‘गूगल’ भी हमारे ‘ज्ञान’ के रहम-ओ-करम पर हंसता-सिसकता है साहब!
संजीव चौहान,संपादक, क्राइम्स वॉरियर
सवाल- भारत की पहली महिला आईपीएस कौन थी?
जबाब-‘किरन बेदी’…..भारत सहित दुनिया भर में अबतक खिंचा चला आ रहा था…..’बिलकुल सही जबाब….’
लेकिन अब इस सवाल का सही जबाब ‘किरन बेदी’ गलत साबित होगा। सही जबाब होगा…मरहूम सुरजीत कौर।
हां, शर्मिंदा हूं मैं….
स्कूल में मास्साब (टीचर) से लेकर दादा-दादी, नाना-नानी और पापा-मम्मी। सब-के-सब का ज्ञान कमोबेश एक समान। मतलब नौनिहालों और देश का कथित सुनहरा भविष्य अब तक अंधेरे की कोठरी में कैद था। ज्ञान के ‘अंधत्व’ में जब सब अंधे हुए, तो फिर मुझे यह मानने में भला क्यों, और कैसी गुरेज-शर्म, कि मैं भी बाकियों के ज्ञान की ‘रौ’ में तर-ब-तर था। हां, बस फर्क है, तो इतना कि अब बाकियों के ज्ञान की राहें किधर का रुख करेंगीं, पता नहीं….मैंने कान पकड़ के तौबा कर ली, और खुद को इस घिनौने मुद्दे पर सुधार लिया है।
साथ ही अब यह भी नहीं चलेगा…कि किरन बेदी पहली महिला आईपीएस थीं…। “अच्छा हुआ देर-आयद-दुरुस्त-आयद। सुबह का भूला शाम को घर लौट आये तो, भूला नहीं कहा जाता।” ऐसे और न जाने इनसे मिलते-जुलते और तमाम जुमले मैं अपने ‘कमजोर-ज्ञान’ की गर्दन सलामत रखने के लिए कह-सुना सकता हूं। या यूं कहूं कि, यह सब मैं अपने अल्पज्ञान के चलते खुद की छीछालेदर बचाने के लिए कह सकता हूं। लेकिन आईंदा, या आने वाली पीढ़ियों में अब किरन बेदी, भारत की ‘पहली महिला आईपीएस’ कभी नहीं कही, लिख-सुनी जायेंगीं। हमारी आने वाली पीढ़ियां अगर किरन बेदी को भारत की पहली महिला आईपीएस बतायेंगी/ कहेंगीं, तो उनका जबाब अब ‘गलत’ होगा।
बेबाक किरन बेदी की चुप्पी का रहस्य
किरन बेदी भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी नहीं थीं। इसके लिए हमारे बुजुर्गों से लेकर स्वंय मैं या सरकारी हुक्मरान जितने जिम्मेदार हैं या थे, उससे ज्यादा जिम्मेदारी तो किरन बेदी की है। जो अब तक खुद को ‘देश की पहली महिला आईपीएस कहलवाकर’ जिगर चौड़ा करके, कई मर्द और मर्दानी (महिला) आईपीएसों का ‘हलक’ सुखाये हुए थीं। माना कि ‘गूगल’ का ज्ञान ‘जीरो’ था। पूरे देश का ज्ञान कम था। सरकारी हुक्मरान आंख मूंदकर बैठे हुए थे। ऐसे में सवाल यह पैदा होता है, कि किरन बेदी सच्चाई पर ‘चुप्पी’ क्यों साधे रहीं? एक महिला आईपीएस होने के दिन या फिर उसके बाद किरन बेदी को तो शत-प्रतिशत पता था कि, वो मोहतरमा देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी तो कतई नहीं हैं। फिर भी मैडम किस “खुशफहमी” में “खामोश” रहीं….और आखिर क्यों? छोड़िये किरन बेदी को….जो चर्चा के काबिल नहीं, उस पर इतनी ही सिर-फुटव्वल बहुतेरी है।
वेद मारवाह की ‘स्व-मुंहबंदी’ के कई मायने
आईये अब घेर-घार के लाते हैं वेद मारवाह को। मारवाह भारत के पूर्व आईपीएस हैं। दिल्ली के पुलिस कमिश्नर रहे हैं। कई राज्यों के गवर्नर रहे हैं। सत्ता के गलियारों में अक्सर “दबे-पांव” चहल-कदमी करते पुराने ‘क्राइम-रिपोर्टरों’ की आंखों के रास्ते कभी-कभार पहचान लिये जाते हैं। मारवाह साहब ने अपनी छवि एक सुलझे हुए पुलिस अधिकारी की ‘चमका’ रखी है। इसके बाद भी वे किरन बेदी के देश की दूसरी महिला आईपीएस होने के ‘झंझट’ पर अपने होंठ बंद किये बैठे हैं। आज से नहीं। कई दशक से। आखिर क्यों?
