकतंत्र भला कब तक अपना वजूद कायम रख सकता है।
स्वतंत्र पत्रकारिता की जगह आज बड़े बड़े प्रायोजित मीडिया हाउस ने ले ली।

नया शब्द पेड न्यूज़ पेड मीडिया पेड एंकर बहुतायत में सुने जा रहे है। आधुनिक पत्रकारिता आज कल न्यूज़ कम सास बहु के सीरियल ज्यादा हो गये है। सबसे बड़ी समस्या निष्पक्ष न्यूज़ चैनल की है। क्या आज कोई ऐसा मीडिया हाउस है जिसने अपनी विश्वसनीयता को कायम रखा हो। कुछ न्यूज़ पेपर ने तो मनोहर कहानियो और रंगीली कहानियो को पीछे छोड़ दिया है।

साहब किसी भी नींव का सबसे मजबूत पत्थर सबसे निचला ही होता है। पत्रकारिता का अस्तित्व खतरे में है जनाब। अभी नहीं चेते तो इसके दुष्परिणाम आपको हमें और इस देश को जल्द भुगतने होगे।

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