मैंने जो कहा, इस संदर्भ में नहीं कहा था और ना ही मैं ऐसा कहना चाहता था. पूरे सत्र में जो बात उठी वो इस प्रकार थी. मैं तहलका के संपादक तरुण तेजपाल की बात का समर्थन कर रहा था. भारत में भ्रष्टाचार हर तरफ फैला हुआ है. मेरा मानना है कि एक भ्रष्टाचार-मुक्त समाज एक तरह की तानाशाही जैसा होगा. सत्र में इससे पहले मैंने ये कहा था कि मेरे या रिचर्ड सोराबजी जैसे लोग जब भ्रष्टाचार करते हैं तो बड़ी सफाई से कर जाते हैं, फर्ज करों मैं उनके बेटे को हार्वर्ड में फैलोशिप दिलवा दूं या वो मेरी बेटी को ऑक्सफोर्ड भिजवा दे. इसे भ्रष्टाचार नहीं माना जाएगा. लोग समझेंगे कि यह उनकी काबिलियत के बिनाह पर किया गया है. लेकिन जब कोई दलित, आदिवासी या ओबीसी का आदमी भ्रष्टाचार करता है तो वह सबकी नजर में आ जाता है. हालांकि, मेरा मानना है, इन दोनों भ्रष्टाचारों के बीच कोई अंतर नहीं है और अगर इस भ्रष्टाचार से उन तबकों की उन्नति होती है तो भ्रष्टाचार में बराबरी बनी रहती है. और इस बराबरी के बलबूते पर मैं गणतंत्र को लेकर आशावादी हूं. आशा है कि मेरे इस बयान से यह विवाद यहीं खत्म हो जाएगा. अगर इससे गलतफहमी पैदा हुई है तो मैं माफ़ी चाहता हूं. हालांकि, ऐसी कोई बात हुई नहीं थी. मैं किसी भी समुदाय की भावना को आहत नहीं करना चाहता था और अगर मेरे शब्दों या गलतफहमी से ऐसा हुआ है तो मैं क्षमाप्रार्थी हूं. (आशीष नंदी)
जयपुर लिटरेचर फेस्टीवल तथाकथित देश-दुनियाभर के लोगों का जमावड़ा है लेकिन आशीष नंदी की बातचीत को लेकर हुए विवाद के बाद न्यूज चैनलों में जिस तरह की प्रस्तुति जारी है, वो किसी पार्टी की रैली की हो-हो से ज्यादा नहीं है. चैनल की समझदारी पर गौर करें कि वो आशीष नंदी को किस तरह से पोट्रे कर रहे हैं, आप एक झलक में अंदाजा लगा सकते है कि इन चैनलों को आशीष नंदी के बारे में कुछ पता नहीं है. कुछ नहीं तो पिछले दिनों आई तहलका की कवर स्टोरी ही पढ़ लेनी चाहिए थी लेकिन इतनी समझ कहां है उन्हें. भला हो अभय कुमार दुबे का जिन्होंने एबीपी पर आकर सबसे पहले दुरुस्त किया कि आशीष नंदी सीएसडीएस के निदेशक नहीं है, हमारे ऐसे गुरु हैं जिनसे हमने बहुत कुछ सीखा है और इतना तो खासतौर पर कि वो किसी भी रुप में दलित विरोधी नहीं है.
आशुतोष( आइबीएन 7) की तड़प इस बात को लेकर शुरु से रही है कि उन्हें बुद्धिजीवी समझा जाए. लिहाजा इसके लिए वो लेख लिखने के नाम पर ललित निंबध लिखने से लेकर पटना पुस्तक मेले में बयान दे चुके हैं कि मीडिया अगर लक्ष्मण रेखा लांघता है( राडिया मीडिया प्रकरण को लेकर) तो उसे माफ कर देना चाहिए. हिन्दी के विकास में अरुण पुरी का खासतौर पर शुक्रिया अदा करते हैं और मानते हैं कि इस देश में हिन्दी पत्रकारों को अंग्रेजी पत्रकारों से ज्यादा पैसे मिलते हैं. अब इस समझ के बूते वो आज आशीष नंदी से थेथरई करके सुर्खियां बटोरनी चाही तो इसमे नया और अलग क्या है ?
