-ओम थानवी-
आज रवीश का प्राइम टाइम ऐतिहासिक था। उस रोज़ की तरह, जब उन्होंने स्क्रीन को स्वेच्छा से काला किया था, अभिव्यक्ति के संसार में पसरे अंधेरे को बयान करने के लिए।
आज उन्होंने हवा में व्याप्त ज़हर के बहाने अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हो रहे प्रहार को दो मूकाभिनय के कलाकारों से ‘सम्वाद’ के ज़रिए चित्रित किया।
बहुत मार्मिक ढंग से। उन्होंने सरकार की तंगदिली को बेनक़ाब किया, सबसे भरोसेमंद चैनल को पठानकोट के नाम पर दी जा रही सज़ा और इस तरह की बदनामी की कुचेष्टा का जवाब दिया। मुझे लगा वे भावुक हो जाएँगे।
पर भावना और दर्द पर क़ाबू रखते हुए वे मज़े वाले मूड में आ गए। ओछे शासन को हँसते-खेलते धो डाला।
मुझे अब सरकार पर तरस आने लगा है। वह जूते भी खाती है और प्याज़ भी, पर विवेक से काम नहीं लेती।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और उनकी ये टिप्पणी उनके फेसबुक वॉल से ली गयी है)