अगर सरकारी दस्तावेजों में मौजूद ‘सबूतों से सिर-फुटव्वल या माथापच्ची की जाये, तो वहां पंजाब कॉडर की सुरजीत कौर (1956) का नाम पहली भारतीय महिला आईपीएस अधिकारी के रुप में दर्ज है। सुरजीत कौर का 1957 में एक सड़क हादसे में निधन हो गया था। आईपीएस से जुड़े अगर दस्तावेज ‘दुरुस्त’ हैं, तो सुरजीत कौर तो वेद मारवाह के ही बैच की आईपीएस थीं। वेद मारवाह की कथित चुप्पी भी कई सवाल खड़े करती है। एक आईपीएस के बाबत पूरे देश का ज्ञान अल्प था या हो सकता है, लेकिन वेद मारवाह और किरन बेदी यह कैसे भूल गये या भूल गईं, कि भारत की पहली महिला आईपीएस किरन बेदी नहीं, सुरजीत कौर थीं?
कहां हैं दिल्ली की “क्राइम-रिपोर्टरी” के कथित मठाधीश?
देश की राजधानी में करीब 24 साल क्राइम-रिपोर्टरी के दौरान मैंने किरन बेदी को काफी कुछ समझने की कोशिश की। तमाम मर्तबा उनसे मिलने का मौका मिला। कई बार सोचता था या यूं कहूं कि मुझे लगता था, किरन बेदी से चतुर या यूं कहूं कि काबिल या तेज-तरार्र दूसरी महिला आईपीएस नहीं होगी। मैं इनसे ज्यादा मेहनतकश किसी दूसरी महिला आईपीएस को मानने को तैयार नहीं था। किरन बेदी की असलियत और अपने ज्ञान के चक्षु (नेत्र) अब जब खुले हैं, तो अहसास हुआ कि गुरु, किरन बेदी से ज्यादा समझदार तो हम ही थे…मगर किरन बेदी को लेकर मेरे मन में बैठी तमाम गफलतों और अल्पज्ञान ने और किरन बेदी ने, मुझे तो क्या अच्छे-अच्छे क्राइम रिपोर्टरी के तमाम धुरंधर-महाऱथियों को भी उनकी ‘जनरल-नॉलिज’ के मामले में धूल फंकवा दी…हंस-हंसकर…जो वर्षों तक क्राइम-रिपोर्टरी करते रहे। कहां हैं इस वक्त बीते कल की दिल्ली में क्राइम-रिपोर्टरी के वो कथित वरिष्ठ क्राइम रिपोर्टर, जो एक जमाने में आईटीओ स्थित दिल्ली पुलिस मुख्यालय (पीएचक्यू) स्थित किरन बेदी से मिलने के बाद पीएचक्यू की सीढ़ियां उतरते हुए सिपाही-हवलदार से आंख मिलाने में भी अपनी ‘तौहीनी’ समझते थे? जबकि तमाम-उम्र दिल्ली में क्राइम रिपोर्टरी करने के बाद ‘बिचारे-वरिष्ठ जत्थेदार क्राइम-रिपोर्टर’ यह पता नहीं कर पाये कि, किरन बेदी नहीं, सुरजीत कौर थीं, भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी।
गूगल के अधकचरे ज्ञान पर जरुरी है ‘विधवा-विलाप’
आईये अब दुनिया के सबसे बड़े सर्च-इंजन ‘गूगल’ के ज्ञान पर भी ‘विधवा-विलाप’ करके दो आंसू बहा लें। ताकि आने वाली पीढ़ियां गूगल के अंधे ज्ञान पर आंख मूंदकर विश्वास न करें। गूगल सर्च करिये तो, उस पर भारत की पहली महिला आईपीएस सुरजीत कौर का नाम इस समय तक नजर नहीं आ रहा है। मतलब गूगल भी धुप्पल में अपने ज्ञान की कच्ची ‘काबिलियत’ भारत में, भारत वालों से ही लेकर बांट रहा है। अगर गूगल की अपनी कोई रिसर्च उच्च-कोटि की होती, तो उस पर सर्च करने के पर पहली भारतीय महिला आईपीएस की जगह किरन बेदी नहीं, मरहूम सुरजीत कौर का नाम लिखकर सामने आता। ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां ‘गूगल’ के अधकचरे ज्ञान का शिकार होने से बच जातीं।
किरन से लेकर ‘क्रेन-बेदी’ तक की ‘झूठी’ कहानी का सच
किरन बेदी के आजाद भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी न होने का भांडा फूट चुका है। ऐसे में किरन बेदी की ‘क्रेन-बेदी’ वाली छवि भी चूर हो गयी है। सच यह है कि पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी की अंबेस्डर कार का कनाट प्लेस में चालान काटकर उसे क्रेन से उठवाने वाली, किरन बेदी नहीं थीं। यह सब काम तो किया था, उस समय के दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के सब-इंस्पेक्टर निर्मल सिंह ने। बाद में निर्मल सिंह सहायक पुलिस आयुक्त पद से दिल्ली पुलिस से रिटायर हुए थे।
(लेखक लोकप्रिय यूट्यूब चैनल ‘क्राइम्स वॉरियर‘ के संपादक हैं)