दरअसल जिन्हें कायदे से नत्थुपुरा,बुराडी,नांगलोई और उधर साउथ दिल्ली में प्रॉपर्टी डीलिंग के धंधे में होना चाहिए, वो न्यूज चैनल चला रहे हैं. नतीजा आपके सामने हैं, हर असहमति समाजविरोधी हो जाना है, हर बातचीत बयान और राजनीति है. आपको कहीं से लगता है कि चैनलों पर जो प्रसारित होते हैं और उसकी जो भाषा होती है वो पेशेवर पत्रकारों की है. मीडिया को वोकेशनल कोर्स बनाने के नाम पर देशभर में जर्नलिज्म स्कूल के जो खोमचे लगे हैं और उससे बिना राजनीति विज्ञान,समाजशास्त्र,सांस्कृतिक अध्ययन के तुरंता पत्रकार के नाम पर कबाड़ निकल रहे हैं वो हमसे ही सीना तानकर पूछ रहे हैं- आशीष नंदी कौन है ? एक गंभीर और अतिरिक्त जिम्मेदारी के पेशे को कैसे तहस-नहस किया जा रहा है, आप सबके सामने है. हजार से बारह सौ शब्दों के बीच की पत्रकारिता पूरे समाज को कैसे एक ही रंग से पेंट करता है जहां असहमति का मतलब समाज का खलनायक घोषित कर देना है, ये धीरे-धीरे और खतरनाक हो जाएगा. किताबों, रिसर्च, तटस्थ और विचारों के खुलेपन के बिना जो मीडिया हमारे बीच पसर रहा है, वो आगे चलकर किस हद तक मानव विरोधी होगा, आप अंदाजा लगा सकते हैं. आशीष नंदी की बातचीत को जिस तरह डिमीन करके चैनलों ने पेश किया और रेजिमेंटेशन करने लगे, मैं इसे इसकी एक छाया के रुप में ले रहा हूं. जो चैनल आम आदमी का मसीहा बनता है, उनमें से एक ने भी खुलकर नहीं कहा कि इस समाज में बौद्धिकों का स्पेस नहीं रहेगा तो हम खत्म हो जाएंगे.
शहर में एक लड़की के साथ बलात्कार होता है तो मीडिया में उसके लिए प्रयोग होता है- दिल्ली गैंगरेप मामला. शहर इस खबर में निशाने पर होता है लेकिन जयपुर लिटरेचर फेस्टीबल में आषीश नंदी की बातचीत के बाद जो कुछ हुआ, उसमें जयपुर लिटरेचर फेस्टीबल इस तरह से इस्तेमाल नहीं हो रहा है. आपको क्या लगता है, ये सब अनायास है ?
दूसरी तरफ आशीष नंदी को लेकर जयपुर लिटरेचर फेस्टीबल के आयोजक चुप्प हैं. आपको लगता है कि बिना उनकी चुप्पी या मौन सहमति के उनकी कही बातें बयान की शक्ल में टीवी स्क्रीन पर बेहूदे ढंग से तैर रही है. अव्वल तो आशीष नंदी किसी चुनावी रैली में बोलने नहीं गए हैं कि उनके कहे को बयान कहा जाए. तथाकथित रुप से ये देश और दुनिया के बुद्धिजीवियों का जमावड़ा है जहां आशीष नंदी बयान देने नहीं,विमर्श करने गए. जेएलएफ के आयजकों को सबसे पहले चाहिए कि वो उनकी बात को बयान का नाम न दे और दूसरा कि वो लगातार टीवी स्क्रीन मॉनिटर करे और समझने की कोशिश करे कि कैसे उसकी टुच्ची मानसिकता और महत्वकांक्षा के आगे एक ऐसे शख्स को डिमीन किया जा रहा है जिसने अपने अध्ययन का बड़ा हिस्सा उन्हीं सारी बातों के खिलाफ लगा दिया, जो अब उन पर थोपे जा रहे हैं. चैनलों के अधकचरे, लफाडे टाइप के लोग जो फतवा जारी करने के अंदाज में एंकरिंग कर रहे हैं, उस पर गंभीरता से विचार करें कि क्या वो अकादमिक दुनिया की बहसों को इसी रुप में देखना चाहते हैं. बयान,सफाई, विवाद..इन शब्दों के प्रयोग से आशीष नंदी देश के समाजशास्त्री नहीं छुटभैय्ये नेता के रुप में पोट्रे किया जा रहा है, जो कि दुखद है.< /span>
(मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार की एफबी पर की गयी टिप्पणियाँ जिन्हें समायोजित करके पोस्ट की शक्ल में यहाँ पेश किया गया)
साहित्यिक मित्रों और देश वाशिओं को शुभ संध्या कह कर सभी का अभिवादन करता हूँ
मेरे अपने सभी नवोदित, वरिष्ठ,और मेरे समय साथ के सभी गीतकार,नवगीतकार और साहित्यिक मित्रों को समर्पित आज का यह नया गीत यथार्थ महिला दिवस के अवसर धरातल पर साहित्यिक संध्या की सुन्दरतम संधि काल की मोर्पंखिया बेला में निवेदित कर रहा हूँ !आपकी प्रतिक्रियाएं ही इस चर्चा और पहल को सार्थक दिशाओं का सहित्यिक बिम्ब दिखाने में सक्षम होंगी !
