इतिहास के झरोखे से
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू अपने हंसमुख स्वभाव के लिए जाने जाते हैं. लेकिन नेहरु जी जितने हंसमुख थे, उतने ही ग़ुस्सैल भी थे. एक बार उन्हें गुस्सा आ गया तो फिर सामने वाले की ख़ैर नहीं चाहे वो पत्रकार ही क्यों न हो.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के आगमन पर दिल्ली हवाई अड्डे पर पत्रकारों की भीड़ पर वह इतना ग़ुस्सा हुए कि गुलदस्ते से ही मारने दौड़ पड़े थे.उनके सुरक्षा अधिकारी रह चुके के एफ़ रुस्तम जी अपनी किताब ‘आई वाज़ नेहरूज़ शैडो’ में लिखते हैं कि 1953 में जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मोहम्मद अली अपनी पत्नी के साथ दिल्ली हवाई अड्डे पर उतरे तो उन्हें नेहरू के मशहूर गुस्से का नज़ारा अपनी आँखों से देखने का मौका मिला.
हुआ ये कि जैसे ही जहाज़ की सीढ़ियाँ लगाई गईं, वहाँ मौजूद करीब पचास कैमरामैन मक्खियों की तरह जहाज़ के चारों तरफ़ खड़े हो गए. जैसे ही पाकिस्तानी प्रधानमंत्री उतरे, पीछे खड़ी भीड़ भी आगे आ गई और धक्का मुक्की होने लगी. नेहरू का पारा चढ़ा तो चढ़ता ही चला गया.
उन्होंने गुस्से में चिल्लाते हुए कैमरामैन के पीछे दौड़ना शुरू कर दिया. किसी एक शख़्स ने नेहरू के लिए कार का दरवाज़ा खोला. नेहरू ने गुस्से में वो दरवाज़ा बंद कर दिया और फूल के एक बड़े बूके से लोगों की पिटाई करने दौड़े. रुस्तम जी ने बहुत मुश्किल से उन्हें जीप पर सवार होने के लिए मनाया.
नाराज़ नेहरू और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जीप पर राष्ट्रपति भवन गए और उनकी लंबी कार जीप के पीछे-पीछे बिना किसी सवारी के आई.
(बीबीसी में रेहान फजल की नेहरु पर लिखे रिपोर्ट का एक अंश)