और आवाहन करता हूँ “हिंदी साहित्य के केंद्रमें नवगीत” के सवर्धन और सशक्तिकर्ण के विविध आयामों से जुड़ने और सहभागिता निर्वहन हेतु !आपने लेख /और नवगीत पढ़ा मुझे बहुत खुश हो रही है मेरे युवा मित्रों की सुन्दर सोच /भाव बोध /और दृष्टि मेरे भारत माँ की आँचल की ठंडी ठंडी छाँव और सोंधी सोंधी मिटटी की खुशबु अपने गुमराह होते पुत्रों को सचेत करती हुई माँ भारती ममता का स्नेह व दुलार निछावर करने हेतु भाव बिह्वल माँ की करूँणा समझ पा रहे हैं और शनै शैने अपने कर्म पथ पर वापसी के लिए अपने क़दमों को गति देने को तत्पर है
मुह की मिशरी
कान में उतरी
महिला गाथा सुन
रंग में डूबीं घाटी घाटी
ह्रदय हिरन चौंकड़ियाँ !
फागुन वाली
ओंठ की लाली
महक पलाशी वन
वक्ष में पूजें नारी जैसे
तुलसी डाल डगलियाँ !
शक्ति श्रोत की
इस धरती से
उजड़े कैसे
मधुरस सींचे
बाग़ बगीचे,
गौरी अंबे
रमा राधिका
ब्रम्हाणी के
क्षितिज से
कैसे सरकी नीचे,
अमृतधारी मेह
बरसी सुधा सनेह
युग युग किये जतन
भूखे प्यासे नंगे तन को
देती रही झगलियाँ !
मुह की मिशरी
कान में उतरी
महिला गाथा सुन
रंग में डूबीं घाटी घाटी
ह्रदय हिरन चौंकड़ियाँ !
फागुन वाली
ओंठ की लाली
महक पलाशी वन
वक्ष में पूजें नारी जैसे
तुलसी डाल डगलियाँ !
दुनियां भर
पीडाएं पीकर
दाँतों पत्थरियाँ
नए नए
इतिहास लिखे,
दुर्गावती अवंती
लक्ष्मी बाई
और कभी
वह बीरा नैनी
घाव दिखे,
कभी आग अंगारा
और कभी जलधारा
बहती रही वतन
कल कल करती जैसे
सहजन में गलगलियाँ !
समय
बहेलिया
हुआ कसाईं
लावा तीतुर
जैसा पंख पखेरू नोंचे,
गोबर गौरी
हुई भंडरिया
टनटे
किलल्त से
छुटकारे की अब सोंचे,
गुलामी घट रीते
दुःख के दिन बीते
ख़ुशी आई है अगन
दुर्दिन अब तो
झाँकेंगे दूर से बगलियाँ !
मुह की मिशरी
कान में उतरी
महिला गाथा सुन
रंग में डूबीं घाटी घाटी
ह्रदय हिरन चौंकड़ियाँ !
फागुन वाली
ओंठ की लाली
महक पलाशी वन
वक्ष में पूजें नारी जैसे
तुलसी डाल डगलियाँ !
भोलानाथ
डॉ,राधा कृष्णन स्कूल के बगल में
अन अच्.-७ कटनी रोड मैहर
,जिला सतना मध्य प्रदेश .भारत
संपर्क -08989139763
मेरे अपने सभी नवोदित, वरिष्ठ,और मेरे समय साथ के सभी गीतकार,नवगीतकार और साहित्यिक मित्रों को समर्पित आज का यह नया गीत विद्रूप यथार्थ की धरातल पर असमंजस और शंसय की उहा पोह के बीच साहस की संज्ञा दें या दुसाहस की …………..
साहित्यिक संध्या की सुन्दरतम संधि काल की मोर्पंखिया बेला में निवेदित कर रहा हूँ !आपकी प्रतिक्रियाएं ही इस चर्चा और पहल को सार्थक दिशाओं का सहित्यिक बिम्ब दिखाने में सक्षम होंगी !
और आवाहन करता हूँ “हिंदी साहित्य के केंद्रमें नवगीत” के सवर्धन और सशक्तिकर्ण के विविध आयामों से जुड़ने और सहभागिता निर्वहन हेतु !आपने लेख /और नवगीत पढ़ा मुझे बहुत खुश हो रही है मेरे युवा मित्रों की सुन्दर सोच /भाव बोध /और दृष्टि मेरे भारत माँ की आँचल की ठंडी ठंडी छाँव और सोंधी सोंधी मिटटी की खुशबु अपने गुमराह होते पुत्रों को सचेत करती हुई माँ भारती ममता का स्नेह व दुलार निछावर करने हेतु भाव बिह्वल माँ की करूँणा समझ पा रहे हैं और शनै शैने अपने कर्म पथ पर वापसी के लिए अपने क़दमों को गति देने को तत्पर है!………….
भूल गईं
पतियाँ
बिसर गईं रतियाँ
घिन नहीं आती क्यों
देख देख वस्त्र विरत
सीडियों की परियां !
ले आईं
व्याधियां
परिवर्तन की आंधियां
कामकेलि तट पर्वों से
फिसल रहीं
गटर में गुजरियां !
रस बोरे
सतरंगी फूलों का
चूता मकरंद छोड़ भौंरे
बदबू का इंद्रजाल लगे सूंघने,
पूर्ण चन्द्र उत्सव
उत्सर्जन के
गंधाते रंध्रों में आयामी
श्रष्टि सृजन लगे खोजने,
आत्महंत
नई विधियाँ
घूरे में डार रहीं निधियां
खेतों की मेड़ ही
सींच रही
नागफनी जरियां !
भूल गईं
पतियाँ
बिसर गईं रतियाँ
घिन नहीं आती क्यों
देख देख वस्त्र विरत
सीडियों की परियां !
ले आईं
व्याधियां
परिवर्तन की आंधियां
कामकेलि तट पर्वों से
फिसल रहीं
गटर में गुजरियां !
नदिया के निर्मल बहाव में
सुरभित जो संस्कार
सीख रहीं तोतली जुबाने
जल कुम्भी के जैसे,
बारूदी ऊँचे पहाड़ों से
बह बह के आई
तेजाबी काई
नकुओं से बिरझी सुपर्णखा जैसे,
कामांधी
स्वार्थी करेलियाँ
विष भींजी मेंहदी अँज़लियाँ
सैंथ रहीं
उलहन
रेशम की खरियां !
भूल गईं
पतियाँ
बिसर गईं रतियाँ
घिन नहीं आती क्यों
देख देख वस्त्र विरत
सीडियों की परियां !
ले आईं
व्याधियां
परिवर्तन की आंधियां
कामकेलि तट पर्वों से
फिसल रहीं
गटर में गुजरियां !
पीपल के विरवे की पतझर
सी झरतीं चन्दन लिपटती
चलचित्रित कामकंद
बाहुपांशों की छवियाँ,
पशुवत परिवर्तन
मधुमाशी विकास का
अंधों की आँखें कैसे पहचानें
काजल की डिबियाँ.
रोको तो कोई
डारो तो फंदा
लीलें न जुगुनू पूनम का चंदा
बिम्बित
रहें तीर्थ
दर्पण में परियां !
भूल गईं
पतियाँ
बिसर गईं रतियाँ
घिन नहीं आती क्यों
देख देख वस्त्र विरत
सीडियों की परियां !
ले आईं
व्याधियां
परिवर्तन की आंधियां
कामकेलि तट पर्वों से
फिसल रहीं
गटर में गुजरियां !
भोलानाथ
डॉ,राधा कृष्णन स्कूल के बगल में
अन अच्.-७ कटनी रोड मैहर
,जिला सतना मध्य प्रदेश .भारत
संपर्क -08989139763